जोधपुर, 11 नवम्बर . सत्तर के दशक के रंगकर्म और रंगकर्मियों की अपनी परेशानियां थी, आज के इस बदलाव के दौर की अपनी परेशानियां हैं. रंगकर्मियों की स्थिति पहले जैसी थी वास्तविक धरातल पर आज भी वैसी ही हैं. कुछ इसी तरह के उद्गारों के साथ नेहरू पार्क स्थित डॉ मदन-सावित्री डागा साहित्य भवन में साहित्यिक संस्था शब्द रंग समूह की परिचर्चा संपन्न हुई जो सत्तर के दशक के रंगकर्म पर आधारित थी.
सत्तर के दशक के रंगकर्मी भवानी सिंह चौहान, शब्बीर हुसैन, रवीन्द्र माथुर व आशा पाराशर ने मां सरस्वती के समक्ष दीप प्रज्वल्लित कर समारोह की विधिवत शुरुआत की. इसके बाद अतिथियों का माल्यार्पण गीतकार दिनेश सिंदल, बसंती पंवार, नवीन बोहरा पंछी व वीणा अछतानी द्वारा किया गया. शब्दरंग समूह की अध्यक्ष डॉ. रेणुका श्रीवास्तव ने बताया कि परिचर्चा की शुरुआत करते हुए शब्बीर हुसैन ने अपने गुजरे दिन याद करते हुए रंगविधा बातपोशी का जिक्र किया और वर्तमान रंगमंच के पड़ाव के कई सोपानो को रेखांकित किया.
उन्होने चिंता व्यक्त करते हुए बताया कि पहले से लेकर आज तक निरन्तरता की कमी ही हमारे रंगमंच को आगे आने से रोकती रही है. इसी कड़ी में आशा पाराशर ने अपने अभिनेत्री बनने के सफर की रोचक दोस्तां सबके सामने रखी. जिसमें बताया कि उन्हें हर एक की नकल उतारने (मिमिक्री) का शौक था, इसी शौक पर उस समय के मशहूर रंगनिर्देशक एजी खान की नजऱ पड़ी और उन्होने अपने नाटक ओ बे आदमखोर में लिया.
रंगकर्मी प्रमोद वैष्णव ने थोड़ा तल्ख़ होकर आज के हालात बयान किये और कहा कि धीरे-धीरे शहर से सांस्कृतिक राजधानी का गर्व अब छिनता जा रहा है, क्योंकि यहां के रंगकर्म की सरपरस्ती करने कोई आगे आने को तैयार नहीं है, हां फायदा उठाने को सभी तैयार हैं. रमेश भाटी नामदेव ने नाटकों की प्रस्तुति व दर्शको की कम संख्या पर अफ़सोस ज़ाहिर करते हुए कहा कि अगर दर्शक रंगमंच तक नहीं आ रहा है तो इसमें निश्चित ही ग़लती हमारी है, हमारे प्रयासों में कहीं कमी ज़रूर है, हांलाकि इस बीच सुविधाएं बहुत बढ़ी हैं इसको करने वाले लोग भी बढ़े हैं नये नये लेखक भी सामने आये हैं पर दर्शक अभी भी उतनी संख्या में नहीं आ पा रहे हैं जितनी हम मेहनत करते हैं. कार्यक्रम की शुरुआत में संस्था की अध्यक्ष डॉ. रेणुका श्रीवास्तव ने रंगमंच के इतिहास को रेखांकित करते हुए इसके महत्व पर प्रकाश डाला. परिचर्चा का संचालन तृप्ति गोस्वामी व रेणुका श्रीवास्तव ने किया.
/ सतीश
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