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डेटा प्रोटेक्शन लॉ से कमजोर हो सकता है RTI- नीति आयोग ने दी थी चेतावनी, फिर भी बिना सुधार के बिल हुआ पास

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केंद्र के नए डेटा प्रोटेक्शन लॉ को लेकर बहस छिड़ी है। यह लॉ संसद में तो पास हो गया है, लेकिन इसके कुछ प्रावधानों को विपक्ष और सिविल सोसाइटी के साथ-साथ सरकार के अंदर भी विरोध देखने को मिल रहा है। खुद नीति आयोग इस कानून को लेकर सरकार को चेता चुका है। हालांकि सरकार इसे इग्नोर कर आगे बढ़ चुकी है।
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नीति आयोग ने क्या सुझाव दिया था
इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के अनुसार नीति आयोग ने इस कानून के कुछ प्रावधानों का विरोध किया था। खासकर सूचना के अधिकार (RTI) अधिनियम में प्रस्तावित परिवर्तनों को लेकर आपत्ति दर्ज कराई थी। दरअसल डेटा सुरक्षा कानून के तहत आरटीआई अधिनियम की एक धारा में भी संशोधन किया गया है, जिसके प्रभाव से सार्वजनिक अधिकारियों के बारे में व्यक्तिगत जानकारी का खुलासा करने की अनुमति नहीं होगी, भले ही यह व्यापक सार्वजनिक हित में जरूरी हो। 16 जनवरी, 2023 को, नीति आयोग ने औपचारिक रूप से इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय (MeitY) को पत्र लिखकर आग्रह किया कि वह प्रस्तावित कानून को उसके मौजूदा स्वरूप में पारित न करे क्योंकि यह आरटीआई अधिनियम को कमजोर कर सकता है। नीति आयोग ने सुझाव दिया था कि विधेयक में संशोधन किया जाए और नई राय मांगी जाए। नीति आयोग के सुझाव उस समय चल रहे अंतर-मंत्रालयी परामर्श के हिस्से के रूप में आए थे और कानून अभी भी अपने मसौदा चरण में था।
अगस्त 2023 में संसद में पास हुआ था कानून
जिसके बाद अगस्त 2023 में डेटा सुरक्षा कानून संसद में पारित हुआ और उसी महीने राष्ट्रपति की स्वीकृति भी मिल गई, लेकिन पूरी प्रक्रिया के दौरान, नीति आयोग की आपत्तियों के बावजूद MeitY ने RTI अधिनियम में प्रस्तावित बदलावों को नहीं बदला। अभी तक, कानून को लागू किया जाना बाकी है, इसके कार्यान्वयन के लिए आवश्यक नियमों का इंतजार है।

सरकार ने किया इग्नोर
डेटा संरक्षण विधेयक के नवंबर 2022 के मसौदा संस्करण में आरटीआई अधिनियम की धारा 8(1)(जे) में संशोधन करने का खंड भी शामिल था।जिसका अर्थ है कि प्रावधान को हटाने के आयोग के सुझाव पर विचार नहीं किया गया और आरटीआई अधिनियम में संशोधन के प्रावधान के साथ विधेयक पारित कर दिया गया। आरटीआई अधिनियम में संशोधन के प्रावधान की पिछले साल परामर्श अवधि के दौरान और जब विधेयक संसद में चर्चा के लिए आया था, तब विपक्षी दलों और नागरिक समाज कार्यकर्ताओं ने भी आलोचना की थी। तब उनकी चिंताओं को दूर करने के लिए सरकार ने कहा था कि संविधान द्वारा प्रदत्त निजता का अधिकार एक मौलिक अधिकार है, जिसे सरकारी संस्थानों में अधिकारियों को भी उपलब्ध कराया जाना चाहिए।

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