Tulsi Chalisa Lyrics: हिंदू धर्म में तुलसी विवाह का बहुत ही खास महत्व है। तुलसी विवाह के दिन तुलसी माता और भगवान शालीग्राम की विधिवत पूजा की जाती है और उनका विवाह कराया जाता है। इस दिन तुलसी विवाह कराने से परिवार में सुख, समृद्धि आती है। इसके साथ तुलसी विवाह के दिन तुलसी पूजन किया जाता है। इस दिन तुलसी चालीसा का पाठ करना बहुत ही शुभ माना जाता है। तुलसी विवाह के दिन तुलसी चालीसा का पाठ करने से साधक को धन- धान्य की प्राप्ति होती है। यहां पढ़ें तुलसी चालीसा लिरिक्स।
Tulsi Chalisa Lyrics In Hindi (तुलसी चालीसा लिरिक्स)
जय जय तुलसी भगवती सत्यवती सुखदानी ।
नमो नमो हरि प्रेयसी श्री वृन्दा गुन खानी ॥
श्री हरि शीश बिरजिनी, देहु अमर वर अम्ब ।
हे वृन्दावनी तुम लोक कल्याण के लिए विलम्ब न करो।
॥ चौपाई ॥
धन्य धन्य श्री तलसी माता ।
श्रवण द्वारा सदैव अगोचर की महिमा गाई जाती है।
हरि के प्राणहु से तुम प्यारी ।
हरीहीँ हेतु कीन्हो तप भारी ॥
जब प्रसन्न है दर्शन दीन्ह्यो ।
तब कर जोरी विनय उस कीन्ह्यो ॥
हे प्रभु, मेरे प्रिय बनो।
दीन जानी जनि छाडाहू छोहु ॥
सुनी लक्ष्मी तुलसी की बानी ।
दीन्हो श्राप कठिन पर आनी॥
उस अयोग्य वर मांगन हारी ।
होहू विटप तुम जड़ तनु धारी ॥
सुनि तुलसी हि श्राप्यो तेहिं थमा।
करहु वास तुहू नीचन धामा ॥
दियो वचन हरि तब तत्काला ।
सुनो, तुम मुक्त हो जाओगे.
समय पै वौ रौ पति तोरा।
पुजिहौ आस वचन सत मोरा ॥
तब गोकुल मह गोप सुदामा ।
तासु भई तुलसी तू बामा ॥
कृष्ण रास लीला के माही ।
राधे शक्यो प्रेम लखी नाही ॥
दियो श्राप तुलसिह तत्काला ।
यहां तक कि पुरुष लोग भी, आप एक बच्चे के रूप में पैदा होते हैं।
यो गोप वह दानव राजा ।
ताजा सिर शंख चूड़ कहा जाता है.
तुलसी भई तासु की नारी ।
परम सति गुन रूप अगारी॥
अस द्वै कल्प बीत जब गयऊ ।
कल्प तृतीय जन्म तब भयऊ ॥
तुलसी का नाम वृंदा रखा गया।
असुर जलन्धर नाम पति को ॥
करि अति द्वन्द अतुल बलधामा ।
लीन्हा शंकर से संग्राम ॥
जब निज सैन्य सहित शिव हारे ।
मरही न तब हर हरिही पुकारे ॥
पतिव्रता वृन्दा थी नारी ।
कोऊ न सके पतिहि संहारी ॥
तब जलन्धर ही भेष बनाई ।
वृन्दा ढिग हरि पहुच्यो जाई ॥
शिव हित लाहि करि कपट प्रसंगा।
कियो सतीत्व धर्म तोही भंगा ॥
जालन्धर का कर विनाश हुआ।
सुनी उर शोक उपारा ॥
तिही क्षण दियो कपट हरि टारी ।
लखी वृन्दा दुःख गिरा उचारी ॥
जलन्धर जस हत्यो अभीता ।
सोई रावन तस हरिही सीता ॥
अस प्रस्तर सम ह्रदय तुम्हारा ।
धर्म खण्डी मम पतिहि संहारा ॥
यही कारण लही श्राप हमारा ।
होवे तनु पाषाण तुम्हारा ॥
सुनी हरि तुरतहि वचन उचारे ।
दियो श्राप बिना विचारे ॥
लख्यो न निज करतूती पति को ।
छलन चह्यो जब पारवती को ॥
जड़मति तुहु अस हो जड़रूपा ।
जग मह तुलसी विटप अनूपा ॥
धग्व रूप हम शालिग्रामा ।
गंडकी नदी के मध्य में।
जो तुलसी दल हमही चढ़ इहैं ।
सब सुख भोगी परम पद पईहै ॥
बिनु तुलसी हरि जलत शरीरा ।
अतिशय उठत शीश उर पीरा ॥
जो तुलसी दल हरि शिर धारत ।
सो सहस्त्र घट अमृत डारत ॥
तुलसी हरि मन रञ्जनी हारी ।
रोग दोष दुःख भंजनी हारी ॥
प्रेम सहित निरंतर हरि भजन।
तुलसी राधा में नाही अन्तर ॥
छप्पन प्रकार के व्यंजन हैं।
बिनु तुलसी दल न हरीहि प्यारा ॥
सकल तीर्थ तुलसी तरु छाही ।
लहत मुक्ति जन संशय नाही ॥
कवि सुन्दर इक हरि गुण गावत ।
तुलसिहि निकट सहसगुण पावत ॥
बासत के पास दुरबासा धाम।
जो प्रयास ते पूर्व ललामा ॥
पाठ करहि जो नित नर नारी ।
होही सुख भाषहि त्रिपुरारी ॥
॥ दोहा॥
तुलसी चालीसा पढ़ही तुलसी तरु ग्रह धारी ।
दीपदान करि पुत्र फल पावही बन्ध्यहु नारी ॥
बेचारे हरि के सब कष्ट हरते हैं और परम प्रसन्न होते हैं।
आशिय धन जन लड़हि ग्रह बसही पूर्णा अत्र ॥
लाही अभिमत फल जगत मह लाही पूर्ण सब काम ।
जेई दल अर्पही तुलसी तंह सहस बसही हरीराम ॥
तुलसी महिमा नाम लख तुलसी सूत सुखराम ।
मानस चालीस रच्यो जग महं तुलसीदास ॥
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