'मुझे कुछ कहना है', 'गायब', 'खाकी', 'क्या कूल हैं हम', 'गोलमाल', और 'द डर्टी पिक्चर' जैसी फिल्मों के एक्टर और प्रोड्यूसर तुषार कपूर को भी लगता है ओटीटी रास आ गया है। ओटीटी पर उनकी वेब सीरीज 10 जून की रात का सीजन टू भी आ गया है। उनसे एक खास बातचीत। हाल ही में आपने अपने एक इंटरव्यू में कहा कि स्टार किड होने के नाते आपको बार-बार नीचे घसीटा गया, आपको कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा?-हां, ये सच है। आप पर दबाव ज्यादा होता है। आप पर निरंतर निगरानी रखी जाती है। पहले मुझ पर इन बातों का गहरा असर होता था, मगर अब मैं इन बातों को समझ चुका हूं। मीडिया और इंडस्ट्री का एक हिस्सा ऐसा है कि उनके जहन में एक बात होती है कि ये किसी का बेटा है या बेटी है, तो ये आगे क्यों जाए? और अगर वो आगे चला भी गया, तो हम उसकी कमियां कैसे ढूंढें, उसको नीचे कैसे लाएं? जब तक वह चढ़ रहा है, उसे कैसे गिराया जाए। मैं ये नहीं कहता कि पूरी इंडस्ट्री या संपूर्ण मीडिया ऐसा है, कुछ लोग हैं, जो ऐसी सोच रखते हैं, मगर हां, दर्शक ऐसा बिलकुल नहीं है। ऑडियंस पारदर्शी होती है। वो कलाकार को काम के बलबूते पर जज करते हैं। एक्टर की फैन फॉलोइंग किसी के बेटा या बेटी होने की वजह से नहीं हो सकती। उनका इंटेंशन पैसा वसूल मनोरंजन से होता है बस, तो मैं ऑडियंस को ध्यान में रखता हूं और बाकी अपने आस-पास की नेगेटिविटी के शोर को इग्नोर कर देता हूं। आपने तो बिना सोशल मीडिया का दौर भी देखा है, मगर अब आप इंटरनेट की दुनिया और ट्रोल्स को कैसे हैंडल करते हैं? - मैं सोशल मीडिया पर ज्यादा एक्टिव नहीं रहता। अपनी पोस्ट करके निकल जाता हूं। मैं इन प्लैटफॉर्म्स पर ज्यादा टीका-टिप्पणी नहीं करता, क्योंकि कई बार ये बहुत ज्यादा टॉक्सिक हो जाता है। मैंने देखा है कि जब आप सोशल मीडिया पर ज्यादा होते हैं, तब इस दुनिया की बातें आपके दिमाग में घूमती रहती हैं और आपको ओवरथिंक करने पर मजबूर कर देती हैं। मैं ट्रोल्स पर ध्यान नहीं देता। आज सोशल मीडिया इतना बड़ा हो गया है कि यहां आप खुद को खो सकते हैं। आज साइबर क्राइम जैसी चीजें भी बढ़ती जा रही हैं, तो इसे सीमित रूप से इस्तेमाल करना ही सही है। हम देख रहे हैं कि समाज भी बदल गया है। आज नेगेटिविटी भी बहुत है और इस माध्यम के जरिए जल्द से जल्द पैसा कमाने की होड़ भी। एक सिंगल पैरेंट होने के नाते आपको अपने बेटे पर सबसे ज्यादा गर्व कब महसूस हुआ?-मैं तो उस पर रोज गर्व महसूस करता हूं, क्योंकि वह बहुत ही बैलेंस लड़का है। वह काफी समझदार है, मगर पिता होने के नाते मैं बहुत सतर्क रहता हूं अपनी परवरिश को लेकर। मैं ये नहीं सोच सकता कि मैं पिता हूं, तो सब सही कर रहा हूं। जैसे कई बार मुझे लगता है कि मुझे उसके सामने जोर से बात नहीं करनी चाहिए या उसे किसी क्षेत्र में और ज्यादा प्रोत्साहित करना चाहिए।
