बांदा, 15 नवंबर .जिले में स्थित ऐतिहासिक कालिंजर दुर्ग में कार्तिक पूर्णिमा के अवसर पर लाखों श्रद्धालु भगवान नीलकंठ शिवलिंग के दर्शन और पूजन के लिए पहुंचे. दुर्ग में स्थित नीलकंठेश्वर मंदिर का धार्मिक और ऐतिहासिक महत्व है. मान्यता है कि सागर मंथन से निकले विष को पीने के बाद भगवान शिव ने यहीं तपस्या कर उसकी ज्वाला शांत की थी. इस प्राचीन स्थल पर भगवान शिव के साथ मां पार्वती और उनके पुत्र कार्तिकेय भी विराजमान हैं.
हालांकि, पुरातत्व विभाग ने शिवलिंग के क्षरण का हवाला देते हुए जलाभिषेक पर रोक लगा रखी है. इससे श्रद्धालुओं को निराशा हुई, लेकिन उनकी आस्था में कोई कमी नहीं आई. भक्तों ने दूर से ही भगवान के दर्शन कर पूजा-अर्चना की.
कार्तिक पूर्णिमा पर हर साल यहां विशेष मेला आयोजित होता है. इस वर्ष भी मेले में श्रद्धालुओं की भारी भीड़ उमड़ी. गुरुवार की रात से ही भक्त कोटितीर्थ और बुड्ढा-बुड्ढी तालाब में स्नान कर रोगों और संकटों से मुक्ति की प्रार्थना करते दिखे. स्नान के बाद श्रद्धालुओं ने भगवान नीलकंठेश्वर की पूजा-अर्चना कर पुण्यलाभ कमाया. दुर्ग के भीतर ‘जय भोले’ के जयकारों से वातावरण गूंज उठा.
मेला क्षेत्र में दो दिन पहले से ही दूर-दराज से आए दुकानदारों ने दुकानें सजाई हुई थीं. श्रद्धालु दर्शन और पूजन के बाद मेले में खरीदारी कर कालिंजर दुर्ग का भ्रमण भी करते रहे. इस मेले में देश-प्रदेश ही नहीं, बल्कि विदेशों से भी श्रद्धालु शामिल हुए.
ऐतिहासिक कालिंजर दुर्ग को अपराजेय दुर्गों में गिना जाता है और यह भारत के प्रमुख धार्मिक और पर्यटन स्थलों में से एक है. मान्यता है कि यह स्थल पहले मां काली का शक्तिपीठ था, लेकिन भगवान शिव के आगमन के बाद मां काली कोलकाता चली गईं. इसके बाद भगवान शिव यहां नीलकंठ के रूप में प्रसिद्ध हुए.
आजादी के बाद से इस मेले की व्यवस्था प्रशासनिक समिति संभालती आ रही है. इस बार भी मेले के सफल आयोजन ने श्रद्धालुओं की धार्मिक भावनाओं को प्रोत्साहित किया. भक्तों ने न केवल धार्मिक आस्था को मजबूती दी, बल्कि कालिंजर दुर्ग की ऐतिहासिक विरासत को नमन भी किया.
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/ अनिल सिंह
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