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पाकिस्तान में मालदीव के राजदूत ने तालिबानी दूत से की मुलाकात तो मुइज्जू सरकार आगबबूला, उठाया कड़ा कदम

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माले: मालदीव ने पाकिस्तान से अपने राजदूत मोहम्मद थोहा को वापस बुला लिया है। मालदीव की मोहम्मद मुइज्जू की सरकार ने ये कड़ा फैसला थोहा की पाकिस्तान में अफगान तालिबान के डिप्लोमेट अहमद शकेब के साथ मुलाकात के बाद लिया है। थोहा ने इस्लामाबाद में शकेब के साथ बैठक की थी, जिसकी जानकारी उन्होंने अपनी पहले अपनी सरकार को नहीं दी थी। इससे खफा मालदीव सरकार ने उनको वापस बुला लिया है। मालदीव के विदेश मंत्रालय ने इसे अपनी सरकार की ओर से की गई 'उचित कार्रवाई' कहा है।द न्यूज की रिपोर्ट के मुताबिक, मालदीव के विदेश मंत्रालय ने कहा है कि मालदीव के उच्चायुक्त मोहम्मद थोहा और तालिबान के प्रतिनिधि सरदार अहमद शकीब के बीच बहुप्रचारित मुलाकात को सरकार ने मंजूरी नहीं दी थी। ऐसे में मालदीव ने इस्लामाबाद में हुई इस बैठक के बाद पाकिस्तान में अपने शीर्ष राजनयिक को वापस बुला लिया। थोहा का नाम इस्लामाबाद में मालदीव मिशन की वेबसाइट से हटा दिया गया है। तालिबान को मान्यता नहीं देता है मालदीव एंबेसी ऑफ अफगानिस्तान इन इस्लामाबाद ने एक नवंबर को एक्स पर दोनों राजनयिकों की तस्वीर शेयर की थी। तस्वीर शेयर करते हुए लिखा गया, इस्लामाबाद में इस्लामिक अमीरात अफगानिस्तान के कार्यवाहक राजदूत मोहम्मद थोहा ने सरदार अहमद शकेब से मुलाकात की। बैठक के दौरान भाईचारे और मुस्लिम देशों के बीच द्विपक्षीय संबंधों, मालदीव और अफगानिस्तान के माध्यम से मध्य एशियाई देशों के बीच व्यापार संबंधों और दूसरे मुद्दों पर चर्चा की गई। शकेब ने थोहा को धन्यवाद देते हुए कहा कि अफगानिस्तान सभी देशों के साथ रचनात्मक संबंध चाहता है और अपनी अर्थव्यवस्था-केंद्रित नीतियों के माध्यम से अफगानिस्तान को एक क्षेत्रीय कनेक्टिविटी केंद्र में बदलने का प्रयास कर रहा है। दक्षिण एशिया का सबसे छोटा इस्लामी गणराज्य मालदीव अफगानिस्तान की तालिबान सरकार को मान्यता नहीं देता है। ऐसे में इस बैठक को नियमों के खिलाफ मानते हुए मालदीव सरकार ने थोहा को देश वापस आने का आदेश दिया। तालिबान ने 2021 में अमेरिका समर्थित सरकार का तख्तापलट करते हुए अफगानिस्तान की सत्ता पर कब्जा कर लिया था। तालिबान इसके बाद से लगातार अफगानिस्तान में शासन कर रहे हैं और कई देशों के साथ उनके संबंध भी हैं लेकिन उनकी सरकार को ज्यादातर देशों ने आधिकारिक तौर पर मान्यता नहीं दी है। हालांकि पाकिस्तान, चीन, रूस, ईरान और पश्चिम एशियाई देशों ने काबुल के साथ संबंध स्थापित किए हैं।
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