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US Election 2024: कमला या ट्रंप, ये 6 फैक्टर तय करेंगे अमेरिका का अगला राष्ट्रपति कौन होगा?

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संयुक्त राज्य अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव (US Elections 2024) तलवार की धार पर टिका है.

इस चुनावी मुकाबले में बहुत कुछ दांव पर है. वजह है कि दोनों उम्मीदवारों ने देश के भविष्य के लिए बहुत अलग नीतिगत दृष्टिकोण की रूपरेखा सामने रखी है. ऐसा लगता है कि दोनों उम्मीवारों की तरफ से सामने रखे गए उनके प्रतिस्पर्धी राष्ट्रीय प्राथमिकताओं ने अमेरिकी वोटरों को बड़े स्तर पर विभाजित कर दिया है. अधिकांश सर्वे दिखा रहे हैं कि किसी भी पाले में छोटा सा शिफ्ट ही चुनावी परिणाम निर्धारित कर सकता है.

यहां कुछ ऐसे महत्वपूर्ण फैक्टर पर चर्चा की गई है जो इस नाजुक चुनावी संतुलन को किसी भी उम्मीदवार के पक्ष में झुका सकते हैं.

सबसे पहले बात उन सात तथाकथित स्विंग राज्य या स्विंग स्टेट्स की जो किसी भी पाले में मतदान कर सकते हैं और चुनाव के भाग्य का निर्धारण करेंगे. ये स्विंग स्टेट हैं- एरिजोना, जॉर्जिया, मिशिगन, नेवादा, नॉर्थ कैरोलिना, पेंसिल्वेनिया और मिशिगन.

एडिटर्स नोट: अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव का रिजल्ट अक्सर तीन प्रकार के राज्यों से आकार लेता है: रिपब्लिकन पार्टी के वर्चस्व वाले रेड स्टेट्स, डेमोक्रेट पार्टी के दबदबे वाले ब्लू स्टेट्स और आखिर में स्विंग स्टेट्स.  स्विंग स्टेट्स की अलग कहानी है. यहां, रिपब्लिकन और डेमोक्रेट्स के बीच लड़ाई अक्सर बेहद करीबी होती है, जिसमें विजेता बहुत कम अंतर से विजयी होते हैं.

हाल के एक सर्वे के अनुसार, इन स्विंग स्टेट्स में वोटरों का विशाल बहुमत जिस एक मुद्दे पर ध्यान देता है, वह है अर्थव्यवस्था. इसमें कोई खास आश्चर्य नहीं होना चाहिए कि दोनों उम्मीदवारों ने इस महत्वपूर्ण चिंता को दूर करने के लिए इन राज्यों में प्रचार-प्रसार करने में काफी समय बिताया और अपनी संभावित नीतियों को सामने रखा.

कमला हैरिस के लिए दुर्भाग्य है कि अर्थव्यवस्था में लगातार सुधार के बावजूद, महंगाई कम होने और बेरोजगारी के आंकड़े स्थिर रहने के बावजूद, वर्कफोर्स में लगे कई लोगों को लगता है कि देश की आर्थिक परिस्थितियां उनके प्रतिकूल हैं. नतीजतन, शायद तथ्यों पर आधारित न होने के बावजूद भी अर्थव्यवस्था के बारे में यह भावना कमला हैरिस के खिलाफ काम कर सकती है और ट्रंप को फायदा पहुंचा सकती है.

यदि यह भावना इन स्विंग स्टेट्स में अधिकांश वोटरों को असर करती है, तो हैरिस की जीत की संभावना कम है.

इन स्विंग स्टेट्स के अलावा, एक दूसरा फैक्टर जो इस चुनाव के नतीजे को आकार दे सकता है, उसमें वे 75 मिलियन वोटर शामिल हैं जो पहले ही अपना वोट डाल चुके हैं.

द न्यूयॉर्क टाइम्स की एक रिपोर्ट के अनुसार, 2020 के चुनावों में भाग लेने वाले दो-तिहाई योग्य वोटरों के इस चुनाव में फिर से वोट करने की संभावना है. वोटिंग का यह हाई परसेंटेज दोनों राजनीतिक दलों में से किसी एक के पक्ष में जा सकता है. दोनों के पास इस बार के चुनाव में अत्यधिक प्रतिबद्ध या कमिटेड वोटर हैं.

हालांकि, कुछ प्रारंभिक सर्वे से पता चलता है कि इनमें से कई शुरुआती मतदाता (अर्ली वोटर) हैरिस समर्थक हैं.

