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ओ पतंगे ! फस न जाना तुम डगर में - भूपेन्द्र राघव

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इस नगर का एक अनुभव हम बताएं,
हँस  रहीं  हैं  सैकड़ों  तुम्बी-लताएँ।

रस, परागों  से, भ्रमित  होना  नहीं  है,
अश्रुपातों   से   द्रवित  होना   नहीं  है,
जो निमंत्रण मिल रहे हैं  मन-लुभावन,
देखकर   आंनद-चित   होना  नहीं  है,


इस तरह  से  कोई  हित होना नहीं है,
जान  जाये,  पूर्व  उसके  जान जाएं....

हँस  रहीं  हैं   सैकड़ों  तुम्बी-लताएँ।

जो कभी  घट-पर्णियों  के  पास आये,
फिर न शुभ-उद्देश्य उनको  रास आये,
छटपटा कर,  प्राण   देने   ही  पड़े   हैं,
कीजिये अनुभव न यदि विश्वास आये,
इंद्रियों  को  जब कभी आभास आये,
तब संभल कर  पैर यह  अपना बढ़ाएं,
हँस  रहीं  हैं   सैकड़ों  तुम्बी-लताएँ।
भूपेन्द्र राघव, खुर्जा, उत्तर प्रदेश
 

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