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Iran Iraq Conflict: तीसरे विश्वयुद्ध की हुई शुरूआत ? पश्चिम एशिया में ध्वस्त हुआ शक्ति संतुलन

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Iran Iraq Conflict: आज देशभर में गांधी जंयती का उत्सव मनाया जा रहा है, राष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय स्तरों पर गांधीवाद के तात्विक आधारों शांति-अहिंसा के महत्त्व को प्रतिपादित करने के लिए गणमान्य जन रूपकों, बिंबो, उपमाओं और विशेषणों का इस्तेमाल करते हुए अमन-शांति का पैगाम देते है। गांधी नि:संदेह अमन-चैन के मसीहा है, लेकिन उनकी बातों से कोसों दूर दो जंगी मोर्चों पर मौत से फरिश्ते मंडरा रहे है। दिलचस्प है कि गांधी के संदेश पूर्वी यूरोप और पश्चिमी एशिया तक नहीं पहुंच पा रहे है। एक ओर कीव और क्रेमलिन हथियारबंद संघर्ष में है तो दूसरी ओर बेंजामिन नेतन्याहू और ईरानी हुक्मरान समेत उनके प्रॉक्सी सहयोगी। गौरतलब है कि दुनिया भर की निगाहें अब मध्य-पूर्व की जंग पर आ टिकी है, जहां बीते 28 सितंबर को हुई हसन नसरल्लाह की हत्या ने पलीते में आग लगाने का काम किया। नसरल्लाह के खात्मे के साथ ही मध्यपूर्व में युद्ध का शंखनाद हो चुका है। इजराइल की ताबड़तोड़ कार्रवाई बेरूत के दक्षिणी घनी आबादी वाले बाहरी इलाके में हुई, ऑप्रेशन के दौरान इजराइली वायुसेना ने इस इलाके में भारी बम गिराए, कार्रवाई के दौरान हिजबुल्लाह के कई हाई वैल्यू टारगेट को मार गिराया गया।
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इजराइल के दुश्मनों को वैचारिकता से ज्यादा वजूद की चिंता
साफ है कि इजराइल के हवाई हमलों का पैटर्न अचूक है, इसके भेद पाना ईरान और हिजबुल्लाह के बस की बात नहीं है। लेबनान और सीरियाई आसमान में मंडरा रहे इजराइली जेट्स ने हिजबुल्लाह की ताकत को खोखला कर दिया है। इसी फेहरिस्त में कमांडर अली कराकी को भी ढेर कर दिया गया है, जो कि अल-हज्ज रदवान फोर्स से जुड़ा हुआ था। हिजबुल्लाह की इस स्पेशल फोर्स को अभी तक जंगी मैदान में उतारा भी ना गया था कि उससे पहले ही उसके नेतृत्व को IDF ने उखाड़ फेंका। हालांकि अली कराकी की मौत से हिजबुल्लाह की कार्रवाई पर कोई खास असर नहीं पड़ेगा लेकिन ये इजराइल के लिए प्रतीकात्मक और मनोवैज्ञानिक तौर पर बड़ी जीत है। बावजूद इसके हिजबुल्लाह इजराइल के सीमाई इलाकों से लगे शहरों पर लगातार गोलीबारी कर रहा है। इजराइली वॉर कैबिनेट से जुड़े सदस्य का रूख़ साफ है कि गाजा में चल रही उसकी कार्रवाई को लेबनान में चल रहे संघर्ष से अलग करके देखा जाए। इसके लिए उत्तरी इजराइल में जमीनी कार्रवाईयों को अंजाम देकर हिज़्बुल्लाह को घुटने पर लाया जायेगा ताकि वो हमास को समर्थन ना दे सके। हिज़्बुल्लाह को बेबस करने के लिए नेतन्याहू लगातार तनाव बढ़ा रहे है। अगर इस लक्ष्य को इजराइल ने हासिल कर लिया तो उसके खिलाफ प्रतिरोध तो कम होगा ही साथ ही हमास और हिज़्बुल्लाह दोनों ही अलग-अलग धुरी पर होगें, जहां उन्हें वैचारिकता से ज्यादा अपने अस्तित्व की चिंता होगी।
IDF के लिए भी कम नहीं चुनौतियां

भले ही इजराइल के हालात काफी मजबूत है लेकिन उसे रणनीतिक धैर्य बरतना होगा ताकि संघर्ष लंबा खींचने की स्थिति में वो अपने सामरिक संसाधनों को नपे तुले पैमाने पर खर्च करे। इसके ठीक उलट हिजबुल्लाह के पास सामरिक संसाधन के नाम पर उसके जंगी सिपहसालार है, वो अपनी जान देकर इस जंग में फतेह हासिल करना चाहते है। इसलिए हिजबुल्लाह इस टकराव से कदम से पीछे नहीं खींच सकता। मौजूदा हालातों में हिजबुल्लाह अपनी पूरी ताकत के साथ उत्तरी इजरायल पर रॉकेट हमले कर रहा है। इस जंगी कार्रवाई के चलते IDF को उत्तरी इजरायल में आम लोगों को सुरक्षित बाहर निकालने में काफी परेशानियों का सामना करना पड़ा रहा है। जमीन पर हिजबुल्लाह के लड़ाके IDF को आगे बढ़ने से लगातार रोके हुए है।
तेल अवीव में जंगी आकलनों का दौर

