गुवाहाटी, 07 नवंबर . राजधानी के जोराबाट स्थित श्रीश्री भद्रकालेश्वरी मंदिर घाट पर बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं ने छठ पूजा के अवसर पर अस्ताचलगामी सूर्य को संध्या अर्घ्य अर्पित किया. पारंपरिक रूप से बिहार, उत्तर प्रदेश और अन्य पड़ोसी राज्यों में मनाया जाने वाले यह महापर्व जोराबाट और आसपास के क्षेत्रों में भी खासा लोकप्रिय है. बड़ी संख्या में बिहार और उत्तर प्रदेश से आए प्रवासियों की उपस्थिति ने इस पर्व को क्षेत्र में जीवंत बना दिया है.
हिन्दुस्तान समाचार के साथ खास बातचीत के दौरान जोराबाट छठ पूजा सेवा समिति के अध्यक्ष राजिंदर राय ने सभी को छठ पूजा की शुभकामनाएं देते हुए कहा, “हर साल की तरह इस बार भी हमने श्रद्धालुओं के लिए उनके निकट एक सुरक्षित और पवित्र स्थल की व्यवस्था की है, ताकि वे आसानी से पूजा कर सकें.” उन्होंने कहा कि समिति ने समर्पित प्रयास किए हैं ताकि सभी सुविधाएं श्रद्धालुओं को सुलभ रहें और पूजा का आयोजन सुचारु रूप से हो सके.
समिति के सचिव जयलाल राय ने बताया कि पूजा स्थल पर लगभग 50 से अधिक स्वयंसेवकों के साथ जोराबाट पुलिस और ट्रैफिक पुलिस के कर्मी भी तैनात हैं, जो कि श्रद्धालुओं और आगंतुकों की सुरक्षा सुनिश्चित कर रहे हैं. वहीं समिति के उपाध्यक्ष परमेश्वर पुरी ने कहा, “असम-मेघालय सीमा पर स्थित होने के कारण, जोराबाट में बिहार और यूपी से आने वाले समुदायों की बड़ी संख्या है. पिछले कुछ वर्षों में यह पर्व असमिया, बंगाली, नेपाली, मारवाड़ी और हिंदीभाषी निवासियों में भी बेहद लोकप्रिय हो गया है. यह पर्व यहां की विभिन्न संस्कृतियों के बीच आपसी सद्भाव का प्रतीक बन गया है.”
आज शाम श्रद्धालुओं और आगंतुकों के लिए एक भव्य सांस्कृतिक कार्यक्रम भी आयोजित किया गया, जहां सभी ने छठ के भक्ति गीतों का आनंद लिया. कार्यक्रम की शुरुआत भूपेन हजारिका को श्रद्धांजलि देने से की गई और उसके बाद नहाय खाय के दिन 5 नवंबर को दिवंगत हुई बिहार की पद्मभूषण पुरस्कार प्राप्त लोकगायिका शारदा सिन्हा के लिए एक मिनट का मौन रखा गया.
चार दिनों तक चलने वाला छठ पर्व दीवाली के छठे दिन से शुरू होता है. इस बार 5 नवंबर को नहाय खाय के साथ पूजा शुरू हुई थी, जिसमें श्रद्धालु नदी या किसी जलाशय में स्नान कर पारंपरिक भोजन बनाते हैं. इसके बाद 6 नवंबर को श्रद्धालुओं ने खरना का व्रत रखा, जो सूर्यास्त के बाद खीर बनाकर प्रसाद के रूप में परिवार और दोस्तों के साथ बांटा गया.
आज तीसरे दिन सांध्य अर्घ्य का मुख्य दिन माना जाता है, जब श्रद्धालु कमर तक पानी में खड़े होकर सूर्य देव को अर्घ्य अर्पित करते हैं. कल यानी 8 नवंबर को सुबह उगते सूर्य को अर्घ्य देने के साथ ही व्रत का समापन होगा, जिसमें श्रद्धालु 36 घंटे के निर्जला उपवास के बाद पूजा समाप्त करते हैं.
घाट पर पूजा कर रही एक श्रद्धालु रामप्यारी पुरी ने बताया, “हम अर्घ्य देते समय टोकरी में मौसमी फल रखते हैं और पूजा समाप्त होने के बाद इन्हें अपने परिजनों और प्रियजनों को प्रसाद के रूप में बांटते हैं.”
इसके अलावा जोराबाट के साथ ही आठ माइल, सोनापुर, बर्नीहाट और डिमोरिया के अन्य स्थानों पर भी कई छठ पूजा समितियों ने श्रद्धालुओं के लिए विशेष तैयारियां की. व्यापक व्यवस्था और समुदाय की भागीदारी के साथ, छठ पूजा ने अपनी सांस्कृतिक महत्ता को फिर से दर्शाया, जहां विभिन्न पृष्ठभूमियों के लोग साझा श्रद्धा और उत्सव में एक साथ जुड़े हुए हैं.
/ असरार अंसारी
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