आज तक मैंने तुझे जी भर जिया ए जिंदगी ।
तेरी अज़मत में इज़ाफ़ा ही किया ए जिंदगी ।
आदमी का काम है हर हाल में जीना तुझे ,
सोमरस या ज़हर तू डटकर पिया ए जिंदगी ।
भूख रोटी की मुझे हरगिज हरा पायी नहीं ,
ज़ख्म हर उसका इरादों से सिया ए जिंदगी ।
जब उजालों ने मुझे धोखा दिया है राह में ,
तब अँधेरों का सहारा भी लिया ए जिंदगी ।
कौन है खुद ही बता अभिशाप या वरदान तू ?
लोभ माया जाल ने तोड़ा हिया ए जिंदगी ।
दाग चोटों के अभी मौजूद हैं दिल में मेरे ,
वक्त के आघात को धारण किया ए जिंदगी ।
मौत तो सच्ची सहेली तू पहेली क्यों बनी ?
गीत ग़ज़लों का बनी है काफिया ए जिंदगी ।
जुर्म है या है सजा यह प्रश्न "हलधर " पूछता ?
जो भी है सब ठीक है अब सुक्रिया ए जिंदगी ।
- जसवीर सिंह हलधर, देहरादून
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