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दतिया: राजघाट नहर में पानी न छोड़ने के कारण किसान परेशान, बुआई भी अटकी

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दतिया, 16 नवंबर . जिले के ग्रामीण अंचलों में कृषि न केवल आजीविका का प्रमुख साधन है, बल्कि ग्रामीण अर्थव्यवस्था की रीढ़ भी है. विशेष रूप से मध्य प्रदेश के दतिया जिले की भांडेर तहसील में, जहां किसान राजघाट नहर परियोजना पर निर्भर रहते हैं, यह स्थिति और भी अधिक महत्वपूर्ण है. यहाँ के किसानों की पूरी कृषि व्यवस्था, फसल बोने और पानी की उपलब्धता पर निर्भर करती है. लेकिन पिछले कुछ वर्षों से, समय पर नहरों में पानी नहीं छोड़े जाने से किसान परेशान हैं, जिससे उनका आर्थिक और मानसिक संतुलन बिगड़ रहा है.

राजघाट नहर परियोजना के द्वारा समय पर पानी न छोड़ा जाना किसानों के लिए चिंता का विषय है राजघाट नहर परियोजना द्वारा जल आपूर्ति में देरी ने किसानों के सामने गहरे संकट खड़े कर दिए हैं. खरीफ फसल की कटाई के बाद, किसान रबी फसल जैसे गेहूँ, चना, मसूर, मटर और सरसों की बुआई की तैयारी करते हैं, परंतु नहरों में समय पर पानी न मिलने से ये फसलें प्रभावित हो रही हैं. यदि इस समय पानी नहीं मिला, तो बुआई में देरी होगी, जिसका सीधा असर फसल की उत्पादकता और गुणवत्ता पर पड़ेगा.

आमतौर पर रबी फसलों की बुआई का सही समय 15 अक्टूबर से 15 दिसंबर तक होता है, लेकिन इस बार बुआई का समय थोड़ा लेट चल रहा है. इस अवधि में बुआई न होने पर फसलें पूरी तरह से विकसित नहीं हो पातीं और किसानों को उचित उत्पादन नहीं मिल पाता. यही कारण है कि किसान पानी की समय पर आपूर्ति की उम्मीद में होते हैं, ताकि वे समय पर बुआई कर सकें और अच्छे उत्पादन के साथ अपनी मेहनत का फल प्राप्त कर सकें.

आर्थिक समस्याएँ और बढ़ते कर्ज का संकट किसान को अधिक कमजोर बना देता है यदि नहर परियोजना द्वारा समय पर पानी नहीं छोड़ा गया, तो किसान आर्थिक रूप से बुरी तरह प्रभावित होंगे. उनकी फसलें खराब होंगी, जिससे उन्हें आर्थिक नुकसान का सामना करना पड़ेगा. फसल उत्पादन घटने से उनकी आय पर सीधा असर पड़ेगा. ऐसे में किसान खाद, बीज, पेस्टिसाइड, बैंक लोन और किसान क्रेडिट कार्ड (केसीसी) का भुगतान समय पर नहीं कर पाएंगे, जिससे ओवरडू होने की स्थिति पैदा होगी और उनकी आर्थिक परेशानियाँ और बढ़ेंगी. बढ़ते हुए कर्ज और घटते हुए आय स्रोतों के चलते किसान कर्ज के बोझ तले दबते जाते हैं.

बैंक और साहूकारों का कर्ज समय पर नहीं चुका पाने के कारण किसानों की मानसिक स्थिति पर भी गहरा असर पड़ता है. यह स्थिति तब और विकट हो जाती है जब किसान अपनी आजीविका चलाने में असमर्थ महसूस करते हैं और आत्महत्या की ओर मजबूर हो जाते हैं. वास्तव में, यह एक गंभीर सामाजिक और आर्थिक समस्या है, जिसे प्रशासन द्वारा समझना और इसका निराकरण करना अत्यंत आवश्यक है.

किसान मेरी मूंगफली खेत में है जोकि पूर्ण रूप से पक चुकी है उसे निकालने के लिए पानी की जरूरत है यदि हमें समय पर पानी नहीं मिला तो हमारी फसल खेत में ही नष्ट हो जाएगी. मुझे दलहनी मटर की फसल करना है. जिसकी 15 नवंबर तक बोनी हो जाना चाहिए. अभी नहर में पानी नहीं है हम बुआई कैसे करेंगे.

नहरो में पानी कार्तीक माह लगते ही शुरू हो जाता है क्योकी किसानो का पलेवा अति आवश्यक है उस समय धान कटने लगती है और मुंगफली उखडने लगती है इस कारण पानी आव्शयक है और रवी की फसल के लिये खेतो में पलेवा का कार्य शुरू हो जाता है पलेवा के बाद किसानो की बोनी सुरू हो जाती है लेकिन सिंचाई विभाग के अधिकारीयो की ताना शाही के कारण नहरो में पानी अभी तक नहीं छोडा गया एक ओर किसान खाद्य से परेशान है तो दुसरी ओर नहरो में पानी समय पर ना मिलना पानी ना देने से फसल चैपट हो रही है और किसान बरबाद हो रहा है.

सेवानिवृत कैनाल डिप्टी कलेक्टर सिंचाई विभाग दतिया

इस संबंध में कृषि विज्ञान केंद्र दतिया डा. ए के सिंह इनका कहना है कि अगर समय पर नहर चालू नही हुई तो किसानो की बुवाई लेट होगी और उत्पादन पर प्रभाव पडेगा बेसे इस बार पानी अधिक गिरा है जिससे तालाब भरे है किसान उसका उपयोग कर सकता है पलेवा भी चालू हो गये है पानी आजाना चाहिये अगर पलेवा लेट होगा तो बुआई लेट होगी.

हिन्‍दुस्‍थान समाचार/संतोष

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/ राजू विश्वकर्मा

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