आपकी सीरीज '10 जून की रात के सीजन 2' की बात करें, तो इसके लिए आपको काफी नाइट शूटिंग करनी पड़ी। उस दौरान सिंगल पैरेंट होने के नाते आपने बेटे लक्ष्य की देखभाल के साथ-साथ आपने काम को कैसे मैनेज किया?-इसकी शूटिंग जनवरी में शुरू हुई थी और पूरे दो महीने शूटिंग होती रही थी। मार्च में गैप था फिर मई और जून में शूटिंग थी। उस दौरान शूटिंग का शेड्यूल इतना हैक्टिक होता था कि मैं कभी -कभी उसका चेहरा भी देख नहीं पाता था। कई बार ऐसा हुआ कि मैं तीन-चार दिन उससे मिल भी नहीं पाया। कई बार सिर्फ आते-जाते शक्ल देख लेता था। मगर अब वो आठ साल का हो गया है, तो काफी समझदार और आत्मनिर्भर हो गया है। वह समझता था कि मैं काम पर हूं और वो भी अपने स्कूल और स्कूल की एक्टिविटीज में मसरूफ था। उसकी देखभाल के लिए मेरे पैरेंट्स और एक दीदी है, जो उसका खयाल रखते हैं। आजकल के बच्चों को स्कूल में काफी एक्टिविटीज होती हैं। लक्ष्य फुटबॉल भी खेलता है। चूंकि मैं नाइट शूट में था, तो दोपहर में उसका ओपन हाउस या पैरेंट-टीचर मीटिंग या दूसरे किसी स्कूल के काम के समय में कैसे भी उन चीजों को अटैंड कर लेता था।मैंने इसी तरह अपने काम और उसे मैनेज किया है। जिस दिन मेरा ऑफ होता था, हम बाप-बेटे मिलकर खूब समय बिताते और सारी कसर निकाल देते थे।
सीरीज में आपके किरदार का नाम पनौती है। आपने अपने करियर में पनौती वाला दौर कब महसूस किया?-कई बार आपके करियर में ऐसा दौर आता है, जब आपको लगता है कि चीजें सही नहीं हो पा रही हैं। करियर में जब बुरा वक्त चल रहा हो, तो लगता है कि मैं जो कुछ भी कर रहा हूं, मेरी मेहनत रंग नहीं ला रही है और ये शायद पनौती ही होगी। जैसे मेरी फिल्म थी 'लक्ष्मी', उसे 7 साल लगे बनाने में। निर्माता के रूप में वो मेरी पहली फिल्म थी। फिल्म (कंचना) के राइट्स मैंने 2013 में खरीदे थे, मगर उसकी कास्टिंग में अड़चने आईं, और भी कई बाधाएं आईं और तब लगा कि ये क्या शनि या पनौती लगी है? मगर मैं एक बात जरूर कहना चाहूंगा कि वक्त कितना भी बुरा क्यों न हो, आपको हार नहीं माननी चाहिए। उसे पनौती मान कर हिम्मत नहीं छोड़नी चाहिए और मेहनत करते रहनी चाहिए। आप अपने हार्ड वर्क से अपना भाग्य को भी बदल सकते हैं। आपने कहा कि मेहनत से किस्मत बदली जा सकती है, मगर न्यूमरोलॉजी में भी आपका विश्वास दिखता है। आपने अपने और बेटे लक्ष्य की स्पेलिंग में डबल एस लगाया हुआ है? -सच कहूं, तो मुझे इन चीजों का उतना आइडिया नहीं है, मगर मेरा परिवार न्यूमरोलॉजी में यकीन करता है और उन्होंने ही मुझे न्यूमरोलॉजिस्ट से मिलवाया। उन्होंने कहा कि अगर मैं अपने नाम में डबल एस लगा लूं, तो ये मेरे लिए सही रहेगा। ऐसा नहीं है कि मैं मानता हूं या नहीं मानता, मैंने अपने परिवार की बात मानी है और आजकल तो सभी लोग करते हैं। कोई न्यूमरोलॉजी कंसल्ट करता है। एक्टर्स ने अपने नाम बदल दिए हैं। मेरी बहन (एकता कपूर) ने भी न्यूमरोलॉजी करवाई है। मुझे इसका इतना ज्ञान नहीं है, मगर मुझे लगता है, इसमें कुछ बात तो होगी, जो लोग इस पर इतना यकीन करते हैं।
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