नई दिल्ली, 15 नवंबर .दिल्ली में 43वां भारतीय अंतरराष्ट्रीय व्यापार मेला (आईआईटीएफ) गुरुवार को दिल्ली के प्रगति मैदान में शुरू हो गया.केंद्रीय वाणिज्य और उद्योग मंत्री पीयूष गोयल ने वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से इस मेले का उद्घाटन किया था .
प्रगति मैदान में चल रहे इस मेले में रोजाना 60 हजार से ज़्यादा लोगों के आने की उम्मीद है, जबकि वीकेंड और छुट्टियों में यह संख्या डेढ़ लाख तक पहुंच सकती है.
इस अंतरराष्ट्रीय मेले में बिहार पवेलियन का थीम इस वर्ष मेले की थीम विकसित भारत@2047 के अनुरूप विकसित बिहार@2047 रखा गया है. अंतर्राष्ट्रीय व्यापार मेले में इस वर्ष प्रगति मैदान के हाल नं 2 में सहभागी राज्य के रूप में बिहार मंडप लगाया गया है. बिहार पवेलियन में 75 स्टाल के माध्यम से बिहार के नायाब हैंडलूम एंड हैंडीक्राफ्ट एवं बिहार खादी उत्पादों का प्रदर्शन किया गया है.
बिहार पवेलियन के इन स्टॉलों पर बिहार के पारंपरिक हस्तकलाओं एवं हस्तकरघा उत्पाद जिसमें नालंदा का बावन बूटी, भागलपुर का सिल्क, मिथिलांचल का मधुबनी पेंटिंग, पटना की टीकुली कला इत्यादि को स्थान दिया गया है. इसके अलावा बिहार खादी के उत्पाद हैं. इस वर्ष बिहार मंडप के मुख्य द्वार को सभ्यता द्वार का रूप दिया गया है . जिसके ऊपर विकसित बिहार@2047 का आकर्षक लोगो लगा है.
बिहार मंडप के सेन्ट्रल हॉल में बना बिहार संग्रहालय लोगों को आकर्षित कर रहा है. बिहार संग्रहालय में बिहार की प्राचीन सभ्यता के साथ साथ पुरानी मूर्तियों का भी आकर्षण देखने को मिला. साथ ही इसमें भगवान बुद्ध की प्राचीन प्रतिमा भी है जो विष्णुपुर गया से प्राप्त की गई थी.
बिहार म्यूजियम में बोधिसत्व की प्रतिमा कुषाणकालिन गांधार कला शैली के अंतर्गत निर्मित है ये प्रतिमा पाकिस्तान के चरसद्दा से प्राप्त है .
9वी शताब्दी में सूर्य की काला पत्थर से बनी प्रतिमा बिहार के मुंगेर से प्राप्त है .
पवेलियन में पद्मश्री कलाकारों द्वारा मधुबनी पेंटिंग, टिकुली पेंटिंग भी देखने को मिलेगी.
मौर्य कालिन सभ्यता टिकुली पेंटिंग के विकास में अशोक विश्वास का बहुत बड़ा हाथ है. अशोक विश्वास को टिकुली पेंटिंग के लिए इस वर्ष पद्म श्री पुरस्कार से नवाजा गया.
टिकुली पेंटिंग को दुनिया के सामने लाने वाले उपेंद्र महारथी बहुत काम किए वह जापान गए . जहां से नई जानकारी लेकर आए की टिकुली पेंटिंग को लकड़ी पर भी किया जा सकता है. इसे पहले टिकुली पेंटिंग शीशे पर ही सोना के माध्यम से होती थी.
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/ माधवी त्रिपाठी
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