– रिकॉर्डेड हजारों जनजातीय कलाकरों ने किया सामूहिक सैला नृत्य
– पीएचई मंत्री उईके ने भी किया नृत्य
भोपाल, 16 नवंबर . मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने भगवान बिरसा मुंडा की 150वीं जयंती पर मंडला में जनजातीय गौरव दिवस के ऐतिहासिक आयोजन पर बधाई और शुभकामनाएं दी. उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय अस्मिता के लिये जनजातीय नायकों ने हमेशा आगे बढ़कर नेतृत्व करने के साथ अपना सर्वस्व राष्ट्र के नाम अर्पित किया. मध्य प्रदेश में इसके अनेकों उदाहरण मौजूद हैं. मंडला के सेमरखापा एकलव्य आदर्श आवासीय विद्यालय में 1521 स्थानीय जनजातीय कलाकारों, छात्र-छात्राओं, जन-प्रतिनिधियों, अधिकारियों और कर्मचारियों ने एक साथ सामूहिक सैला लोकनृत्य की आकर्षक और मनोहारी प्रस्तुति देकर समारोह को भव्यता प्रदान की. मुख्यमंत्री ने कहा कि यह अब तक ज्ञात जानकारी अनुसार रिकॉर्डेड लोगों द्वारा दी गई सामुहिक नृत्य प्रस्तुति रही.
जनसंपर्क अधिकारी बबीता मिश्रा ने शनिवार को बताया कि जनजातीय गौरव दिवस पर आयोजित समारोह में लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी मंत्री संपतिया उईके ने भी जनजातीय बंधुओं के साथ लोकनृत्य कर उनकी हौसला- अफजाई किया. समारोह में मंत्री उईके ने जनजातीय संस्कृति और परंपराओं को सजीव करते हुए प्रसिद्ध लोकगीत तरना मोर न नाना-नानी पर आकर्षक नृत्य किया. कलेक्टर मंडला सोमेश मिश्रा ने मांदर पर थाप दी. जन-प्रतिनिधियों और अधिकारियों ने स्वत:स्फूर्त भागीदारी की. उपस्थित जनसमूह ने भगवान बिरसा मुंडा अमर रहें और जनजातीय गौरव संस्कृति अमर रहे जैसे नारों से वातावरण को गुंजायमान कर दिया.
सैला नृत्य की मूल भावना
सैला नृत्य भारतीय जनजातीय समाज का एक प्रमुख लोक नृत्य है, जिसे मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ और झारखंड राज्यों की जनजातियाँ उत्सव और सामूहिक आनंद के अवसर पर करती हैं. सैला नृत्य जनजातियों के सामूहिक जीवन को दर्शाता है. इसमें सामूहिक ताल-बद्धता और समन्वय की एकरूपता प्रदर्शित होती है. यह नृत्य उल्लास को तो प्रकट करता ही है, साथ ही प्रकृति और देवी-देवताओं के प्रति कृतज्ञता प्रकट करता है. इस नृत्य का आयोजन प्रायः फसल कटाई के बाद किया जाता है. यह नृत्य खुशी और उत्साह से भरपूर होता है, जो जनजातीय जीवन की सरलता को प्रदर्शित करता है. सैला नृत्य जनजातीय संस्कृति, परंपराओं और मूल्यों को पीढ़ी-दर-पीढ़ी संरक्षित और स्थानांतरित करने का माध्यम है. सैला नृत्य जनजातीय समाज की सामूहिकता, सांस्कृतिक पहचान और प्राकृतिक जीवन के साथ उनके गहरे आत्मीय संबंधों का प्रतीक है. इस नृत्य में नर्तक वृत्ताकार स्वरूप में एक-दूसरे के कंधे पकड़कर संगठित रूप से कदमताल करते हैं. यह नृत्य प्रकृति के साथ साहचर्य, सामूहिकता और सांस्कृतिक एकता का प्रतीक है.
/ उम्मेद सिंह रावत
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