भले ही उसके पास दो हाथ हैं लेकिन अष्टभुजाओं वाली के समान शक्ति छुपी है समाज में क्यों कोई बुरी नजर से देखें ?क्यों लज्जा भंग करने की हिम्मत करे? नारी को अपने आत्मबल से बुरी आसुरी प्रवृत्तियों का मर्दन करना होगा। यह शुरुआत मां को अपने बेटे से अपनी बेटी से करनी होगी। ऊंची शिक्षा चाहे कितनी भी दो यह संस्कार देना होगा कि हर बेटी हर नारी सम्मान योग्य है। पुरुष को समझना होगा और अपने पुत्र पुत्री को भी समानता की बात समझानी होगी। घर में नारी के साथ इज्जत से व्यवहार करने और बोलते समय सही शब्दों का प्रयोग करना चाहिए ताकि बच्चे बचपन से नारी का सम्मान करना सीखें।
नारी ज्ञान में हुनर में मैनेजमेंट में वित्त को सुरक्षित करने में, आजीविका कमाने में परिवार को संभालने में शासन चलाने में पुरुष के बराबर है। फिर भी खुद को सिद्ध करने के लिए संघर्ष करना पड़ता है। संघर्ष तो ठीक है क्योंकि संघर्ष से व्यक्ति कुंदन बनता है। पीड़ा तो एक ही है शारीरिक दुर्बलता के कारण सहनशीलता की अधिक्य होने के सम्मान को रौंदा जाता है तो नवरात्रि पर दुर्गा के नौ रूप याद आते हैं और फिर समाज से पूछने का मन करता है मूरत को पूजने वाले हे पुरुष ! देख तू घर की घर की, परिवार की, समाज की संजीव नारी को, दे सिर्फ नजरों में सम्मान, तो यह मूरत भी देगी तुझे वरदान। नवरात्रि का उत्सव हो हर नारी के मन का उत्सव हर दिन हो नारी का सम्मान।