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कोई मेरा बच्चा तो लौटा दो, एक बार चेहरा तो दिखा दो, झांसी अग्निकांड पीड़ितों का दर्द झकझोड़ रहा

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झांसी: हाय मेरा बच्चा, एक बार चेहरा तो दिखा दो। एक बार आंचल से लगा लेने दो... कोई मेरा बच्चा लौटा दो, हमें कुछ नहीं चाहिए, पहला बच्चा था हमारा, अभी आठ तारीख को पैदा हुआ था …वो जल गया... …Iयह कहते हुए प्रसूता नीलू बेहोश हो गई। पति ने उन्हें संभाला। झांसी मेडिकल कॉलेज के एनआईसीयू में आग लगने की घटना में 10 नवजात शिशुओं की मौत हो गई। मेडिकल कॉलेज के बाहर मां-बाप तड़प रहे हैं। वो इस हादसे को सहन नहीं कर पा रहे हैं। कर भी कैसे पाएंगे। नौ महीने गर्भ में रहने के बाद जब बच्चा दुनिया में आया तो पूरे परिवार में जश्न मनाया गया था लेकिन किसको पता था कि ये खुशी चंद दिनों में रुख्सत हो जाएगी। इस वीभत्स हादसे में दस नवजात बच्चों की जान चली गई। ‘मां और पत्नी का रो-रो कर बुरा हाल’झांसी के महारानी लक्ष्मी बाई मेडिकल कॉलेज के निओ नैटल इंटेंसिव केयर यूनिट (NICU) में शुक्रवार रात भीषण आग लग गई। इसमें दस नवजात बच्चों की जान चली गई। अपने शिशु को तलाशते पिता कुलदीप ने बताया कि मैंने खुद आग लगने के बाद चार से पांच बच्चों को बचाया है। हालांकि, मेरा खुद का बच्चा नहीं मिल रहा। मेरी मां और पत्नी का रो-रोकर बुरा हाल है। मेरा पूरा परिवार हादसे के बाद से काफी परेशान है और अभी तक किसी ने यह भी नहीं बताया है कि बच्चा मिलेगा या नहीं। ‘बच्चे को कुछ पता नहीं चल पाया’एक महिला माया ने कहा कि अस्पताल में आग लगने के बाद से हमारे बच्चे का भी कुछ पता नहीं चल पाया है। इस घटना के बाद से अस्पताल में जाने नहीं दिया गया। मेरी बेटी का बच्चा अस्पताल में भर्ती था और उसे मशीन में रखा गया था। आग लगने की घटना की जानकारी उस समय पता चली, जब लोगों ने शोर मचाना शुरू कर दिया। इसके बाद लोगों ने खिड़की तोड़कर बच्चों को बाहर निकाला, हमारे बच्चे का अभी तक पता नहीं चल पाया है। ‘अनाउंसमेंट में बच्चे की मौत का पता चला’अंकित नाम के शख्स ने बताया कि मेरे छोटे भाई का बेटा अस्पताल में भर्ती था। वह लगभग 7 महीने का था। हमें अनाउंसमेंट में बताया गया कि हमारे बच्चे की मौत हो गई है। हमारी मांग है कि डीएनए टेस्ट कराए जाएं। एक महिला ने इस घटना को लेकर अस्पताल पर सवाल उठाए हैं। उन्होंने कहा कि हादसे के बाद से अस्पताल के अंदर जाने नहीं दिया गया। हमारा बच्ची लापता है और उसके बारे में कोई जानकारी नहीं दी गई है। ‘अपनी दो बेटियों को नहीं बचा पाया’बच्चों के वॉर्ड के बाहर याकूम मंसूरी शुक्रवार रात फुटपाथ पर सो रहे थे, तभी उन्हें आग लगने की सूचना मिली। वे खिड़की तोड़कर अंदर घुसे और कुछ नवजात शिशुओं को बचाने में सफल रहे, लेकिन अपनी दो बेटियों को नहीं बचा पाए। उन्होंने बताया कि अधिकारियों ने उन्हें पहचान के लिए कुछ शिशुओं के जले हुए शव दिखाए, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ। उन्होंने कहा कि वह पहचान नहीं कर पाए। ‘किसी ने नहीं बताया क्या हो रहा है’संतोषी ने 11 दिन पहले बच्चे को जन्म दिया था, अपने चेहरे को हथेलियों से ढक कर जमीन पर बैठी रो रही थी। उन्होंने दुख से कांपती आवाज में कहा, 'मैंने शोर सुना और दौड़कर आई। लेकिन मैं अपने बच्चे को कैसे बचा सकती थी। कोई जानकारी नहीं थी, किसी ने हमें नहीं बताया कि क्या हो रहा है।' 'मेरा बच्चा एक महीने से यहां भर्ती था'दुखी माता-पिता में संजना भी शामिल हैं, जिन्होंने अपने पहले बच्चे को समय से पहले जन्म दिया था। रोती हुई मां ने बताया, 'मेरा बच्चा सात महीने बाद पैदा हुआ और उसे यहां भर्ती कराया गया। जब आग लगी, तो कोई भी उसे नहीं बचा सका। उसकी मौत हो गई।' पास में ही सोनू खड़ा था, उनके चेहरे पर दुख का भाव था। अपने सात महीने के बेटे को आग में खो दिया। कहा, 'मेरा बेटा एक महीने से ज़्यादा समय से एनआईसीयू में भर्ती था। जब आग लगी, तो हमें अंदर जाने की अनुमति नहीं थी। उन्होंने कई बच्चों को बचाया, लेकिन 10 जल गए। उनमें से एक मेरा बेटा भी था।'
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