बेशक, अमेरिका में चुनावी कॉलेज प्रणाली (इलेक्टोरल कॉलेज सिस्टम) की अनिश्चितताओं के कारण, यह पूरी तरह से संभव है कि एक उम्मीदवार को दूसरे से अधिक वोट मिले लेकिन फिर भी वह चुनाव हार सकता है. ऐसा हाल के कई राष्ट्रपति चुनावों में हुआ है. उदाहरण के लिए, 2016 के चुनाव में, हिलेरी क्लिंटन ने डोनाल्ड ट्रम्प से 2.8 मिलियन अधिक वोट जीते, लेकिन फिर भी राष्ट्रपति चुनाव हार गईं.

साथ ही पूरी तरह से अज्ञात फैक्टर भी इस चुनाव के नतीजे को प्रभावित कर सकते हैं. बमुश्किल एक हफ्ते पहले, राष्ट्रपति बाईडेन ट्रंप के समर्थकों को "कचरा" कहते दिखे.

इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं थी कि व्हाइट हाउस द्वारा इस मामले में स्पष्टीकरण देने और इससे ध्यान हटाने के प्रयास के बावजूद ट्रंप खेमे ने बाइडेन की इस लापरवाह टिप्पणी को पकड़ने और उसका मुद्दा बनाने में कोई समय नहीं गंवाया. हालांकि, ऐसा प्रतीत होता है कि बाइडेन के दिए इस बयान ने कुछ ऐसे वोटरों को किसी एक साइड में धकेल दिया है जो अभी भी किसी साइड में नहीं थे. अब इससे हैरिस को कोई और क्षति होती है या नहीं, यह एक खुला सवाल बना हुआ है.

इसके अलावा, कमला हैरिस का खेमा संगठित श्रमिक वोट पर भरोसा कर रहा है. ऐतिहासिक रूप से, यह समूह डेमोक्रेट के इर्द-गिर्द लामबंद हुआ है. हालांकि, ट्रंप के कार्यकाल के दौरान, संगठित श्रम की चिंताओं को दूर करने में उनकी विफलता के बावजूद, उन्होंने इस पहले के ठोस डेमोक्रेटिक गढ़ में कुछ घुसपैठ की है. उदाहरण के लिए, फायरफाइट यूनियन ने हैरिस या ट्रंप के समर्थन का ऐलान नहीं किया है. और इसलिए, यह संभव है कि उनके कुछ सदस्य संभवतः ट्रंप के खेमें में जा सकते हैं.

आखिर में, गर्भपात (एबॉर्शन) के जटिल मुद्दे पर रिपब्लिकन पार्टी की स्पष्ट हठधर्मिता के कारण, यह संभव है कि कई कॉलेज से पढीं (या यहां तक कि कॉलेज जा रहीं) महिलाएं, जिन्होंने भले पहले ट्रंप को वोट दिया होगा, इस मुद्दे पर पार्टी से अलग हो जाएंगी. बहुत से रिपब्लिकन के शासन वाले राज्यों ने गर्भपात को प्रतिबंधित करने वाले कठोर कानून पास किए हैं.

भले ही गर्भपात पर ट्रंप का यह स्टैंड धार्मिक अधिकार की बात करने वाले सदस्यों को पसंद आ रहा है, लेकिन इसने देश भर में महिला मतदाताओं के विशाल समूह के बीच एक महत्वपूर्ण प्रतिक्रिया उत्पन्न की है. आश्चर्य की बात नहीं है कि आम तौर पर डेमोक्रेट और विशेष रूप से हैरिस के चुनावी कैंपेन ने इसे एक प्रमुख मुद्दा बना दिया है.

ट्रंप की ओर से इस विषय पर अनाड़ी और विरोधाभासी बयानों ने भी डेमोक्रेट्स को अपना संदेश पहुंचाने में मदद की है. इसके अलावा, उनके वाइस प्रेडिसेंट पद के साथी जेडी वेंस से जब उनके विचारों के बारे में सवाल किया गया तो उन्होंने इस विषय पर अपने जटिल और कपटपूर्ण बयानों से मामले में कोई मदद नहीं की है.

हाल के दशकों में कुछ ही राष्ट्रपति चुनाव ऐसे लड़े गए हैं जहां मुकाबला इतना करीबी रहा हो. 5 नवंबर को जो होगा उसके संयुक्त राज्य अमेरिका और दुनिया दोनों के लिए व्यापक परिणाम होंगे. चूंकि लाखों लोग नतीजे आने का इंतजार कर रहे हैं और कुछ ही घंटे बाकी हैं, इसलिए यह कहना अभी भी जल्दबाजी होगी कि कौन जीतेगा और कौन से फैक्टर उन्हें जीत दिलाएंगे.

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