एक समय था जब सहारा ग्रुप देश के शीर्ष उद्योगों में गिना जाता था, और सहारा एयरलाइंस, मीडिया, होम्स से लेकर अनेक क्षेत्रों में इसका दबदबा था. सहारा की चिटफंड योजना के माध्यम से करोड़ों भारतीयों ने इसमें निवेश किया. खासकर गरीब वर्ग के लोग, जिन्होंने अपनी छोटी-छोटी कमाई से 10-100 रुपए तक का निवेश किया, ताकि उन्हें बेहतर रिटर्न मिले और उनके भविष्य की सुरक्षा हो सके.
लेकिन, यह सपने जल्दी ही दुःस्वप्न में बदल गए. सहारा ग्रुप ने निवेशकों का पैसा लौटाने से इनकार कर दिया, जिससे कंपनी की मुश्किलें बढ़ने लगीं. सुप्रीम कोर्ट ने सहारा ग्रुप को निवेशकों के 24 हजार करोड़ रुपये लौटाने का आदेश दिया, और निवेशकों का भुगतान करने में असफल रहने के कारण सुब्रत रॉय को जेल भी जाना पड़ा.
सहारा घोटाले का खुलासा और सरकार पर उठते सवालसहारा के इस घोटाले का पर्दाफाश तब हुआ जब इंदौर के एक सीए रोशन लाल ने नेशनल हाउसिंग बैंक को पत्र लिखकर सहारा की कंपनियों के बॉन्ड नियमों में गड़बड़ियों की जानकारी दी. इस मुद्दे पर SEBI ने भी कार्रवाई शुरू की. सुब्रत रॉय ने आरोप लगाया कि उनके खिलाफ कार्रवाई उनकी राजनीतिक टिप्पणी के कारण हुई, जहां उन्होंने भारत के प्रधानमंत्री के विदेशी मूल पर सवाल उठाए थे.
वित्तीय संस्थान जिसे यूपीए सरकार ने कभी समर्थन दिया था, वही सवालों के घेरे में आ गया. 2008 में RBI ने सहारा फाइनेंशियल कॉर्प लिमिटेड पर पैसे जमा करने पर रोक लगाई और जनता के पैसे वापस लौटाने को कहा. रिपोर्ट के अनुसार, यूपीए सरकार की मदद से सहारा का चिटफंड कारोबार फल-फूल रहा था, लेकिन इसके कारण गरीब निवेशक संकट में आ गए.
भाजपा का वादा – पाई-पाई लौटाई जाएगीझारखंड चुनाव से पहले भाजपा ने जनता से वादा किया है कि सहारा के निवेशकों का एक-एक पैसा लौटाया जाएगा. मोदी सरकार ने इस उद्देश्य के लिए विस्तृत योजना तैयार की है और लोगों से रिफंड के लिए आवेदन करने का आह्वान किया है. भाजपा का कहना है कि झारखंड चुनाव में इसे एक बड़े वादे के रूप में आगे बढ़ाया जाएगा, जिससे पार्टी को चुनावी लाभ मिल सकता है.
क्या भाजपा के लिए गेम चेंजर बनेगा यह वादा?इस चुनावी घोषणा का असर भाजपा के लिए एक गेम चेंजर साबित हो सकता है. सहारा में फंसे हुए निवेशकों के लिए यह मुद्दा केवल पैसे की बात नहीं, बल्कि उनके भविष्य की आशा से जुड़ा है. भाजपा ने झारखंड में इसे एक मजबूत चुनावी हथियार के रूप में प्रस्तुत किया है, जो राज्य में चुनावी समीकरण बदल सकता है.
भाजपा की उम्मीदों का सहारासहारा के लाखों निवेशकों ने वर्षों से अपने निवेश की वापसी की उम्मीदें संजो रखी हैं. भाजपा का यह ऐलान न केवल उनके लिए राहत की बात है, बल्कि झारखंड में चुनावी मैदान में एक महत्वपूर्ण और निर्णायक कदम भी है. यदि भाजपा यह वादा निभाती है, तो इसका सकारात्मक प्रभाव अन्य राज्यों के चुनावों में भी देखा जा सकता है.
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