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Diabetes Day: एक्सपर्ट्स ने खराब लिवर को बताया डायबिटीज की असली जड़, खाना सुधारने पर ही बीमारी से रहेंगे दूर

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यह सच है कि शरीर में डायबिटीज की स्थिति इंसुलिन की कमी की वजह से होती है। लेकिन यह भी सच है कि अगर कोई शख्स सही डाइट नहीं लेगा, मांसपेशियों को मजबूत नहीं करेगा तो उसके लिवर में चर्बी जमा होने लगेगी यानी फैटी लिवर की स्थिति बनने लगती है। इंसुलिन का बनना ज्यादा प्रभावित होने लगता है। अगर फैटी लिवर 10-15 बरस तक बना रहता है तो 60 से 70 फीसदी मामले डायबिटीज में बदल जाते हैं। हाई बीपी, कलेस्ट्रॉल की दिक्कत भी मिल सकती है। इंसुलिन है गेटकीपरimageहमारे शरीर में शुगर यानी ग्लूकोज सभी कोशिकाओं (सभी अंगों) को मिले, इसमें इंसुलिन हॉर्मोन की अहम भूमिका होती है। दरसअल, ग्लूकोज ही हमारे शरीर की हर एक कोशिका की असल डाइट है और इंसुलिन ‘गेट कीपर’ है क्योंकि यही कोशिकाओं के लिए ग्लूकोज के दरवाजे खोलता है। इंसुलिन की मौजूदगी के बिना कोशिकाएं ग्लूकोज को जज्ब नहीं कर पातीं और खून में ग्लूकोज यानी शुगर का स्तर बढ़ने लगता है। कोशिकाओं में यही ग्लूकोज चर्बी के रूप में जमा होने लगता है। चाहे हम फल-सलाद खाएं, चावल-रोटी खाएं, दाल-सब्जी या फिर घी-तेल लें, सभी को शरीर ग्लूकोज के रूप में ही यूज करता है। इंसुलिन का उत्पादन पैन्क्रीअस के ‘बीटा’ सेल में होता है। ...तब टाइप-2 डायबिटीजimageकम फिजिकल ऐक्टिविटी और गलत खानपान की वजह से जब पेट के पास चर्बी (विसरल फैट) जमा होने लगती है। साथ ही कलेस्ट्रॉल और ट्राइग्लिसराइड बढ़ने लगता है। फैमिली हिस्ट्री भी हो तो इंसुलिन की सेंसिटिविटी जल्दी कम होती जाती है यानी असर करने की क्षमता कम हो जाए तो यही स्थिति ‘इंसुलिन रेजिस्टेंस’ की बनती है। इससे शुगर जज्ब करने के लिए ज्यादा मात्रा में इंसुलिन की जरूरत पड़ती है। ऐसे में पैन्क्रीअस को ज्यादा मात्रा में इंसुलिन का उत्पादन करना पड़ता है। आखिरकार पैन्क्रीअस के लिए इंसुलिन की पूर्ति करना मुमकिन नहीं हो पाता। फिर शरीर को बाहर से इंसुलिन लेने की जरूरत होती है। यही स्थिति टाइप-2 डायबिटीज की होती है। तब लिवर पर भारी दबावimageशरीर में ग्लूकोज का इस्तेमाल 2 जगहों पर पर होता है- बड़ी मांसपेशियों में और लिवर में। मांसपेशियां तभी ग्लूकोज का भरपूर इस्तेमाल कर पाती हैं, जब वे मजबूत हों। कमजोर मांसपेशियां अपने हिस्से का ग्लूकोज भी लिवर को भेज देती हैं। इससे लिवर को एक्स्ट्रा ग्लूकोज को भी खपाना होता है। ऐसा न होने पर शरीर पहले उसे फैट के रूप में स्टोर करता है यानी फैटी लिवर। इससे भी ज्यादा होने पर खून में छोड़ देता है तो कलेस्ट्रॉल में बढ़ जाता है। ज्यादा होने पर खून की नलियों में चर्बी जमा होने लगती है तो हाई बीपी हो जाता है। 5 उपायों से हमारा लिवर मज़बूत, डायबिटीज काबू और हार्ट सेफimageअगर लिवर मजबूत होगा, वह सही तरीके से काम करेगा तो यह स्वाभाविक है कि डायबिटीज की परेशानी घेरेगी ही नहीं। दरअसल, लिवर को मजबूत करने के लिए जो उपाय किए जाते हैं, वे ही शुगर की परेशानी से बचने या होने पर उसे काबू में रखने के लिए अपनाए जाते हैं। ये उपाय हाई बीपी को काबू करने और खून की नलियों से कलेस्ट्रॉल निकालने में भी कारगर हैं। सीधे कहें तो कुछ उपायों को अपनाकर कई तरह की परेशानियों से बचा जा सकता है। 