फिलहाल अभी तक इजरायली सेना को भारी प्रतिरोध का सामना नहीं करना पड़ा है लेकिन उसकी ओर से जारी ऑप्रेशंस में उसे जो भी बढ़त हासिल होगी, वो पुख्ता तौर पर स्थायी नहीं होगी। अभी तक उत्तरी मोर्चे पर IDF, शिन बेट और सायरेत मेटकल सामूहिक रूप से ये तय नहीं कर पाये है कि ऑप्रेशंस का जारी रखना है या उसे विराम दे दिया जाए? हिजबुल्लाह की रणनीति साफ है कि वो बढ़ते इजराइली हमले का संतुलित ढ़ंग से जवाब देता रहे ताकि इजराइल को बड़े पैमाने पर हमला करने के लिए उकसाया जा सके। हिजबुल्लाह की लीडरशिप इस बात से वाकिफ है कि जमीनी हमले में उसे जंगी नफा होना तय है।
मुस्लिम देशों में बढ़ सकता है हिजबुल्लाह का कद
अगर सरसरी तौर पर युद्ध के समीकरणों का आकलन लगाया जाए तो इजराइली हवाई जंगी बेड़े में F-15 सीरीज के तीन अलग-अलग वेरियंट वाले फाइटर जेट्स है। इसके अलावा उसके पास F-16 फाइटिंग फाल्कॉन और F-35 ये सभी जेट्स मल्टीरोल श्रेणी के है। साथ ही उसके पास कई यूएवी भी है। हिजबुल्लाह से भिड़ने के लिए अगर इजराइली इंफैट्री बिग्रेड या कोर्प्स आगे बढ़ती है तो इससे उसकी वायुसेना के हाथ बंधना तय है। हिजबुल्लाह से भिड़ने के लिए IDF के जाबांज जमीन पर होगें तो इजराइली हवाई बमबारी से उनके भी मरने का जोखिम बढ़ जाएगा। कयास ये लगाए जा रहे है कि हिजबुल्लाह के पास सरफेस टू एयर मिसाइलें भी हो सकती है, जो कि इजराइली जेट्स को जमींदोज कर सकती है। हिजबुल्लाह के पक्ष में ये भी बात जाती है कि उसके लड़ाके दक्षिणी लेबनान के इलाकों से अच्छी तरह वाकिफ है, जिसका बड़ा रणनीतिक फायदा उनको मिलना तय है। इस इलाके में हिजबुल्लाह लंबी लड़ाइयों के लिए पूरी तरह तैयार है, जिसके लिए उसने यहां मजबूत सैन्य बुनियादी ढाँचा और सप्लाई चैन को विकसित किया है। हिजबुल्लाह अंदरखाने ये भी जानता है कि जमीनी लड़ाई में उसे हर तरह से फायदा मिलना तय है, अगर इजरायली सैनिकों को खदेड़ने में उसे कामयाबी मिलती है तो उसकी छवि मुस्लिम देशों के बीच मजबूत हो जाएगी, दूसरी ओर अगर उसे मुंह की खानी पड़ती है तो उसे मुस्लिम देशों खासतौर से अरब देशों से सहानुभूति मिलेगी। तेल अवीव से सीधा टकराव हिजबुल्लाह के दबदबे को फिर कायम करेगा, जो कि सीरियाई गृहयुद्ध के दौरान लगभग खत्म सा हो गया था। दुनिया भर में ये पैगाम जायेगा कि अरब हितों और फिलिस्तीनी अक्षुण्णता की हिफाजत मात्र वहीं कर सकता है। इसके बाद जाहिर तौर पर उसका कद तो बढ़ेगा ही साथ ही वैश्विक मुस्लिम समुदायों से उसे मिलिशिया लड़ाके, फंडिंग और हथियार मिलने लगेगें। यानि कि ये बड़ा दांव हिजबुल्लाह को हर तरीके से फायदा पहुंचाने वाला है, वो अपनी कुव्वत को एक बार फिर से धार दे सकेगा।
हवाई हमले हैं इजराइल की मजबूती
