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Chittorgarh कच्ची बस्ती की रेखा तक्षशिला में कावड़ पर फड़ पेंटिंग बना रही

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चित्तौरगढ़ न्यूज़ डेस्क,  शहर में भोईखेड़ा कच्ची बस्ती की रेखा गर्ग बिहार की तक्षशिला यूनिवर्सिटी के जरिये मेवाड़ के बस्सी की प्रसिद्ध प्राचीन काष्ट कला कावड़ को प्रमोट कर रही है। वहां अभी राष्ट्रीय स्तर की कार्यशाला में 13 राज्यों के 40 चुनिंदा कलाकार भाग ले रहे हैं। उनमें सबसे कम उम्र 22 साल की कलाकार चित्तौड़गढ़ की रेखा गर्ग ही है। राजस्थान से भी वो अकेली है। सबसे उम्रयाफ्ता केरल के एक 70 वर्षीय मूर्तिकार हैं। उसकी बनाई यह कावड़ अब स्थायी रूप से तक्षशिला के म्यूजियम में तो रहेगी ही, डॉक्यूमेंट्री से भी देश-दुनिया के लोग इस कला से वाकिफ होंगे।

इस दस दिवसीय कार्यशाला में रेखा का चयन उसकी मेहतन, लगन व जुनून की कहानी भी है। उसके घर-परिवार में कोई कभी कला तो दूर चित्रकला से नहीं जुड़ा। पिता ड्राइवर हैं। कुछ साल पहले अपनी बुआ के साथ दिल्ली के हाट बाजार में घूमते हुए हस्त कलाकारों की बनाई चीजें देखी तो कला के प्रति आकर्षित हो गई। पेंटिंग खासकर मेवाड़ की प्रसिद्ध चित्रकला फड़ सीखने लगी। इसके बाद इसे बस्सी की काष्ट कला कावड़ से जोड़ा। तीन साल पहले केंद्र सरकार के डवलपमेंट हैंड कॉरपोरेशन कमीश्नर ऑफिस की ओर से महिलाओं व बालिकाओं के लिए 60 दिवसीय आर्ट कैंप आयोजित हुआ तो उसमें पहुंच गई। कला ही जीवन बन गया। अभी मेवाड़ यूनिवर्सिटी से बैचलर ऑफ फाइन आर्ट कोर्स कर रही है। मेवाड़ की लोक कला फड़ व कावड़ को सीखकर देशभर में प्रसिद्ध करने के लिए जुट गई है। मथुरा, उदयपुर शिल्पग्राम व जयपुर के जवाहर कला केंद्र में भी बच्चों को फड़ व कावड़ के बारे में सीखा चुकी है।

इसी से अब उसका चयन बिहार के तक्षशिला यूनिवर्सिटी में आयोजित राष्ट्रीय प्रशिक्षण के लिए हुआ। वहां भगवान विष्णु पर आधारित दो कावड़ बना रही है। 24 गुणा 8 इंच लंबी की कावड़ में एक तरफ राम व दूसरी और कृष्ण जीवन को चित्रित किया। यह कावड़ तक्षशिला में बन रहे म्यूजियम में देशभर की लोक कलाओं के साथ प्रदर्शित होगी। एक डॉक्यूमेंट्री फिल्म भी बन रही है, जिसमें रेखा गर्ग के इंटरव्यू के साथ कावड़ डिस्प्ले होगा। देशभर में इस तरह की कला को प्रदर्शित करने के लिए अहमदाबाद, गोवा, दिल्ली, तक्षशिला आदि 7 जगह नेशनल म्यूजियम बन रहे हैं।

22 साल की उम्र में कला गुरु भी बन गई रेखा गर्ग

रेखा गर्ग खुद अच्छी आर्टिस्ट बनने के बाद अब नए कलाकार तैयार करने को भी प्रयासरत है। भोईखेड़ा की कविता भोई, लक्ष्मी भोई, मिनाक्षी माली, गांधीनगर की वर्षा धोबी, राशमी के भैरूलाल बैरवा , नरेश माली, रूपा व वैशाली आदि उससे फड पेंटिंग व कावड कला सीख जान रहे। रेखा के पिता एक ड्राइवर हैं। वह चार भाई बहनों में सबसे छोटी है। कला से प्रेम होने पर सबसे पहले एक कैंप में फड़ पेंटिंग, केनवास बोर्ड बनाना, ब्रश चलाना सीखा। कहती हैं कि इस कैंप में ही अंदर से फील हुआ कि मुझे ये काम आगे भी करना चाहिए। फिर शादी, ब्याह वाले घर के बाहर पेंटिंग बनाना, बेल बनाना, मंदिर में भगवान की तस्वीर बनाना, दीवारों पर काम करना शुरू किया। मथुरा में पेंटिंग प्रतियोगिता में भी भाग लिया।

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