1. सही खानपान से जिगर को पहलवान बनाकरimageहर दिन खाने में फाइबर की सही मात्रा हो। एक प्लेट (300 से 400 ग्राम) मौसमी सलाद हो (खीरा, गाजर, चुकंदर, टमाटर, मूली, धनिया पत्ते आदि)। दो मौसमी फल, एक कटोरी स्प्राउट्स जैसी चीजें जरूर शामिल हों। इन सभी के अलावा कार्बोहाइड्रेट (चावल, गेहूं की रोटी) की मात्रा कम हो, हां मिलेट्स (रागी, जुआर या बाजरा) को हफ्ते में 2 से 3 दिन जरूर खाना चाहिए। फाइबर लेने से ग्लाइसेमिक इंडेक्स भी कम होता है। देसी घी, सरसों तेल आदि का सेवन करना चाहिए, पर जरूरत के हिसाब से। हर दिन 2 से 3 चम्मच काफी है।क्या कम या नहीं खाना: मैदा, चीनी, रिफाइंड जैसे अल्ट्राप्रोसेस्ड फूड कम से कम मात्रा में लेने हैं। खासकर ऐसे लोगों को जिनकी फैमिली में डायबिटीज, बीपी आदि की हिस्ट्री रही हो। पैक्ड फूड आइटम्स, जंक फूड, पैक्ड जूस आदि से बचना है। 2. एक्सरसाइज़ से मांसपेशियां मज़बूत बनाकरimageएक्सरसाइज़ लिवर को आराम देने के लिए जरूरी है। दरअसल, जब हम आराम कर रहे होते हैं, तब भी मजबूत मांसपेशियां कैलरी बर्न करती रहती हैं। जापान के सूमो पहलवानों को देखकर ऐसा लगता है कि इन्हें तो जरूर फैटी लिवर, शुगर और बीपी की परेशानी होती होगी। पर यह जानकार हैरानी होगी कि इन्हें लाइफस्टाइल की परेशानी अमूमन नहीं होती क्योंकि भले ही ये बहुत ज्यादा वजनदार होते हैं, लेकिन इनके शरीर की मांसपेशियां काफी मजबूत होती हैं।ये खूब एक्सरसाइज करते हैं। ऐसे में जब ये बहुत ज्यादा डाइट लेते हैं तो डाइट से बनने वाले ग्लूकोज की ज्यादातर मात्रा को मांसपेशियां ही अपने इस्तेमाल में ले आती हैं। इससे लिवर में ग्लूकोज कम पहुंचता है। इससे उनके लिवर में अमूमन फैट की मात्रा जमा नहीं हो पाती जब तक ये पहलवानी करते हैं यानी एक्सरसाइज करते रहते हैं।दरअसल, एक्सरसाइज़ करने से ‘एडिपोनेकटिन’ नाम का हॉर्मोन रिलीज होता है जो लिवर में फैट जमने से रोकता है। जापान में सूमो पहलवान सुबह 5 बजे से ट्रेनिंग शुरू कर देते हैं और यह 5 घंटे तक चलती है। ऐसे में यह समझा जा सकता है कि मोटापा होने पर भी अगर कोई शख्स एक्सरसाइज करता है तो मुमकिन है कि वह इस तरह की परेशानी से बचा रहे। इसलिए अगर हम भी हर दिन एक्सरसाइज करें, खासकर स्ट्रैंथनिंग एक्सरसाइज और अपनी मांसपेशियों को मजबूत करें तो मुमकिन है कि फैटी लिवर और डायबिटीज समेत दूसरी परेशानियां होने की आशंका भी कम हो जाएगी। कितनी देर करें एक्सरसाइज़वॉर्मअप: 15 से 20 मिनट वॉक या 5 से 10मिनट डांसस्ट्रैथनिंग एक्सरसाइज: 30 से 35 मिनट, इसमें पुशअप्स, डंबल उठाना, वेट लिफ्टिंग समेत दूसरी कसरत भी शामिल। 3. शराब से दूरी रखकर, लिवर को हेल्दी बनाकरimage‘मुझे पीने का शौक नहीं, पीता हूं गम भुलाने को।’ आपने भी बॉलिवुड फिल्म के गाने की यह लाइन सुनी होगी। भले ही लोग शराब पीने के बहाने ढूंढते हों। शराब का सहारा लेकर अपने गम को दूर करने की बात करते हों, लेकिन लिवर के लिए शरीर में शराब की मौजूदगी ही खतरनाक है। जब कोई लगातार शराब का सेवन करता है तो इसे भी लिवर पचाता है। अल्कोहल से बनने वाले फैट को भी लिवर स्टोर करता है।यह खराब फैट है या कह सकते हैं कि जहर है। इससे लिवर में सूजन आ सकती है। साथ ही फैटी लिवर की परेशानी भी बहुत बढ़ जाती है। कई बार तो मामला लिवर सिरोसिस तक पहुंच जाता है। लिवर में घाव होना, पानी भरना बहुत ही कॉमन है। इसके बाद जिस तरह की परेशानी बढ़ती है, वह हेपेटाइटिस से काफी मिलती है, इसलिए इसे अल्कोहलिक हेपेटाइटिस भी कहते हैं। 