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असम में बाल विवाह रोकथाम पर एक दिवसीय राज्य स्तरीय कार्यशाला आयोजित

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गुवाहाटी, 03 अक्टूबर . राजधानी के श्रीमंत शंकरदेव कलाक्षेत्र में बाल विवाह पर रोकथाम को लेकर एक दिवसीय राज्य स्तरीय कार्यशाला का आयोजन गुरुवार को किया गया. इस कार्यशाला का आयोजन राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (एनसीपीसीआर) द्वारा असम राज्य बाल अधिकार संरक्षण आयोग (एएससीपीसीआर) के सहयोग से किया गया. जिसे शंकर गुरु राष्ट्रीय सेवा न्यास (एसआरएन) द्वारा प्रायोजित किया गया था.

कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में एएससीपीसीआर के अध्यक्ष और सेवानिवृत्त आईपीएस अधिकारी डॉ. श्यामल प्रसाद सैकिया उपस्थित थे. साथ ही मंच पर अन्य प्रमुख हस्तियों में एएससीपीसीआर की सदस्य रिलांजना तालुकदार महंत, असम पुलिस सेवा की अधिकारी शर्मिष्ठा बरुवा (एआईजीपी वेलफेयर एवं नोडल अधिकारी एसएमआरसी), अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक और एसएमआरसी की समन्वयक गीता अंजलि दोले, सीआईडी की पुलिस अधीक्षक रोज़ी शर्मा, गुवाहाटी मेडिकल कॉलेज अस्पताल के बाल चिकित्सा विभाग के सहायक प्रोफेसर डॉ. दिगंता बरमा और तेजपुर विश्वविद्यालय के विधि विभाग की एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. गीता अंजलि घोष उपस्थित थी.

कार्यशाला की शुरुआत दीप प्रज्ज्वलन और राष्ट्रीय गीत के साथ हुई. एएससीपीसीआर की सदस्य रिलांजना तालुकदार महंत ने बाल विवाह के विषय पर उद्घाटन टिप्पणी की और इसके सामाजिक, मानसिक, शारीरिक और वित्तीय प्रभावों पर प्रकाश डाला. उन्होंने असम में बाल विवाह की 81 प्रतिशत तक की गिरावट के लिए मुख्यमंत्री डॉ. हिमंत बिस्व सरमा और विभिन्न विभागों के प्रयासों की सराहना की. उन्होंने यह भी कहा कि हमें बाल विवाह और ‘बच्चे का बच्चा होने’ की धारणा को पूरी तरह से नकारना चाहिए.

उल्लेखनीय है की शर्मिष्ठा बरुवा ने बाल विवाह की कानूनी पहलुओं और उनके रोकथाम में कानूनी तंत्र की भूमिका पर चर्चा की. वहीं, डॉ. दिगंत बरमा ने किशोर गर्भावस्था के जोखिम और इससे नवजात शिशु के स्वास्थ्य पर पड़ने वाले गंभीर प्रभावों पर जानकारी दी. कार्यशाला के समापन सत्र में एएसपीपीसीआर के अध्यक्ष डॉ. श्यामल प्रसाद सैकिया ने बाल विवाह के ऐतिहासिक और सामाजिक कारणों पर चर्चा की और इसे रोकने के लिए व्यापक प्रयासों की आवश्यकता पर जोर दिया. उन्होंने मुख्यमंत्री डॉ. हिमंत बिस्वा सरमा के नेतृत्व में बाल विवाह में आई कमी के लिए आभार व्यक्त किया और कहा कि हमें इसे पूरी तरह समाप्त करने के लिए सामूहिक रूप से काम करना होगा.

कार्यक्रम के दूसरे सत्र में किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल और संरक्षण) अधिनियम 2015 और इसके 2022 में संशोधित नियमों पर एक राज्य स्तरीय जागरूकता कार्यशाला आयोजित की गई. इस सत्र का नेतृत्व डॉ. गीता अंजलि घोष ने किया. कार्यक्रम के अंत में एएससीपीसीआर के सदस्य फणींद्र बुजरबरुवा ने किशोर न्याय अधिनियम की चुनौतियों और बच्चों के कल्याण के लिए काम करने की आवश्यकता पर बल दिया.

/ देबजानी पतिकर

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