Top News
Next Story
NewsPoint

Rajasthan में पशु मेले का आयोजन, नागौरी बैलों के लिए मशहूर है ये मेला

Send Push

नागौर न्यूज़ डेस्क, राजस्थान में मवेशियों को सजाने-संवारने की अनोखी परंपरा है. घंटियों और लड़ियों से मवेशियों की सजावट भी होती है. इसके लिए डीडवाना में पशु मेला लग चुका है. मेले में मवेशियों को सजाने-संवारने के लिए रंग-बिरंगी दुकानें दिख रही हैं. इसे ग्रामीण क्षेत्रों के कारीगर खुद ही तैयार करते हैं. मेले में लगी इन दुकानों पर ग्रामीण क्षेत्रों से बड़ी संख्या में किसान और पशुपालक अपने मवेशियों को सजाने के लिए अलग-अलग आइटम खरीद रहे हैं तो वहीं इस व्यवसाय से जुड़े लोग भी अपनी रोजी रोटी कमा रहे हैं.

प्रदेश में पशुपालन की पारपंरिक पहचान का हिस्सा है यह मेला

डीडवाना और नागौर जिले के पशु मेले केवल पशु व्यवसाय तक ही सीमित नहीं है, बल्कि यह राजस्थान की सांस्कृतिक विरासत भी है. सदियों से इंसानों और पशुओं का रिश्ता इस व्यवसाय को मजबूती देता आया है. इसी के चलते राजस्थान में इंसानों और बेजुबान जानवरों का यह रिश्ता आज भी कायम है. डीडवाना का पशु मेला भी प्रदेश में पशुपालन की इसी पारम्परिक पहचान का हिस्सा रहा है, जो बदलते परिवेश के बावजूद भी कायम है.

मेले में बिक रही पशुओं के लिए आकर्षक घंटियां 

मेले में नजर आने वाले घंटियां, मोती, आर्टिफिशियल फ्लावर और कई तरह के साजो-सामान देखकर यह घर के घरेलू सजावट का सामान लगते हैं. लेकिन यह सामान बेजुबान मवेशियों की सुंदरता को बढ़ाते हैं. मेले में लगी दुकानों पर बिकने वाले घुंघरू को ऊंट, गाय, बैल, भेड़ और बकरी के पैरों में बांधा जाता है. वहीं, गले के लिए घंटियां, मोतियों और फूलों की लड़ी भी है. मुर्रा से मवेशियों के गले, चेहरे, मुंह, नाक और पीठ का श्रंगार किया जाता है. जिससे पशु काफी खूबसूरत नजर आने लगते हैं.  

इधर, कारोबारियों के सामने भी रोजी-रोटी का संकट

मेले में दुकान लगाने वाले व्यापारी ग्रामीण क्षेत्रों से ताल्लुक रखते हैं. व्यापारी कच्चा माल मंगवाकर खुद ही मवेशियों के श्रृंगार आइटम को तैयार करते हैं. पशु मेला ही उनकी आजीविका का सबसे बड़ा साधन भी है. लेकिन अब इनके सामने रोजी-रोटी का बड़ा संकट खड़ा हो गया है. बदलते दौर के साथ अब लोग पशुपालन के व्यवसाय से दूर होते जा रहे हैं और पशु मेले भी दिनों-दिन सिमटते जा रहे हैं. साल दर साल मवेशियों की संख्या घटने से पशुपालन व्यवसाय पर भी संकट के बादल मंडराने लगे हैं. जिसका सीधा असर डीडवाना के मेले पर भी पड़ रहा है. व्यापारियों का कहना है कि कुछ समय पहले तक पशु मेलों में बड़ी तादाद में मवेशी आते थे और किसान-पशुपालक अपने मवेशियों के लिए बंपर खरीददारी करते थे. लेकिन अब धीरे-धीरे इसमें कमी आ रही है, जिससे उन्हें काफी नुकसान होने लगा है. उनका दुकान का खर्च निकालना तक मुश्किल होने लगा है.

Explore more on Newspoint
Loving Newspoint? Download the app now