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देवदत्त पटनायक Exclusive: रील की दुनिया में मजा तो बहुत मिलता है, मगर सुख-शांति नहीं मिलती

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देवदत्त पटनायक माइथोलॉजिस्ट, ऑथर और स्पीकर हैं। उन्होंने अपनी नई किताब के बारे में बात करने के साथ-साथ ये भी बताया है कि आजकल लोग पढ़ाई से दूर क्यों होते जा रहे है। उन्होंने बताया कि अगर आप रील देखेंगे तो बच्चे भी रील ही देखेंगे। वो कहते हैं कि पढ़ाई के लिए जिज्ञासा की जरूरत होती है। जानिए नवभारत टाइम्स डॉट कॉम से हुई खास बातचीत में उन्होंने और क्या कहा। आजकल युवाओं का किताबों के प्रति इंटरेस्ट कम हो रहा है या विजुअल मीडियम की तरफ ज्यादा हो रहा है। इसे आप किस तरीके से देख रहे हैं? आपकी नजर मे इस चुनौती का क्या समाधान है? देखिए अगर आप किसी स्कूल जाने वाले से पूछें कि आप स्कूल क्यों जा रहे हो तो जवाब मिलता है - जॉब के लिए। हम स्कूल जिज्ञासा के लिए नहीं जाते हैं। पढ़ाई करो, पास करो, जॉब करो ये ही जिंदगी का एजेंडा बन चुका है। हमें पढ़ाई से घृणा होने लगती है। बच्चों के पढ़ने का नाम लेते ही गुस्सा आ जाता है। हमें दुनिया के सुख और भोग से प्रेम होता है। कुछ समय पहले मैं एक बुक फेयर में गया था जहां खाना भी रखा गया था। मैंने देखा कि खाना ज्यादा बिका है और किताबें बिकी ही नहीं। हर आदमी को लक्ष्मी चाहिए, वहीं सरस्वती उन लोगों को ही चाहिए, जिन्हें जिज्ञासा का महत्व समझ में आता है। रील की दुनिया में मजा तो बहुत मिलता है मगर सुख शांति नहीं मिलती। आपको सुख और शांति के लिए आध्यात्म ज्ञान चाहिए। जैसे अमीर आदमी लोग होते हैं वो भी नहीं पढ़ते हैं, वो गुरु के पास जाते हैं कि रेडीमेड कुछ ज्ञान मिल जाएगा। लेकिन उसके लिए चिंतन करना पड़ेगा। सरस्वती को आप डाउनलोड नहीं कर सकते हो। चिंतन करना, जिज्ञासा होना और फिर जाकर किताबों की तरफ जाना जरूरी है। जिज्ञासा नहीं होगी तो सर्च बटन में क्या डालेंगे?लोग बोलते हैं मेरे बच्चे पढ़ नहीं रहे हैं। क्या आप पढ़ते हो? बताओ कितनी किताबें हैं आपके पास? अगर आप नहीं पढ़ रहे हो तो आपके बच्चे क्यों पढ़ें? आप घर में टीवी देख रहे हो तो बच्चे टीवी देखेंगे। आप रील देख रहे हो, तो बच्चे वही देखेंगे। कंप्लेन करना बहुत आसान है। बाकी ज्ञान का तो सागर मौजूद है। अगर चाहिए तो सिर्फ दो मिनट में इंटरनेट पर आपको सब कुछ मिल जाता है। लेकिन जिज्ञासा नहीं होगी तो सर्च बटन में क्या डालेंगे? आपकी नई किताब 'अहिंसा' अभी आई है, आपको इसका विचार कैसे आया और आपने कैसे इस पर काम किया?हमने हड़प्पा और सिंधु घाटी सभ्यता के बारे में तो सुना है। इस सभ्यता की खोज को 100 साल से ज्यादा हो गए हैं। उसके अलावा आजकल राखीगढ़ी और लोथल के बारे में भी चर्चा हो रही है। ये ऐसी संस्कृतियां हैं जिनके बारें में हमें ज्यादा कुछ नहीं पता। मैंने सोचा कि एक ऐसी सरल किताब होनी चाहिए जिससे हमें इस सब के बारे में जानकारी मिले। क्या हड़प्पा सभ्यता को माइथॉलजी से जोड़कर देखा जा सकता है?ये माइथॉलजी ही है, क्योंकि माइथॉलजी जी का मतलब है लोगों को, दुनिया को देखने का तरीका। हम कैसे देखते हैं और उसे कथा के रूप में व्यक्त करते हैं। जैसे जैन लोग अपनी दुनिया को, अपने ब्रह्मांड को कथाओं के द्वारा व्यक्त करते हैं। मेरी किताब तीर्थंकर में मैंने इस बारे में बात की है। लेकिन हड़प्पा सभ्यता एक बहुत ही विचित्र सभ्यता है। इसके बारे में हमें ज्यादा पता नहीं है, वहां रहने वाले लोग कौन थे, उनके क्या विचार थे। मैंने देखा कि हड़प्पा के केस में कथा तो नहीं है लेकिन आर्ट और आर्किटेक्चर को देखकर हम एक अनुमान लगा सकते हैं कि वे लोग क्या सोचते थे। सबसे बड़ी बात है कि यह अहिंसावादी सभ्यता है। क्योंकि यहां पर युद्ध का एक भी सबूत नहीं मिला है और ना ही हथियारों के कोई अवशेष। इसी समय जब