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डाला छठ पर सात नवम्बर को काशी में सार्वजनिक अवकाश, घरों में पारम्परिक गीतों की सुगंध

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-नहाय खाय से महापर्व की शुरुआत, बुधवार को संझवत की रस्म, घरों में ठेकुआ का प्रसाद बना

वाराणसी, 06 नवम्बर . लोक आराधना के महापर्व डाला छठ पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी में सात नवम्बर, गुरुवार को स्थानीय स्तर पर सार्वजनिक अवकाश रहेगा. जिलाधिकारी एस. राजलिंगम के आदेश के अनुसार अवकाश दिया गया है. मंगलवार शाम ये जानकारी अपर जिलाधिकारी वित्त एवं राजस्व वंदिता श्रीवास्तव ने दी.

उधर, मंगलवार से महापर्व डाला छठ की शुरुआत परम्परागत नहाय खाय से हुई. छठ माता के पारम्परिक गीतों को गुनगुनाते हुए व्रती महिलाओं ने संतान प्राप्ति और संतान की मंगल कामना के लिए पूरे आस्था और विश्वास से चार दिवसीय व्रत की शुरुआत की. पहले दिन स्नान ध्यान के बाद व्रती महिलाओं ने भगवान भास्कर और छठ माता की आराधना की. शाम को मिट्टी के चूल्हे पर नये अरवा चावल का भात, चने का दाल, कद्दू की सब्जी बना कर छठी मइया को व्रती महिलाओं ने भोग लगाया. इसके बाद शाम को इसे प्रसाद के रूप में वितरण कर स्वयं भी ग्रहण किया.

बुधवार को खरना के दिन व्रती महिलाएं दिन भर निर्जल उपवास रखकर छठी मइया का ध्यान करेगी. संध्या समय में स्नान कर छठी मइया की पूजा विधि विधान से करने के बाद उन्हें रसियाव, खीर, शुद्ध घी लगी रोटी, केला का भोग लगायेंगी. फिर इस भोग को स्वयं खरना करेंगी. खरना के बाद सुहागिनों की मांग भरकर उन्हें सदा सुहागन रहने का आर्शिवाद देंगी. इसके बाद खरना का प्रसाद वितरित किया जायेगा. फिर 36 घंटे का निराजल कठिन व्रत शुरू होगा. व्रत में तीसरे दिन गुरुवार को महिलाएं छठ मइया की गीत गाते हुए सिर पर पूजा की देउरी रख गाजे बाजे के साथ सरोवर नदी गंगा तट पर जायेगी. यहां समूह में छठ मइया की कथा सुन अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य देकर घर लौटेंगी. चौथे दिन शुक्रवार को उदयाचलगामी सूर्य को अर्घ्य देकर व्रत का पारण करेंगी.

-छठ माता के गीतों की सुगंध

डाला छठ पर्व पर पारम्परिक गीतों की सुगंध जिले के गांव, शहर की गलियों से लेकर घरों में महसूस हो रही है. घरों में शुद्ध देशी घी में ठेकुआ प्रसाद घर की बुर्जुग महिलाओं की देखरेख में तैयार किया जा रहा है. गांव और कस्बे में महिलाएं शुद्धता को लेकर खुद पत्थर के जाते में प्रसाद के लिए आटा पीस कर प्रसाद बना रही है. पारम्परिक छठ पर्व के गीत कांच ही बांस के बहंगिया बहगी लचकत जाये, हो दीनानाथ, हे छठी मइया, केलवा जे फरेला घवद से, आदित लिहो मोर अरगिया, दरस देखाव ए दीनानाथ, उगी ए सुरूज देव की गूंज चहुंओर है.

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/ श्रीधर त्रिपाठी

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