4. मोटापे को काबू करकेimageजो शख्स प्री-डायबिटिक स्टेज में है, वह अपने शरीर का 10 फीसदी वजन कम करके खुद को डायबिटीज स्टेज में जाने से रोक सकता है। इसी तरह जिन्हें डायबिटीज हो चुकी है, वे भी 10 फीसदी वजन कम करके डायबिटीज पर काबू पा सकते हैं। बॉडी मास इंडेक्स (BMI: वजन और लंबाई के अनुपात को कहते हैं।) 18 से 23 के बीच रखें। कम ग्लाइसेमिक इंडेक्स वाली चीजें खाएं। 5. नींद पूरी करकेimageजिन लोगों को नींद अच्छी आती है या जो हर रात अमूमन 7 से 8 घंटे सोते हैं, अक्सर उनमें फैटी लिवर की स्थिति कम देखी जाती है। पर यह नींद सेहतमंद, बिना दवा के और गहरी होनी चाहिए। नींद का सीधा कनेक्शन मेटाबॉलिजम से, हार्मोन संतुलन से है। अच्छी नींद से हमारी पाचन क्षमता और जज्ब करने की क्षमता बेहतर होती है। इंसुलिन सेंसिटिविटी में भी सुधार होता है और स्ट्रेस को भी कम करती है। Fatty Liver Index (FLI) बताता है बीमारियों का रिस्कimageUK (ब्रिटेन ) Biobank ने फैटी लिवर के असर को देखने के लिए 3,27,800 लोगों पर स्टडी की। इस स्टडी का यह मकसद यह पता लगाना था कि फैटी लिवर (खासकर नॉन-एल्कोहलिक फैटी लिवर डिजीज या NAFLD) का शरीर के अलग-अलग अंगों और शरीर की पूरी सेहत पर क्या असर होता है। इसमें देखा गया कि फैटी लिवर की वजह से किस बीमारी का खतरा कितना ज्यादा बढ़ जाता है। यहां तक कि फैटी लिवर की वजह से इंसुलिन रेजिस्टेंस की स्थिति ज्यादा खराब होती जाती है।यहां समझने वाली बात यह है कि किसी शख्स का फैटी लिवर इंडेक्स निकालने के लिए उस शख्स का BMI (बॉडी मास इंडेक्स: वजन और ऊंचाई के अनुसार), कमर की चौड़ाई, शरीर में मौजूद Tryglicerides (खून में मौजूद फैट) और GGT (गामा-ग्लूटामिल ट्रांसपेप्टिडेज एक एंजाइम है) के स्तर को ध्यान में रखा जाता है। हाई GGT का मतलब है कि उस शख्स का लिवर बीमार हो रहा है। मुमकिन है कि उस शख्स को हेपेटाइटिस, गंभीर फैटी लिवर की परेशानी हुई हो या फिर शराब ने लिवर खराब किया हो। GGT का स्तरपुरुषों के लिए: 8 से 61 यूनिट प्रति लीटर (U/L)महिलाओं के लिए: 5 से 36 यूनिट प्रति लीटर (U/L)फैटी लिवर की वजह से इन बीमारियों का खतरा कई गुणा ज्यादादिल की बीमारियां: 2.14स्ट्रोक: 1.31हाई बीपी: 2.84टाइप 2 डायबिटीज: 4.14कैंसर: 1.69 स्टडी: UK Biobank लिवर के कुछ ज़रूरी टेस्टimageLFT: इसे लिवर फंक्शन टेस्ट भी कहते हैं। लिवर के काम को जांचने के लिए सबसे कॉमन टेस्ट यही है। इस टेस्ट को कराकर देखते हैं कि फैटी लिवर की क्या स्थिति है।खर्च: 400 से 700 रुपये, कैसे: खून से, रिपोर्ट: उसी दिनGGT: Gamma-Glutamyl Transferase (GGT) एंजाइम खून में तब मिलता है जब बाइल डक्ट या लिवर में कुछ खराबी आनी शुरू होती है। इससे लिवर की स्थिति का पता चलता है।खर्च: 200 से 800 रुपयेकैसे: खून सेरिपोर्ट: उसी दिनSerum Albumin: जब लिवर से बना प्रोटीन एल्बुमिन का लेवल खून में कम होने लगता है, तब इस टेस्ट से ही पता चलता है कि लिवर सही तरीके से काम कर रहा है या नहीं।खर्च: 125 से 200 रुपये,कैसे: खून से, रिपोर्ट: उसी दिनFibroscan: इस टेस्ट को लिवर का गोल्डन टेस्ट भी कहते हैं। यह अल्ट्रासाउंड तकनीक पर आधारित है। इससे लिवर को हो चुके नुकसान के बारे में अमूमन पूरी जानकारी मिल जाती है।खर्च: 4000 से 6000 रुपये,कैसे: अल्ट्रासाउंडरिपोर्ट: उसी दिन या अगले दिन एक्सपर्ट पैनल-डॉ. एस. के. सरीन, डायरेक्टर, ILBS-डॉ. पियूष रंजन, वाइस चेयरमैन-गैस्ट्रो, सर गंगा राम हॉस्पिटल-डॉ. राजेश खडगावत, प्रफेसर, एंडोक्राइन डिपार्टमेंट, AIIMS-डॉ. अंशुल वार्ष्णेय, सीनियर कंसल्टेंट, फिजिशन
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