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झारखंड चुनाव: हेमंत और बाबूलाल बचा पाएंगे अपनी प्रतिष्ठा? इन पर सबकी नजर; जानें संताल-कोयलांचल की हॉट सीटों का हाल

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धनबादः झारखंड विधानसभा चुनाव 2024 को लेकर सियासी सरगर्मी तेज है। दूसरे चरण में चुनाव होने के कारण छठ बाद संताल-कोयलांचल में चुनावी सक्रियता उफान पर होगी। संताल की बरहेट सीट से मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन उम्मीदवार हैं। वहीं कोयलांचल में गिरिडीह जिले की धनवार सीट से पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी चुनाव लड़ रहे हैं। दोनों की प्रतिष्ठा दांव पर है। इन दोनों सीटों पर झारखंड की नजर है। गांडेय में कल्पना सोरेन फिर से चुनाव मैदान में बात संताल-कोयलांचल की वीआईपी सीटों की करें तो तीसरे नंबर की वीआईपी सीट गांडेय है। यहां से मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की पत्नी कल्पना एक बार फिर से मैदान में हैं। कुछ महीने पहले ही कल्पना सोरेन गांडेय से उपचुनाव जीत पहली बार विधानसभा पहुंची थीं। स्पीकर और कई मंत्रियों की प्रतिष्ठा दांव परइसके बाद विधानसभा अध्यक्ष रवींद्रनाथ महतो की नाला सीट, मंत्री हफीजुल की मधुपुर सीट, इरफान अंसारी की जामताड़ा सीट, दीपिका सिंह पांडेय की महगामा सीट, बेबी देवी की डुमरी सीट भी हाई प्रोफाइल सीट की श्रेणी में है। जामताड़ा में इरफान अंसारी के खिलाफ भाजपा ने सीता सोरेन को उतार मुकाबले को रोचक बना दिया है। सीता सोरेन शिबू सोरेन की बड़ी बहू हैं। इस वजह से जामताड़ा की चर्चा प्रदेशभर में है। लोबिन हेम्ब्रम, बसंत सोरेन और स्टीफन मरांडी पर सबकी नजरझामुमो से भाजपा में आए लोबिन हेंब्रम की बोरियो सीट भी वीआईपी सीटों में शामिल हैं। संताल कोयलांचल में कई पूर्व मंत्री मसलन बसंत सोरेन, स्टीफन मरांडी, रणधीर सिंह, प्रदीप यादव भी चुनाव लड़ रहे हैं। इनके परिणाम पर भी लोगों की नजर होगी। हेमंत और बाबूलाल की सीट पर देश की भी नजरवैसे हेमंत सोरेन और बाबूलाल मरांडी की सीट सबसे ज्यादा चर्चा में है। इन दोनों के परिणाम पर झारखंड के साथ-साथ देश की भी नजर है। एक नजर अब तक हेमंत सोरेन और बाबूलाल मरांडी के चुनावी सफर पर भी डालते हैं। जब स्टीफन मरांडी से दुमका सीट हार गए थे हेमंत2009 में बड़े भाई दुर्गा सोरेन की मौत के बाद हेमंत सोरेन राजनीति में सक्रिय हुए। 2009 के पहले भी झामुमो के कार्यक्रमों में हेमंत सोरेन आंशिक रूप से सक्रिय थे। वैसे तब गुरुजी के बाद झामुमो में दुर्गा सोरेन की ही चलती थी। बड़े बेटे दुर्गा सोरेन की मौत से पिता शिबू सोरेन को भी झटका लगा। दुर्गा सोरेन की खाली जगह की भरपाई हेमंत सोरेन ने की। झामुमो के हर अहम निर्णय में पिता शिबू सोरेन के साथ रहे। सालभर में हेमंत सोरेन झामुमो के बड़े नेता बनकर उभर गए। महज चार साल में 2013 में झारखंड के मुख्यमंत्री बन गए। 2014 विधानसभा चुनाव में झामुमो ने अकेले हेमंत सोरेन के नेतृत्व में चुनाव लड़ा। उनकी पार्टी को 19 सीटें मिलीं। रघुवर दास के नेतृत्व में तब भाजपा की सरकार बनी थी। 2019 में गठबंधन के तहत हेमंत सोरेन ने झारखंड में बंपर जीत दर्ज की और झारखंड के मुख्यमंत्री बने। वैसे 2005 में ही हेमंत सोरेन ने चुनावी राजनीति शुरू कर दी थी। झामुमो की परंपरागत सीट दुमका से लड़े थे। हालांकि झामुमो से नाराज हो दुमका से चुनाव लड़ने वाले कद्दावर नेता स्टीफन मरांडी से हार गए। एक साथ धनवार-गिरिडीह से 2014 में हारे थे बाबूलाल1991 में बाबूलाल मरांडी भाजपा के टिकट पर दुमका लोकसभा सीट से चुनाव लड़े, लेकिन हार गए। 1996 में वह फिर दुमका में शिबू सोरेन से हारे। 1998 के चुनाव में बाबूलाल मरांडी ने शिबू सोरेन को दुमका से हरा दिया। शिबू सोरेन को हराने के कारण बाबूलाल मरांडी को केंद्रीय मंत्रिमंडल में जगह मिल गई। 2000 में झारखंड अलग राज्य बना और कड़िया मुंडा जैसे आदिवासी नेता के मुकाबले बाबूलाल मरांडी को भाजपा ने झारखंड का पहला मुख्यमंत्री बनाया। तब बाबूलाल मरांडी विधायक भी नहीं थे। मुख्यमंत्री बनने के बाद उन्होंने रामगढ़ से विधानसभा उपचुनाव लड़ा और जीते। ढाई साल बाद बाबूलाल मरांडी को मुख्यमंत्री पद छोड़ना पड़ा। बाद में जेवीएम के तहत अपनी राजनीति शुरू की। 2014 में जेवीएम के टिकट पर धनवार और गिरिडीह दोनों जगह से बाबूलाल लड़े थे हार गए थे। 2019 में धनवार से जीते। इसके बाद भाजपा में वापसी की।
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