नई दिल्ली: लद्दाख में जंगली जानवरों का जीवन बेहद अनोखा है। खासकर यहां पाए जाने वाले काले भेड़िये। दरअसल, यहां लद्दाख के ठंडे रेगिस्तान में फैले विशाल मैदानों और ऊंचे-ऊंचे पहाड़ों के बीच भेड़ियों की दो प्रजाति मिलती हैं। पहली- सामान्य रंग के भेड़िये और दूसरे- मेलानिस्टिक भेड़िये, जिन्हें काला भेड़िया भी कहा जाता है। काले भेड़ियों को अक्सर सामान्य रंग के भेड़ियों के गुट से निकाल दिया जाता है या उन पर हमला कर दिया जाता है। इस वजह से इन्हें अकेले या छोटे समूहों में रहने को मजबूर होना पड़ता है।लद्दाख, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, सिक्किम और अरुणाचल प्रदेश के सबसे ऊंचाई वाले इलाकों में रहने वाले इस काले भेड़िये को अक्सर मायावी भेड़िया भी कहा जाता है। यह एक ऐसा शिकारी जानवर है, जिसके बारे में लोगों को बहुत कम जानकारी है। अपने मैदानी भाइयों के विपरीत, भेड़िये की इस प्रजाति ने अपने आप को सर्द हवा, ठंडे तापमान और कम शिकार वाली परिस्थितियों में जीवित रहने के लिए अनुकूल बना लिया है।अपने नुकीले कान, मजबूत जबड़े और तेज निगाहों की वजह से इसकी गिनती तेज-तर्रार शिकारी जानवरों में होती है। वेबसाइट मोंगाबे के मुताबिक, एक वयस्क काला भेड़िया पांच फुट ऊंचाई से ज्यादा तक की बाड़ के ऊपर से आसानी से कूद सकता है। क्रीम, काले और भूरे रंग के मिश्रण से बने इसके घने फर इसे एक भयानक रूप देते हैं। जंगल में दूर से ही ये अपने शिकार को भांप लेता है। 17 के झुंड में निकलते हैं काले भेड़ियेकाले भेड़िये जंगल में जब निकलते हैं, तो इनके ग्रुप में सदस्यों की संख्या 17 तक होती है। कई बार इन्हें देखकर जंगल के बड़े और हिंसक जानवर भी सहम जाते हैं। शिकार करते वक्त इनके बीच का तालमेल और तेजी गजब की होती है। काले भेड़िये को मायावी भेड़िया भी कहा जाता है और इसके पीछे लोगों की अलग-अलग मान्यताएं और लोककथाएं हैं। भेड़ियों का गरजना बदलाव का संकेतलद्दाख में स्थानीय लोगों ने अपनी मान्यताओं और लोककथाओं के माध्यम से भेड़ियों की अपनी धारणाएं गढ़ी हैं। ये अपनी ताकत, रफ्तार और चालाकी के लिए तो जाने ही जाते हैं, लेकिन इनके बारे में कुछ और रोचक बातें भी हैं। लद्दाख में, भेड़ियों को शांगकु के नाम से जाना जाता है और ऐसा माना जाता है कि उनका गरजना किसी होने वाले बदलाव का संकेत है। शिकारियों के सामने से 'गायब' होने की क्षमताकुछ लोग इन भेड़ियों को पवित्र पर्वतीय स्थलों के रक्षक और आध्यात्मिक प्रवेश द्वारों के संरक्षक के तौर पर मानते हैं। वहीं, कुछ दूर-दराज के गांवों में यह माना जाता है कि भेड़ियों के पास शिकारियों के सामने से 'गायब' होने के लिए अपने परिवेश के साथ घुलमिल जाने की अनोखी क्षमता होती है। एक मान्यता यह है कि जब भेड़िये किसी गांव के पास एक साथ गरजते हैं, तो इसे एक अपशकुन माना जाता है, जो प्राकृतिक आपदा या बीमारी जैसी समस्याओं का संकेत देता है। अलौकिक शक्तियों से जुड़ाव की मान्यतास्थानीय लोगों में मान्यता है कि काले भेड़िये न केवल खतरनाक हैं बल्कि अलौकिक शक्तियों से भी जुड़े हैं। एक मान्यता यह भी है कि अगर भेड़ियों के किसी बच्चे का रंग या बनावट उसके भाई-बहनों से अलग होती है, तो वह बहुत ही चालाक और खतरनाक शिकारी बनेगा। कहा जाता है कि इन भेड़ियों में एक अनोखी ताकत होती है, जिससे चरवाहे विशेष रूप से डरते हैं।
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