Top News
Next Story
NewsPoint

शारदा सिन्हा के गीतों के खिलाफ थीं सासु, गुस्से में छोड़ दिया था खाना-पीना, ऐसे हुआ था उनका पहला गाना रिकॉर्ड

Send Push
बिहार की फोक सिंगर शारदा सिन्हा अब हम सबके बीच नहीं रहीं। बेटे ने बीती रात 5 नवंबर को पोस्ट शेयर कर भारी दिल से ये दुखद खबर पूरी दुनिया को सुनाई। उन्होंने अपने इस पोस्ट में लिखा, 'आप सब की प्रार्थना और प्यार हमेशा मां के साथ रहेंगे। मां को छठी मईया ने अपने पास बुला लिया है । मां अब शारीरिक रूप में हम सब के बीच नहीं रहीं।' आइए जानते हैं शारदा सिन्हा एक आम महिला से कैसे बनीं इतनी बड़ी सिंगर।शारदा सिन्हा के गुजरने की खबर आने से पहले ही बेटे ने ये इशारा कर दिया था कि अब उनके लिए मुश्किल वक्त आ गया है। उन्होंने सभी चाहने वालों से उनके लिए प्रार्थना करने की अपील की थी। हालांकि, होनी को टाला नहीं जा सकता है और मंगलवार रात करीब 9:20 बजे दिल्ली स्थित AIIMS में आखिरी सांस ली। शारदा सिन्हा, जिनकी पहचान ही उनके छठ गीत हैं और इन गीतों को लिखने और इसे गाने की कहानी भी काफी मजेदार है।
करीब 30-35 साल पहले तक कोई बेटी पैदा नहीं हुई थीभास्कर से हुई बातचीत में करीब 2 साल पहले शारदा सिन्हा ने अपनी जिंदगी से जुड़ी कई कहानियां सुनाई थी। उन्होंने कहा था, 'घर में मेरे जन्म से 30-35 साल पहले तक कोई बेटी पैदा नहीं हुई थी। बहुत मन्नतों के बाद मेरा जन्म हुआ। 8 भाइयों की इकलौती बहन हूं और मेरी मां ने मेरे लिए कोसी भी भरा था।'
शारदा सिन्हा का पहला गीत जो रिकॉर्ड हुआअपने पहले गीत को याद करते हुए उन्होंने कहा था, 'मेरा पहला गीत जो रिकॉर्ड हुआ, वो पहली बार मैंने अपने भैया की शादी में गाया था। ये गाना मैंने भैया से कोहबर द्वार छेकाई पर नेग मांगने के लिए गाया था । दरअसल बड़ी भाभी ने बोला था कि ऐसे नेग नहीं मिलेगा, गाकर मांगिए। तो मैंने गाया और वो इस तरह था- द्वार के छिकाई नेग पहले चुकैओ, हे दुलरुआ भैया, तब जहिया कोहबर आपन।' ठाकुरबारी में भजन गाने का मिला ऑफरउन्होंने बताया था कि साल 1970 में उनकी शादी हुई और वो अपने ससुराल बेगूसराय गईं, जहां का माहौल बिल्कुल अलग था। सासु मां को तब तक उनके गाने बजाने से परहेज नहीं थी जब तक वो घर की चाहरदीवारी के अंदर हो रहा हो। हालांकि, उनके ससुर जी को भजन कीर्तन पसंद था। शारदार सिन्हा ने बताया था, 'शादी हुए 5 दिन ही हुए थे कि गांव के मुखिया जी ने मेरे ससुर जी को कहा कि सुना है आपकी बहू बहुत अच्छा गाती हैं, तो एक-दो गीत गा दें। ' उन्होंने कहलवाया कि- आप अपनी बहू से बोलिए कि वह ठाकुरबारी (गांव का मंदिर) में भजन गा दें। और इसी के साथ ससुर जी ने ठाकुरबारी में भजन गाने की इजाजत दे दी। बिना नजर मिलाए ससुर के पीछे-पीछे चली गईंहालांकि, ये सब सासु मां को अच्छा नहीं लगा। उन्हें ये नहीं पसंद था कि उनकी बहू लोगों के बीच में जाकर गाएं। शारदा सिन्हा ने अपने इंटरव्यू में कहा था, 'मुझे गाने का मौका मिला था और मैं भी बिना कुछ सोचे सास से बिना नजर मिलाए ससुर के पीछे-पीछे चली गई। सिर पर पल्लू लेकर तुलसीदास जी का भजन गाने लगी- मोहे रघुवर की सुधि आई।' धीरे-धीरे सास का विरोध कम होता गया उन्होंनेआगे कहा था, 'गाने का सुख इतना बड़ा था कि भूल ही गई कि कहां हूं। गाने के बाद ससुर जी और गांव के बड़े-बुजुर्गों ने आशीष दिया। मगर, सास इतनी नाराज हुईं कि दो दिन तक खाना नहीं खाया। इसके बाद किसी तरह पति ने उन्हें मनाया और उनसे कहा- अगर हम गाते तो क्या हमें घर से निकाल देतीं। इसी के साथ धीरे-धीरे सास का विरोध कम होता गया।' मेरे पति बचपन में बहुत बीमार रहते थे'बचपन से ही हमारे घर में खासकर के नानी पटना आकर छठ करती थीं। कहते हैं कि गंगा नदी में अर्घ्य देना बहुत ही शुभ और पावन माना जाता है। उसी समय से घर में गाए जाने वाले छठ मेरे कान में पड़ते थे और वो सुनने में इतने अच्छे लगते कि याद रह जाते थे। उन्होंने कहा, 'मेरी मां के अलावा मेरी सास भी छठ करती थीं। बड़ी बहू होने के कारण मुझे सासू मां छठ की हर रीत और उससे जुड़ी कहानियां बताती थीं। मेरी सासु मैं छठ इसलिए करती थीं क्योंकि मेरे पति बचपन में बहुत बीमार रहते थे। उन्होंने छठी मैया से उनके ठीक होने की प्रार्थना की। मैंने अपने जीवन के इन्हीं कहानियों को संजोकर गांव-घर मे गाए जाने वाले छठ गीत लिखे और उन्हें रिकॉर्ड किया।' छठ के चार ऐसे गीत'डोमिनी बेटी सुप लेले ठार छे', 'अंगना में पोखरी खनाइब, छठी मैया आइथिन आज' 'मोरा भैया गैला मुंगेर' और श्यामा खेले गैला हैली ओ भैया' ये छठ के चार ऐसे गीत थे, जो मैंने 1978 में रिकॉर्ड किया था। 'ये व्रत मैंने अपने पति, बेटे-बेटी, परिवार के लिए रखा'उन्होंने छठ गीतों को लेकर भी काफी कुछ कहा है। उन्होंने कहा, 'केलवा के पात पर उगे ला सुरज देव', 'हो दीनानाथ', 'सोना साठ कुनिया हो दीनानथ' कुछ ऐसे गाने हैं, जो मैंने अपने घर में नानी को और शादी के बाद छठ के दौरान अपनी सासु मां को गाते सुना था। उन्होंने बताया कि इन गीतों के जरिए सूर्य देव से जल्दी उगने की प्रथाना की जाती है। उन्हें ये भी बताया जाता है कि ये व्रत मैंने अपने पति, बेटे-बेटी, परिवार की अच्छे स्वास्थ्य और सुख-शांति के लिए किया है। यहीं से मुझे लगा कि इन गीतों को जरूर गाना चाहिए।'
Explore more on Newspoint
Loving Newspoint? Download the app now