Indian Students in UK Universities: भारतीय छात्र ब्रिटेन की यूनिवर्सिटीज में अप्लाई करने से बच रहे हैं। यूनिवर्सिटीज के हालातों पर जारी एक नई रिपोर्ट में इसका खुलासा हुआ है। भारतीयों के एडमिशन लेने से बचने की वजह से पहले से ही टाइट बजट पर चल रही यूनिवर्सिटीज की आर्थिक मुश्किलें बढ़ गई हैं। ब्रिटेन के गृह मंत्रालय के 2022-23 से 2023-24 तक के 'कन्फर्मेशन ऑफ एक्सेप्टेंस फॉर स्टडीज' (CAS) आंकड़ों के आधार पर ऑफिस फॉर स्टूडेंट्स (OfS) ने एक एनालिसिस जारी किया है। OfS की रिपोर्ट में बताया गया है कि भारतीय छात्रों की संख्या में 20.4% गिरावट आई है, जो 1,39,914 से घटकर 1,11,329 हो गई है। रिपोर्ट के मुताबिक, भारत ही नहीं, बल्कि कई सारे देशों से छात्रों ने ब्रिटेन में एडमिशन लेने से बचना शुरू कर दिया है। शिक्षा विभाग का एक गैर-विभागीय सार्वजनिक निकाय OfS ने बताया कि अंतरराष्ट्रीय छात्रों के लिए स्पांसर एक्सेप्टेंस जारी करने की कुल संख्या में 11.8 फीसदी की गिरावट हुई है। भारतीय और नाइजीरियाई छात्रों की संख्या सबसे कम हुई है। ब्रिटिश यूनिवर्सिटीज को होगा अरबों रुपये का घाटारिपोर्ट में चेतावनी दी गई है कि भारत, नाइजीरिया और बांग्लादेश जैसे देशों के छात्रों पर बहुत ज्यादा निर्भर रहने वाले वित्तीय मॉडल वाली यूनिवर्सिटीज इस गिरावट की प्रवृत्ति से काफी प्रभावित होने वाली हैं। OfS ने आगाह किया है, "कुछ देशों से अंतरराष्ट्रीय छात्रों की संख्या में काफी गिरावट आई है, जो ब्रिटेन में पढ़ाई करने के लिए महत्वपूर्ण संख्या में छात्र भेजते हैं।" रिपोर्ट में कहा है कि अगर मौजूदा हालात ऐसे ही बने रहते हैं, तो इसकी वजह से ब्रिटिश यूनिवर्सिटीज को अरबों रुपये का घाटा भी होने वाला है। क्यों ब्रिटेन नहीं आना चाहते भारतीय छात्र?भारतीय छात्रों के ग्रुप्स का कहना है कि नौकरी के कम अवसर और कुछ शहरों में एंटी-इमिग्रेशन दंगों के बाद पैदा हुई सुरक्षा चिंताओं के चलते एडमिशन कम हुए हैं। इंडियन नेशनल स्टूडेंट्स एसोसिएशन (INSA) UK ने कहा कि भारतीय छात्रों की संख्या में कमी को लेकर वह हैरान नहीं है, क्योंकि सरकार ने विदेशी छात्रों को अपने डिपेंडेंट साझेदारों (परिवार के सदस्यों) और जीवनसाथी को साथ लाने के नियमों को कड़ा किया है। INSA UK के अध्यक्ष अमित तिवारी ने कहा, "नई पॉलिसी को तहत छात्रों को अपने डिपेंडेंट को ब्रिटेन लाने की इजाजत नहीं है। यहां की आर्थिक स्थिति और हाल ही में हुई दंगों की कहानियों को देखते हुए, जब तक सरकार इस मुद्दे का समाधान नहीं करती, तब तक ब्रिटिश यूनिवर्सिटीज की हालत खराब रहने वाले हैं। यहां की यूनिवर्सिटीज भारतीय छात्रों पर बहुत ज्यादा निर्भर हैं।"नेशनल इंडियन स्टूडेंट्स एंड एलुमनी यूनियन (NISAU) UK की चेयरपर्सन सनम अरोड़ा ने कहा, "कई कारणों से संख्या में गिरावट आई है, जिसमें डिपेंडेंट पर कंजर्वेटिव पार्टी का बैन, पोस्ट-स्टडी वर्क वीजा को लेकर भ्रम, स्किल वर्कर्स वेतन सीमा में इजाफा और ब्रिटेन में नौकरियों की कमी शामिल है।"
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