224वां स्थापना दिवस: गौरवशाली इतिहास की धरोहर से नई पीढ़ी को परिचित कराने का अवसर
औरैया, 06 नवम्बर . आगामी 10 नवंबर को इटावा जनपद अपने 224वें स्थापना दिवस का उत्सव मनाएगा. इस ऐतिहासिक अवसर पर चंबल संग्रहालय पंचनद के महानिदेशक डॉ. शाह आलम राना ने जिलाधिकारी अवनीश राय को पत्र लिखकर इटावा के समृद्ध और गौरवशाली इतिहास को जनमानस तक पहुंचाने की अपील की है. उन्होंने कहा कि यह अवसर केवल उत्सव का नहीं, बल्कि इस भूमि की ऐतिहासिक धरोहर और परंपरा को सहेजने का भी है.
10 नवंबर 1801 को इटावा जनपद का गठन उस समय हुआ जब अवध के नवाब सादत अली खां और ईस्ट इंडिया कंपनी के बीच हुए समझौते के तहत यह क्षेत्र ब्रिटिश शासन के अधीन आया. इससे पहले, इटावा की अदालत और प्रशासन मियां अलमास अली खां के हाथों में था. यमुना नदी के किनारे बसा इटावा और इसका कुछ क्षेत्र ग्वालियर रियासत के अधीन आता था, जो बाद में 30 दिसंबर 1803 को सुरजी अर्जुन गांव में हुई संधि के बाद इटावा में शामिल कर लिया गया. धीरे-धीरे, ईस्ट इंडिया कंपनी ने अपनी पकड़ मजबूत करते हुए यहां का प्रशासनिक ढांचा बदल दिया.
इटावा की भूमि प्रारंभ से ही बगावत और बलिदान की मिसाल रही है. यहां के पहले विद्रोही लालजू कुशवाह से लेकर स्वतंत्रता संग्राम के कई वीरों ने इस धरती को अपने बलिदान से सींचा. पांच नदियों के संगम के साथ ही यह जनपद धार्मिक, पौराणिक, साहित्यिक और राजनीतिक दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण रहा है.
डॉ. राना ने इस ऐतिहासिक अवसर पर नई पीढ़ी को जनपद के गौरवशाली इतिहास से परिचित कराने की आवश्यकता पर बल दिया. उन्होंने कहा कि जिला प्रशासन की ओर से इस दिवस को मनाने का प्रयास केवल एक परंपरा नहीं, बल्कि इसे सांस्कृतिक धरोहर के रूप में पुनर्जीवित करने का अवसर है. स्थापना दिवस पर इटावा के इस इतिहास को सहेजकर युवाओं को प्रेरित करने का यह एक सार्थक प्रयास हो सकता है.
कुमार
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