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फिल्म समीक्षा : फिल्म मटका में वरुण तेज का दमदार एक्शन, संवाद रहेंगे याद

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रातों रात अमीर बन जाने की उम्मीद में लोगों को जुआं खिलाने वाले मटका किंग वासु की कहानी पेश करती फ़िल्म मटका सिनेमाघरों में रिलीज़ हो गई है. वरुण तेज ने मटका किंग वासु की भूमिका में जान डाल दी है. उनका अभिनय फिल्म का सबसे बेहतरीन हिस्सा है. वरुण तेज को फ़िल्म में अलग-अलग उम्र में दिखाया गया है और उन्होंने हर रूप में बेहतरीन अभिनय किया है लेकिन फ़िल्म के सेकन्ड हाफ में उनका अवतार, किरदार और भी दमदार बनकर आता है.

फ़िल्म मटका की कहानी 1950 के दशक के आखिर में शुरू होती है. वासु (वरुण तेज) बर्मा से शरणार्थी के रूप में विजाग आता है. जल्द ही वह इस क्षेत्र का एक बड़ा व्यवसायी बन जाता है. एक बार मुंबई की यात्रा में वह मटका के खेल से परिचित होता है. वह कपड़ों का कारोबार शुरू न करके अपने इलाके में मटका खेल शुरू करता है और कुछ ही समय में मटका किंग बन जाता है. वह इस जुएं से देश को इतनी खतरनाक स्थिति में ले जाता है कि भारत सरकार उसके खिलाफ एक्शन लेने पर मजबूर हो जाती है और वासु के मटका साम्राज्य और प्रशासन के बीच शुरू होती है लड़ाई. इसके बाद क्या होता है क्लाइमेक्स, इसके लिए आपको फ़िल्म देखनी होगी.

संवाद जो रहेंगे याद

फ़िल्म के प्लस पॉइंट्स में इसके दमदार डायलॉग भी शामिल हैं जो याद रह जाते हैं. मेरी हिम्मत में मिलावट नही है., राजनीति एक सदाबहार बिजनस है. भूख से बढ़कर इस दुनिया मे कुछ नहीं. अगर इस दुनिया मे जीना है तो शेर बन कर जीना होगा. किसी को अच्छा या बुरा उसको पेट की भूख ही बनाती है., जो लोगों का भला चाहते हैं उनका कभी बुरा नहीं होता.

मास्टरपीस सीन

फ़िल्म के कई दृश्य दर्शकों को मास्टरपीस महसूस होंगे. एक सीन में वासु जब अपनी बेटी को मेमना और लोमड़ी की कहानी सुनाता है तो कुछ मिनटों का वो दृश्य बेमिसाल लगता है. क्या परफॉर्मेंस पेश की है वरुण तेज ने. उनके चेहरे का एक्सप्रेशन, हाव भाव, इमोशंस प्रभावित करता है. इंटरवल से ठीक पहले एक दृश्य में जब वरुण तेज मटका के धंधे में धोखा देने वाले अपने ही एक आदमी को खतरनाक सज़ा देता है, उसे बहुत बढ़िया तरीके से दर्शाया गया है.

प्रोडक्शन डिज़ाइन

फ़िल्म की सबसे बड़ी खूबियों में से एक है इसका बेहतरीन प्रोडक्शन डिज़ाइन. 60, 70 और 80 के दशक को हकीकत के करीब और शानदार तरीके से दिखाया गया है. फिल्म के प्रोडक्शन वैल्यू प्रशंसिय हैं. मेकर्स ने उस समय के क्लब, डिस्को, कपड़े, रेस्टोरेंट, फैशन, स्टाइल को जीवंत कर दिया है.

आर्ट डिपार्टमेंट की तारीफ़ करनी जरूरी है. फ़िल्म की सिनेमेटोग्राफी लाजवाब है, जिस तरह दृश्यों को कैमरे में कैद किया गया है वो असर छोड़ जाते हैं.

एक्टिंग

वरुण तेज की स्क्रीन पर मौजूदगी कमाल लगती है. हर सीन में उन्होंने बस जादू किया है. बॉडी लैंग्वेज के साथ डायलॉग डिलीवरी भी शानदार है. जब वह एक्शन करने से पहले कहते हैं कि मैं ने मारा तो तू मर जाएगा. खतरनाक लगते हैं. फ़िल्म के कई दृश्यों में वह अमिताभ बच्चन की फिल्मों की याद दिला देते हैं. मीनाक्षी चौधरी सीमित दृश्यों के बावजूद अपनी उपस्थिति दर्ज कराती हैं. नोरा फतेही को अच्छा रोल मिला है और उन्होंने अपने किरदार को बखूबी निभाया भी है. हो सकता है भविष्य में उन्हें अच्छे कैरेक्टर्स भी मिलने लगें.

डायरेक्शन

करुणा कुमार अपने डायरेक्शन में सफल रहे हैं. उन्होंने वरुण तेज सहित सभी आर्टिस्ट्स से उम्दा अदाकारी करवा ली है. मटका में एक मनोरंजक सिनेमा के सभी मसाले मौजूद हैं इसलिए यह दर्शनीय फ़िल्म है. फ़िल्म अपराध को ग्लोरीफाई भी नहीं करती. तो इस सप्ताह सिनेमाघरों में जाने के लिए मटका एक बेहतरीन विकल्प है.

फिल्म : मटका

कलाकार : वरुण तेज, मीनाक्षी चौधरी, नोरा फतेही

निर्देशक : करुणा कुमार

निर्माता : डॉ. विजेंद्र रेड्डी तीगाला और रजनी तल्लूरी

रेटिंग: 3.5 स्टार्स

/ लोकेश चंद्र दुबे

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