बलिया, 07 नवंबर . छठ व्रत पूजा-पाठ के साथ ही स्वच्छता, पर्यावरण संरक्षण और एकता का संदेश भी देता है. इसके लिए जल का होना जरूरी है, जिसमें खड़ी होकर महिलाएं डूबते और उगते सूर्य को अर्घ्य देती हैं. इसमें जल का संचयन व स्वच्छता का भाव छिपा हुआ है. इसके साथ ही घर की साफ-सफाई पर ध्यान दिया जाता है. तालाब या नदी के किनारे जल में एक साथ सभी जाति की महिलाएं खड़ी होकर जल देती हैं. सभी लोग एक-दूसरे के साथ खड़े होकर एक-दूसरे को बधाई देते हैं और प्रसाद का भी आदान-प्रदान करते हैं.
पर्यावरण और जल संरक्षण का यह महापर्व पूर्वांचल में सामाजिक समरसता बढ़ाने में मददगार है, क्योंकि सूर्य भगवान को अर्घ्य देने वाली व्रती महिलाएं एक-दूसरे से परस्पर गले मिलती हैं व एक दूसरे को प्रसाद का आदान-प्रदान करती हैं. पर्यावरणविद डा. गणेश पाठक बताते हैं कि यदि देखा जाय तो सूर्य षष्ठी का पर्व सामाजिक समरसता व एकता के सूत्र में बांधने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है. जाति एवं धर्म से ऊपर ऊठकर सभी जाति-धर्म के लोग पूजा स्थल पर एक साथ ही एक पंक्ति में बैठकर ऊंच-नीच एवं धनी-गरीब की भावना से ऊपर उठकर पूजा-अर्चना करते हैं. ऐसा सामाजिक सौहार्द्र बहुत कम अवसरों पर देखने को मिलता है. सभी व्रती महिलाएं जाति व धर्म से ऊपर ऊठकर एक दूसरे से गले मिलती है एवं एक दूसरे को प्रसाद का आदान-प्रदान करती हैं. सामाजिक एकता एवं सामाजिक सौहार्द्र का ऐसा अनूठा स्वरूप हमारी सनातन परम्परा में ही मिल सकता है, अन्यत्र नहीं.
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मिलती है जल संरक्षण की चेतना
डा. गणेश पाठक ने कहा कि सूर्य षष्ठी के व्रत की पूजा-अर्चना खासतौर से जल स्रोतों के किनारे ही की जाती है. इस व्रत द्वारा हमें जल संरक्षण की भी चेतना प्राप्त होती है. जलस्रोत के किनारे पूजा करने से हमारे अंदर इस चेतना का संचार होता है कि हमें जलस्रोत को सदैव पूर्ण रखना चाहिए.
उसकी स्वच्छता, शुद्धता एवं पवित्रता को बनाए रखते हुए जल का हमेशा संरक्षण रखना चाहिए एवं प्रदूषण से बचाना चाहिए.
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स्वास्थ्य के प्रति चेतना जागृत करता है छठ व्रत
डा. गणेश पाठक ने कहा कि सूर्य षष्ठी का व्रत स्वास्थ्य की दृष्टि से भी महत्वपूर्ण संदेश देता है. इस व्रत में मौसम के अनुसार ऐसे पकवान एवं फल आदि चढ़ाने का विधान है जो शीत ऋतु में पाचन की दृष्टि से सुपाच्य होता है एवं इस मौसम में सुगमतापूर्वक उपलब्ध हो जाता है. स्वास्थ्य के सम्बर्द्धन की दृष्टि से ये सभी प्रसाद विशेष रूप से अनुकूल होते हैं. इन प्रसादों में विभिन्न पकवान जैसे अगरवटा एवं ठेकुआ, फलों में सेव, संतरा, नाशपाती, नारंगी,नारियल, केला, अन्नानास,चीकू, मौसम्मी, मूली, कदम्ब, शरीफा व नीबू आदि प्रमुखता से चढ़ाए जाते हैं,जो सुपाच्य एवं गुणकारी होते हैं. इस प्रकार सूर्य षष्ठी का व्रत हमें स्वास्थ्य के प्रति सचेष्ट रहने का बोध कराता है.
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/ नीतू तिवारी
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