मुमकिन तौर पर इजराइल जंगी मुहाफिज़ हिजबुल्लाह के सभी समीकरणों से वाकिफ है। खुली जंग के लिए IDF को अपने पैदल सैनिकों को लेबनान की सीमा पार वाले इलाकों में तैनात करना होगा। जो कि काफी जोखिम भरा काम है। ज्यादा वॉर कैजुअल्टी के चलते इजराइली सरकार को पीछे हटना पड़ सकता है, जो कि हिज़्बुल्लाह को मनोबल बढ़ायेगा। हालांकि इजराइल अप्रत्याशित जवाबी कार्रवाई के लिए जाना जाता है, हो सकता है कि इसके लिए उसने कुछ वैकल्पिक व्यवस्था की हो। फिलहाल अपनी एकतरफा शर्तों को मनवाने और सीजफायर के लिए हिज़्बुल्लाह को मजबूर के लिए तेल अवीव के पास एयर स्ट्राइक ही कारगर हथियार है, लेकिन इसका दायरा भी बंधा बंधाया ही है। इसी क्रम में जो बाइडेन प्रशासन लगातार इजराइली शस्त्रागार को गोला-बारूद और हथियारों की रसद पहुंचा रहे है, इससे कहीं ना कहीं ईरान समेत कई मुस्लिम राष्ट्रों में नाखुशी का माहौल है।
अमेरिकी राष्ट्रपति चुनावों का पड़ेगा सीधा असर
वैचारिक धरातल पर अमेरिकी संस्थानों का इजराइल को खुला समर्थन हासिल है। अमेरिकी वोटर्स का एक बड़ा धड़ा इस समर्थन की खुलकर मुखालफत कर रहा है। आलोचना के ये सुर अमेरिकी धुर वामपंथी वर्ग उठा रहा है। माना ये भी जा रहा है कि नवंबर में जो भी नव- निर्वाचित अमेरिकी राष्ट्रपति चुनकर आयेगा वो इजराइल को संभावित तौर पर अपना समर्थन देना कम कर सकता है। इसके चलते नेतन्याहू अमेरिकी चुनावों से ठीक पहले जंगी इलाके में अपनी पैठ अपने दम पर मजबूत करना चाहेगें।
बदली रणनीति के साथ युद्ध में उतरा है IDF
शुरूआती कामयाबी इजराइल के दामन में आयी है और हिजबुल्लाह बचाव और प्रतिरोध में ही लगा हुआ। गुजरे हफ्तों में हिजबुल्लाह को भारी मुंह की खानी पड़ी है। गाजा की मिसाल ठीक उसके सामने खड़ी है, जहां वजूद बनाए रखना ही कामयाबी नहीं माना जा सकता है। लेबनान और ईरान इन समीकरणों को भली भांति समझता है। तेहरान के नीति नियंता जानते है कि तेल अवीव के साथ शक्ति संतुलन उसके पक्ष में नहीं है। सीरिया, लेबनान, हूती, हमास, यमन, नसरल्लाह और इस्माइल हनियेह वाले प्रकरणों से साफ है कि तेल अवीव से जंग में पार पाना लगभग नामुमकिन सा है। अब इजराइल अपने बंधक बने नागरिकों और मृतक नागरिकों की फिक्र किया बिना आक्रामक हमले करने का पक्षधर है। खुले युद्ध को लेकर इजराइलियों में आम राष्ट्रीय सहमति बन चुकी है। साथ ही IDF लंबी और पेचीदा लड़ाईयों के लिए पूरी तरह मुस्तैद है।
नई दिल्ली पर पड़ेगा सीधा असर
अब इस लड़ाई में कई हितधारक बनते नज़र आ रहे है। तुर्की के राष्ट्रपति एर्दोगन हमास और हिजबुल्लाह के पक्ष में खुलकर खड़े है तो इमैनुएल मैक्रों ने इजराइल को खुला समर्थन दे दिया है। जंगी चिंगारियों से मध्य पूर्व थर्रा उठा है। वाशिंगटन ने मध्य-पूर्व में तैनात अपने सैनिकों को इजराइल की मदद के लिए मोबालाइज कर दिया। रिपब्लिकन पार्टी के राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार डोनाल्ड ट्रंप तो इसे तीसरे विश्व युद्ध का आगाज़ तक बता चुके है। इन सभी सिलसिलेवार घटनाक्रमों का सीधा असर नई दिल्ली पर पड़ना तय है, क्योंकि पश्चिम एशिया से जुड़े हमारे कारोबारी हित सीधे तौर पर प्रभावित होगें। साथ ही इसके कई दबे छिपे प्रभाव भी होगें, जिसका असर भारत पर सीधे पड़ेगा, ये क्या हो सकता है, ये आने वाले वक्त में साफ हो जाएगा।

इस आलेख के लेखक राम अजोर (वरिष्ठ स्वतंत्र पत्रकार एवं समसामयिक मामलों के विश्लेषक) हैं।
Disclaimer: यह लेखक के निजी विचार हैं। इसके लिए टाइम्स नाउ नवभारत जिम्मेदार नहीं है।


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