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गुरुग्राम: विकास का पैमाना बनी पाश्चात्य संस्कृति हमारा विकास नहीं : डाॅ. कैलाश सत्यार्थी

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– तीन दिवसीय विजन फॉर विकसित भारत (विविभा-2024) अखिल भारतीय शोधार्थी सम्मेलन का हुआ आयाेजन

– सम्मेलन में आरएसएस प्रमुख डाॅ. मोहन भागवत एवं इसरो प्रमुख डाॅ. एस. सोमनाथ भी हुए शामिल

गुरुग्राम, 15 नवम्बर . सोशल एक्टिविस्ट एवं नोबल पुरस्कार से सम्मानित डाॅ. कैलाश सत्यार्थी ने कहा कि हम विकसित भारत की अवधारणा के बारे में विचार करते हैं. ऐसे में हमें एक बात ध्यान में रखने की जरूरत है कि कहीं हम उस विकास को तो नहीं देख रहे, जिससे मनुष्य व प्रकृति खतरे में हो. पाश्चात्य संस्कृति के बढ़ते प्रभाव पर उन्होंने कहा कि यह संस्कृति हमारा विकास नहीं है, जबकि विकास का यह पैमाना बना हुआ है.

यह बात उन्होंने शुक्रवार को यहां एसजीटी यूनिवर्सिटी में भारतीय शिक्षण मंडल के युवा आयाम द्वारा तीन दिवसीय विजन फॉर विकसित भारत (विविभा-2024) अखिल भारतीय शोधार्थी सम्मेलन में बतौर विशिष्ट अतिथि कही. कार्यक्रम में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघचालक डाॅ. मोहन भागवत, इसरो प्रमुख डाॅ. एस. सोमनाथ समेत कई अतिथियों ने शिरकत की. इस अवसर पर करीब एक हजार शोधार्थी मौजूद रहे. सम्मेलन की शुरुआत में रिसर्च जनरल फॉर भारतीय शिक्षण मंडल रिलीज किया गया.

डाॅ. सत्यार्थी ने कहा कि आज का यह आयोजन विकास को उन जड़ों में से शक्ति देने की कोशिश कर रहा है, जो भारतीय चिंतन, अध्यात्म, दर्शन परंपरा है. ये सार्वभौमिक, सार्वकालिक मूल्य हैं. हमारा तरीका उसकी जड़ें बहुत गहरी हैं. उन्हें हमें थामकर रखना है. उन्होंने कहा कि विकास की परिभाषा, अवधारणा, इसके पैमाने और इसकी पद्धतियों के लिए भारत को किसी के आगे याचक, किसी के सामने हाथ फैलाने की जरूरत नहीं है.

डाॅ. कैलाश सत्यार्थी ने कहा कि सृजनशील व रचनात्मक शोधपरक बनाती है. इस मेधा की उपासना हमारे पूर्वजों और संसार को अपने योगदान से बेहतर बनाने वाले देवगण करते थे. यह प्रार्थना इस कार्यक्रम के लिए सबसे ज्यादा उपयुक्त है. उन्होंने कहा कि यह पहली बार हो रहा है कि करीब पौने दो लाख शोधार्थियों में से चुने हुए एक हजार शोधार्थी यहां एकजुट हुए हैं. जब हम विकसित भारत के संकल्प के साथ यहां बैठे हैं तो यह एक नए यज्ञ की शुरुआत है. जब भी समाज की, राष्ट्र की, मानवता की भलाई के इच्छुक, उसमें संलग्न व संकल्पवान लोग जब एक जगह एकत्रित होते हैं, वह भी एक बड़ा यज्ञ है. यह कार्यक्रम एक महायज्ञ है. यज्ञ की एक और विशेषता है कि जब हम अपना सर्वश्रेष्ठ आहुत करते हैं तो मन में कोई अहंकार का भाव नहीं आता.

उन्होंने कहा कि मेरा नाम सत्यार्थी है और आप एक हजार शोधार्थी. सत्यार्थी व शोधार्थी में कोई फर्क नहीं है. आप शोध से सत्य तक पहुंचते हैं, मैं अपने कर्मों से सत्य तक पहुंचता हूं. जो सर्वश्रेष्ठ कर्म है संसार का, वही यज्ञ है. यज्ञ का विकास व प्रकृति से सीधा संबंध है. उन्होंने कहा कि जिस यज्ञ की आज यहां शुरुआत हो रही है, इसका संदेश पूरी दुनिया को आलाैकिक करेगा.

डाॅ. सत्यार्थी ने कहा कि विकास की हमारी अवधारणा में यह नहीं है कि किसी से लूट, खसोट करो. भारत के डीएनए में इसके उलट चीज है. जो कुछ भी आप जीवन में हासिल करते हैं, उसको आप बिना किसी उपकार, अभिमान, घमंड के भाव से लौटाते हैं. इससे जो आनंद मिलता है, यह भारत के डीएनए का हिस्सा है. हम किसी को पीछे नहीं धकेलते. हम किसी को छोड़कर आगे बढ़ने में भरोसा नहीं करते. विकास की परिभाषा, अवधारणा, इसके पैमाने और इसकी पद्धतियों के लिए भारत को किसी के आगे याचक, किसी के सामने हाथ फैलाने की जरूरत नहीं है. हमारे वेदों में, परंपराओं में हजारों साल पहले समानता का संदेश सिखाया है.

उन्हाेंने कहा कि आज हम विकास की बात कर रहे हैं, विकसित भारत का सपना देख रहे हैं. मेरे हिसाब से हमारी चिंतन परंपरा में विकास त्रिआयामी है. यह हमको पश्चिम से अलग करता है. व्यक्तिक विकास, सामूहिक विकास व सार्वभौमिक विकास है. शरीर, मन आत्मा का विकास है. धर्म, अध्यात्म के माध्यम से आत्मा को बेहतर बनाकर रखना व्यक्तिक विकास है. सामूहिक विकास में सबके लिए गरिमामय आजीविका, अच्छी शिक्षा व स्वास्थ्य, सबके लिए सुरक्षा की गारंटी है. यह सामूहिक विकास में करना होगा. तीसरा सार्वभौमिक विकास की बुनियाद हमारे यहां सर्वे भवंतु सुखिन: और वसुधैव कुटुम्बम के सिद्धांत पर टिकी है. यह सिर्फ एक श्लोक नहीं है, इसमें गहरा रहस्य है. यह भाव हमारे दिल, दिमाग में होना चाहिए. वसुधैव कुटुंबकम की अवधारणा को हम तभी चरितार्थ कर सकते हैं, जब हम इसे महसूस करेंगे. भारत की भुजाएं इतनी बड़ी हैं कि हम सारे संसार को अपने में समेट सकते हैं.

हरियाणा

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