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किसी के बेटे तो किसी की बेटी को टिकट... महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में एक बार फिर से राजनीतिक परिवारों का दबदबा

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मुंबई: महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में एक बार फिर से राजनीतिक परिवारों का दबदबा देखने को मिल रहा है। अधिकतर नए उम्मीदवार स्थापित राजनीतिक परिवारों के बेटे, बेटियां या करीबी रिश्तेदार हैं। कोई भी पार्टी, चाहे वह छोटी ही क्यों न हो, इस बढ़ते चलन से अछूती नहीं है। राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि इन नए उम्मीदवारों को चुनावी योग्यता वाला सबसे उपयुक्त उम्मीदवार माना जाता है। इसका मतलब है कि इन उम्मीदवारों के पास पहले से ही एक समर्थक वर्ग और मंच मौजूद है जो उन्हें विधानसभा तक पहुंचाने में मदद कर सकता है।चुनावों में अपनी किस्मत आजमा रहे कुछ प्रमुख नए चेहरों में एनसीपी (एससीपी) के लिए दिवंगत आर. आर. पाटिल के बेटे रोहित, शरद पवार के पोते युगेंद्र पवार, मनसे सुप्रीमो राज ठाकरे के बेटे अमित और बीजेपी के राज्यसभा सदस्य अशोक चव्हाण की बेटी सृजय शामिल हैं। वामपंथी विचारधारा वाली किसान और मजदूर पार्टी भी इस मामले में पीछे नहीं है। दिवंगत गणपतराव देशमुख के पोते बाबासाहेब और पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष जयंत पाटिल की बहू चित्रलेखा भी चुनावी मैदान में हैं। बेटियां भी पिता के नक्शेकदम परकुछ राजनेताओं की बेटियां भी अपने पिता के नक्शेकदम पर चल रही हैं। उदाहरण के लिए, कोल्हापुर शाही परिवार की सदस्य और पूर्व मंत्री स्वर्गीय दिग्विजय खानविलकर की बेटी माधुरीराजे छत्रपति। वो कोल्हापुर उत्तर से चुनावी शुरुआत कर रही हैं। खानविलकर 2004 तक करवीर से पांच बार विधायक रहे। ऐसा ही एक और उदाहरण पूर्व सांसद रावसाहेब दानवे की बेटी संजना जाधव हैं, जो कन्नड़ से शिवसेना के टिकट पर पहली बार चुनावी मैदान में हैं। 2019 के चुनाव में शिवसेना के आदित्य ठाकरे, राकांपा के रोहित पवार, कांग्रेस के रुतुराज पाटिल, राकांपा के जीशान सिद्धिकी, कांग्रेस के धीरज देशमुख और राकांपा के अदिति तटकरे ने सफल शुरुआत की थी। ठाकरे कैबिनेट मंत्री और तटकरे पहले कार्यकाल में राज्य मंत्री और फिर कैबिनेट मंत्री बने। अधिकांश शीर्ष नेता राजनीतिक परिवारों सेमहाराष्ट्र में आज अधिकांश शीर्ष नेता राजनीतिक परिवारों से ताल्लुक रखते हैं। उपमुख्यमंत्री देवेन्द्र फडणवीस और अजीत पवार को पारिवारिक विरासत मिली है। फडणवीस, जो नागपुर के मेयर थे और 1999 में विधायक बने, पूर्व विधायक स्वर्गीय गंगाधर फडणवीस के बेटे हैं। अजीत पवार 32 साल की उम्र में सांसद बने, उन्होंने अपने चाचा शरद पवार द्वारा प्रतिनिधित्व की जा रही सीट से जीत हासिल की। राकांपा (एससीपी) के प्रदेश अध्यक्ष जयंत पाटिल पूर्व मंत्री स्वर्गीय राजारामबापू पाटिल के बेटे हैं। वह 1990 में 28 साल की उम्र में विधायक बने थे। कांग्रेस के पूर्व मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चव्हाण 40 साल के थे जब उन्होंने कराड लोकसभा सीट से प्रवेश किया था। आरआर पाटिके के बेटे रोहित मैदान मेंपूर्व उपमुख्यमंत्री और राज्य के गृह मंत्री आर. आर. पाटिल का 2015 में निधन हो गया था। उन्हें प्यार से आबा कहा जाता था। उन्होंने सांगली के तासगांव में जिला परिषद चुनाव जीतकर राजनीति में कदम रखा था। वे एनसीपी के साथ थे और शरद पवार के वफादार थे। उनके बेटे रोहित उस समय 16 साल के थे जब आबा का निधन हुआ था। वे अपनी मां सुमंता के साथ चुनाव प्रचार के लिए राजनीति में कूद पड़े, जिन्होंने बाद में उपचुनाव जीता। टिकट मिलने पर रोहित ने कही ये बातरोहित का कहना है कि मुझे कभी ऐसा नहीं लगा कि मेरे पिता आसपास नहीं हैं। क्योंकि लोगों ने मुझे उनकी कमी महसूस नहीं होने दी। मेरा परिवार उन लोगों को कभी नहीं भूला जिन्होंने मेरे पिता को 1990 में अपना पहला चुनाव लड़ने और जीतने में मदद की थी। यही कारण हो सकता है कि मैं उस विरासत को आगे बढ़ाने के लिए चुनावी मैदान में हूं। बता दें कि राहुल कुछ महीने पहले ही 25 साल के हुए हैं। वे उसी सीट से चुनाव लड़ेंगे जिसका प्रतिनिधित्व उनके पिता ने विधानसभा में किया था। परिवार के सदस्यों को चुनावी मैदान में उतारने के कारणशिवाजी यूनिवर्सिटी कोल्हापुर में राजनीति विज्ञान विभाग के प्रोफेसर प्रकाश पवार का कहना है कि राजनेताओं द्वारा अपने बच्चों और परिवार के सदस्यों को चुनावी मैदान में उतारने का सबसे बड़ा कारण राजनीति में परिवारों का दबदबा बनाए रखना है। अगली पीढ़ी के नेताओं को पारिवारिक विरासत का फायदा मिलता है। इन परिवारों का या तो किसी जाति या समुदाय में दबदबा होता है या फिर सहकारी, शिक्षा क्षेत्रों और उद्योगों में उनका प्रभाव होता है। वे अप्रत्यक्ष रूप से हजारों लोगों से जुड़े होते हैं। कुछ राजनेता, जिन्होंने राजनीतिक दलों की शुरुआत की थी, वे अपनी अगली पीढ़ी को राजनीति में लाते हैं ताकि पार्टी के कामकाज को सुचारू रूप से चलाया जा सके।
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