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इंदौर: हिंगोट युद्ध में देसी ग्रेनेड लेकर कलंगी और तुर्रा आमने-सामने

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इंदौर, 1 नवंबर . मध्‍य प्रदेश के इंदौर के पास गौतमपुरा नगर में शुक्रवार शाम से हिंगोट युद्ध शुरू हो गया है और यद्ध पूरी रात दोनों तरफ यह जंग लड़ी जा रही है. इसे देखने के लिए हजारों की संख्या में दर्शक पहुंचे हुए हैं. वहीं सुरक्षा को देखते हुए प्रशासन ने पुख्ता इंतजाम किए है.

जानकारी के लिए बता दें कि इंदौर से 60 किलोमीटर दूर गौतमपुरा नगर में होने वाला हिंगोट युद्ध सदियों पुरानी परंपरा है, जिसे पूरी दुनिया में जाना जाता है. यह युद्ध दीपावली के एक दिन बाद शाम से मनाया जाता है. खास बात ये है कि इसमें हींगोरिया नामक फल का हथयार के तौर पर इस्‍तेमाल होता है. इसे लोग सुदूर जंगलों से लाकर उसको तैयारी करते हैं. उसकी सफाई करके, उसके खोल को बारुद भरकर रॉकेट जैसा तैयार कर लेते हैं. लड़ने वालों में तुर्रा ओर कलंगी दो दल होते हैं, जिनके योद्धा खुद अपने हाथो से अपने अपने हिंगोट तैयार करते है और युद्ध के दिन तुर्रा ओर कलंगी आमने सामने लड़ाई लड़ते हैं. यह युद्ध इतना भीषण होता है कि इसमें आग से लोग झुलस तक जाते हैं. इसके बाद भी लोग अपनी परंपरा बनाए रखे हुए हैं.

दो दल के योद्धा होंगे आमने-सामने

हिंगोट युद्ध में तुर्रा ओर कलंगी दो दल होते है, जिनके योद्धा खुद अपने-अपने हाथों से अपने अपने हिंगोट तैयार करते है. युद्ध के दिन तुर्रा ओर कलंगी दल के रूप में आमने सामने लड़ाई लड़ते है. इसमें कई लोगों को चोट भी आती है, लेकिन परंपरा के नाम पर इस युध्द में लड़ने वाले योद्धा कोई किसी का दुश्मन नहीं रहता. इसके बाद सभी लोग एक दूसरे के गले मिल दुश्मनी भूल जाते है.

क्या है मान्यता

यह परंपरा कई सालों से पीढ़ी दर पीढ़ी चली आ रही है. जिसमें तुर्रा और कलंगी दोनों दल आमने-सामने हिंगोट फेंककर एक दूसरे पर वार करते है. इस कई लोग बुरी तरह से झुलस तक जाते हैं.

जानिए कैसे तैयार होता है हिंगोट

यह योद्धा जैसे ही दशहरा होता है वैसे ही जंगलों में जाकर हिंगोरिया के फल को तोड़कर लेकर आते हैं. उसके बाद उसे छीलकर फल के अंदर से गुदे को निकाला जाता है. जिसके अंदर बारूद भरकर पीली मिट्टी से डाट लगाकर एक बॉस की छोटे आकार की पतली लकड़ी लगाकर उसे राकेट की तरह तैयार करते हैं और अग्निबाणों की तरह एक दूसरे पर हिंगोट से वार करते हैं शाम होते होते युद्ध का मैदान सरसराते अग्निबाणो हिंगोट की रोशनी से सराबोर हो जाता है. हिंगोट युद्ध का इन योद्धाओं को पूरे साल बेसब्री से इंतजार रहता है और दशहरे के बाद से ही हिंगोट बनाने की यह प्रक्रिया यह योद्धा शुरू कर देते हैं.

हिंगोट पर भी पड़ी महंगाई की मार

योद्धाओं की माने तो जैसे-जैसे साल बीतते जा रहे हैं, वैसे-वैसे अब हिंगोट के दामों में भी वृद्धि हो रही है, क्योंकि अब सारा सामान महंगा हो गया है. पहले हिंगोट 2 से 5 रुपए तक तैयार हो जाता था, जिसके बाद कुछ सालों पहले 7 से 8 रुपए में यह हिंगोट बंद कर तैयार होता था, लेकिन अब हिंगोट बनाने में उपयोग आने वाली बारूद और अन्य सामग्रियों के दाम बढ़ने से अब यह हिंगोट 10 से 15 रुपए तक बनकर तैयार हो रहा है. योद्धाओं की माने तो हिंगोट पर भी महंगाई की मार तो पड़ी है. यही कारण है कि अब इस युद्ध में भी लोगों की रूचि कम होती जा रही है.

युद्ध के दौरान कोई भी दर्शक घायल न हो इसके लिए प्रशासन द्वारा युद्ध मैदान के चारों ओर बड़ी-बड़ी जालियां लगाई गई है. गौतमपुरा में रहने वाले निवासियों की माने तो यह केवल हिंगोट युद्ध नहीं बल्कि एक परंपरा और गौतमपुरा की पहचान है. जिससे पूरे विश्व में गौतमपुरा को पहचाना जाता है. वहीं साल में एक दिन हिंगोट युद्ध वाले दिन हर घर में मेहमान भी होते हैं, जो इस बहाने सबक मिलना जुलना भी होता है, जिसे पूरा नगर धरोहर के रूप में मानता है.

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/ राजू विश्वकर्मा

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