Top News
Next Story
NewsPoint

वीरांगना ऊदा देवी पासी (वीरगति दिवस) - हरीराम यादव

Send Push

utkarshexpress.com - आजादी की आग जब मन में लगती है तो तन और मन दोनों उद्वेलित हो उठता है, स्वहित गौड़ हो जाता है और पर हित प्रमुखता से सिर उठा लेता है। पूरा देश स्वजन लगने लगता है, हर एक जीव की पीड़ा अपनी लगने लगती है।  तब पराधीनता से त्रस्त व्यक्ति या व्यक्तियों का समूह उठ खड़ा होता है और ऐसे व्यक्ति या व्यक्तियों के समूह को उसके उद्देश्यों को पूरा करने से रोक पाना किसी भी शासन / सत्ता के लिए नामुमकिन होता है।
देश की आजादी की लड़ाई एक लंबे संघर्ष की गाथा है, जिसमें तमाम ऐसे वीरों ने अपना अमूल्य योगदान दिया, स्थानीय कथानकों में तो वह अमर हो गए लेकिन इतिहास के पन्नों से उन्हें जानबूझकर गायब कर दिया गया, उनके योगदान को भुलाने और भरमाने की भरपूर कोशिश की गयी लेकिन भला सूरज के प्रकाश को कोई चादर तानकर रोक सकता है ? 1857  के स्वतंत्रता संग्राम की एक ऐसी ही महान नायिका वीरांगना ऊदा देवी पासी थीं , जिन्होंने अपने अकेले दम पर 36 अंग्रेज सिपाहियो को मौत की नींद सुलाकर अपनी प्रतिशोध की ज्वाला को ठंडा कर आजादी की आहुति में अपने कर्तव्यों का निर्वहन किया।
 देश में जब अंग्रेज़ों के ख़िलाफ़ स्वतंत्रता संग्राम का पहला बिगुल बजा  तो लखनऊ के नवाब वाजिद अली शाह को अंग्रेजों ने  निर्वासित कर कलकत्ता भेज दिया । उस समय स्वतंत्रता संग्राम के आंदोलन की बागडोर उनकी बेगम हज़रत महल ने संभाली। लखनऊ के चिनहट में (जो कि वर्तमान समय में अयोध्या लखनऊ मार्ग के समीप पड़ता है )  नवाब की फौज़ और अंग्रेज़ों  की सेना के बीच टक्कर हुई और इस टक्कर में वीरांगना ऊदा देवी पासी के पति, जो कि नबाब की फौज में सिपाही थे वह वीरगति को प्राप्त हो गए, उन वीर योद्धा का नाम था सिपाही मक्का पासी ।
जैसा कि आप जानते हैं कि लखनऊ वास्तव में बागों का शहर है और आज भी लखनऊ के दर्जनों इलाकों के नाम बाग शब्द के साथ लिखे जाते हैं। यहीं के सिकंदरबाग़ के क्षेत्र में एक बड़ा पीपल का पेड़ था । 16 नवंबर 1857 को इसी पीपल के पेड़ पर चढ़कर वीरांगना ऊदा देवी पासी ने 36 अंग्रेज़ों को मार गिराया। इस पीपल के पेड़ के नीचे जब अंग्रेजी सेना के कैप्टन वायलस और डाउसन पहुंचे तब वहां अंग्रेज सिपाहियों की लाश देखकर दंग रह गए। सभी लाशों पर गोलियों के निशान थे। उसी समय डाउसन को उस पीपल के पेड़ पर कुछ होने का संदेह हो गया।


काफी देर तक यह पता नहीं चल पा रहा था कि गोलियां कहां से आयीं। काफी देर तक समझने के बाद उन्हें पता चला कि गोलियां ऊपर से आयी हुईं है। जब अंग्रेज अफसरों ने ऊपर पेड़ पर देखा तो पता चला कि पत्तों की आड़ में एक सैनिक बैठ कर ऊपर से सिपाहियो पर गोलियां चला रहा है।  फिर नीचे से अंग्रेज अफसरों ने  वीरांगना पर गोली चला दीं। गोलियां लगते ही मां भारती की वीर बेटी जमीन पर गिर पड़ीं, वह ख़ून से लथपथ थीं। जब उनका जैकेट हटाया गया तो अंग्रेजों  ने देखा कि यह सैनिक पुरुष नहीं एक महिला हैं। बाद में इनकी पहचान वीरांगना ऊदा देवी पासी के रूप में हुई।
वीरांगना ऊदा देवी पासी का जन्म 30 जून 1830 को उत्तर प्रदेश के जनपद लखनऊ के गाँव उजरिया  ( वर्तमान गोमती नगर ) में एक पासी परिवार में हुआ था। उनके पति मक्का पासी अपने समय के एक नामी पहलवान थे और नबाब की सेना में सिपाही थे।

वीरांगना ऊदा देवी पासी की वीरता और बलिदान को पिछले कुछ वर्षों से याद किया जाने लगा अन्यथा उनका बलिदान हाशिए पर पड़ा था। लखनऊ के आसपास के क्षेत्रों में उनका नाम पहले भी सम्मान के साथ लिया जाता था, लेकिन लखनऊ से बाहर कम ही लोग इन वीरांगना के बारे में जानते थे।   लखनऊ के सिकंदरबाग चौराहे पर वीरांगना ऊदा देवी पासी की प्रतिमा लगी हुई है। वहां प्रत्येक वर्ष उनकी जयंती और पुण्यतिथि के अवसर पर कई तरह के आयोजन भी होते हैं।
उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से 20 मार्च 2021 को वीरांगना उदा देवी पासी की वीरता और बलिदान को अमर बनाने के लिए  पीएसी की एक महिला बटालियन की स्थापना करने की घोषणा की गयी है। 
 यह हमारे देश की सबसे कमजोर और निंदनीय कड़ी है जिसमें वीरों, वीरगति प्राप्त योद्धाओं, स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों को जाति और धर्म के आधार पर देख देखकर सम्मान दिया जाता है। इनके सम्मान में भी वोट बैंक की चिंता पहली प्राथमिकता होती है। सरकार और समाज दोनों का कर्तव्य है कि इनको बिना किसी भेदभाव के भरपूर सम्मान दिया जाए। ऐसे योद्धा सकल समाज के हैं, इन्होंने जाति, धर्म, सम्प्रदाय, बोली , भाषा से परे हटकर देश के लिए अपना बलिदान दिया है। आज ऐसे वीरों के कारण ही हम स्वतंत्र हैं।
 - हरीराम यादव, अयोध्या , उत्तर प्रदेश  , फोन नंबर – 7087815074

Explore more on Newspoint
Loving Newspoint? Download the app now