हम मिस्त्र, मेसोपोटामिया या इराक की सभ्यताओं को देखते हैं, वहां पर बहुत हिंसा होती है। इसके बारे में हम बात ही नहीं करते हैं कि भारत की पहली सभ्यता से हमें अहिंसा का एक छोटा चित्र मिलता है। यह बात हमारे युवाओं तक पहुंचनी चाहिए। उन्हें पता चलना चाहिए कि हजारों साल से हमारे यहां इसकी परंपरा रही है। अगर इस सभ्यता का माइथॉलजी के साथ कनेक्शन नहीं होता तो शायद मुझे इसमें इंटरेस्ट नहीं होता। हम माइथॉलजी में काफी समय पहले बीत चुकी घटनाओं के बारे में बात करते हैं। उस बारे में जानकारी लेने के लिए किताबें ही एक बड़ा साधन होती हैं। लेकिन जैसे आपने बताया कि प्राचीन सभ्यताओं से जुड़े अवशेषों से जानकारी जुटाई जाती है। कभी आपके मन में उन जगहों पर खुद जाकर खोज करने का विचार आया है? मैं कई सालों पहले लोथल गया था। वहां जाकर मैंने उस समय के कई अवशेष देखे थे। दिल्ली के म्यूज़ियम में मैंने डांसिंग गर्ल के अवशेष देखे हैं। जब हम माइथॉलजी का अध्ययन करते हैं तो केवल कथा से सारी बातें पता नहीं चलती। प्रतीकों, मूर्तियों, आर्किटेक्चर, वस्तु शास्त्र और कर्मकांड जैसे विषयों के बारे में भी बात करनी पड़ती है। ये सब देख कर ही हमें माइथॉलजी के बारे में समझ आता है। जैसे भस्म शिवजी से जुड़ा एक प्रतीक है या चंदन विष्णु जी से जुड़ा एक प्रतीक है। वैसे ही हड़प्पा सभ्यता में लोग एक ही प्रकार का पत्थर का सील बनाते थे। यह सील एक ही पत्थर, एक ही रंग और एक ही आकार का का होता था। हड़प्पा की कुछ आज भी हम इस्तेमाल करते हैं। जैसे हम बात करते हुए रत्ती भर सोने की बात करते हैं यह हड़प्पा से ही निकला है। इसके अलावा 16 आने से नापने का सिस्टम भी 4500 साल पहले सिंधु घाटी में थे। यह एक सोचने लायक बात है। आप लगातार अपने पाठकों को सरप्राइज करते रहते हैं। कुछ समय पहले आपने जैन धर्म पर पुस्तक लिखी। अब आप एक बिल्कुल नए टॉपिक को लेकर आए हैं। आने वाले दिनों में आप किस तरह से पाठकों को सरप्राइज करने को सोच रहे हैं?भारत में कहानियां बहुत सारी हैं। मुझे बौद्ध धर्म के ऊपर लिखना है, जातिवाद के ऊपर लिखना है। मुझे पशुओं और पक्षियों के बारे में लिखना है। भारत में भूगोल के साथ काफी कथाएं जुड़ी हुई हैं। जाति पुराण हैं, जो अलग-अलग जातियों की जो कथा होती है। क्षत्रियों की कहानी अलग है, ब्राह्मणों की कहानी अलग है। उत्तर भारत में जो खत्री लोग हैं उनकी कहानी बहुत अलग होती है। साउथ इंडिया में जाओ तो कुछ अलग कहानियां मिलती हैं। भारत में सरस्वती का भंडार है। मुझे युवा पीड़ी को दिखाना है कि देखो तुम अली बाबा जैसे हो और यह एक ज्ञान की गुफा है जहां पर इतने प्रकार के रत्न हैं। इस रत्न का अनुभव करो, एंजॉय करो, सीखो और जानो कि आपके देश में क्या-क्या है। क्रिएटिव फील्ड के लोग चाहे वे विजुअल मीडियम में हों या राइटिंग में हों, उन सब के मन में काफी आइडिया रहते हैं। कभी कभी समय कम होने पर दिमाग में आता है कि इतनी सारी चीजें मैं कर भी पाऊंगा या नहीं। आपने ऐसा कुछ सोचा है की ये चीज पहले करनी है?मैं हमेशा कहता हूं कि जल्दी क्या है, हमें किसे बचाना है, घर में आग तो नहीं लगी है। यह कहानियां हजारों साल से रही हैं और हजारों साल तक रहेंगी। मैं एक-एक दिन लेकर चलता हूं। ऐसा नहीं सोचता कि मुझे कुछ खत्म करना है। यह कोई एक प्रतियोगिता नहीं है जहां मुझे जीतना है। तो मैं सोचता भी नहीं कि कितना करना है, जब तक कर सकेंगे करेंगे। तुलसीदास जी से पूछा गया कि आप तुलसी रामायण किसके लिए लिख रहे हो, पैसे तो नहीं मिल रहे हैं आपको? तो उन्होंने जवाब दिया कि वे आत्मरती के लिए लिख रहे हैं। जब हम आत्मरती के लिए काम करते हैं तो बहुत ही मजा आता है और कम चलता रहता है। लिखने का वही मजा है कि जब तक आनंद मिलेगा तब तक लिखते रहेंगे। लोगों को कुछ नया बताना काफी अच्छा लगता है।
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