छत्तीसगढ़ के बनबरस गांव की ज्योति यादव को अभी भी यक़ीन नहीं हो रहा है कि पिछले सप्ताह तक वे जिस कथित 'स्टेट बैंक ऑफ इंडिया' की छपोरा शाखा में नौकरी करती थीं, वह असल में कोई बैंक था ही नहीं.
स्टेट बैंक ऑफ इंडिया के कुछ अधिकारी जब पुलिस के साथ इस कथित बैंक पहुंचे तो ज्योति को पहली बार पता चला कि बैंक के बोर्ड से लेकर, उनकी नियुक्ति पत्र और सारे कर्मचारी तक फ़र्ज़ी थे.
छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर से लगभग 200 किलोमीटर दूर सक्ति ज़िले में छपोरा गांव हैं, अब यहां के लोग इस घटना से हैरान हैं.
इस मामले में पुलिस ने अनिल भास्कर नाम के एक शख़्स को गिरफ़्तार किया है.
अनिल के आठ सहयोगियों की तलाश चल रही है.
BBC बीबीसी हिंदी के व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ने के लिए BBC गांव के अजय अग्रवाल ने बताया कि उन्होंने स्टेट बैंक ऑफ इंडिया के कियोस्क के लिए आवेदन दिया था सितंबर में खोली गई एसबीआईस की फ़र्ज़ी ब्रांचपिछले पखवाड़े, जब छपोरा गांव में 'स्टेट बैंक ऑफ इंडिया' के नाम से एक नई शाखा खुली तो गांव के लोग ख़ुश हो गए. लोगों को लगा कि अब बैंक से जुड़े काम के लिए उन्हें कहीं और नहीं जाना पड़ेगा.
लेकिन यह ख़ुशी बहुत दिन तक नहीं रही.
पिछले सप्ताह जब स्टेट बैंक ऑफ इंडिया के अधिकारियों ने पुलिस के साथ इस कथित बैंक पर छापा मारा तब यह राज खुला कि स्टेट बैंक ऑफ इंडिया के नाम से खोला गया यह बैंक पूरी तरह से फ़र्ज़ी है. इसका स्टेट बैंक क्या? किसी बैंक से कोई लेना-देना नहीं है.
गांव के अजय अग्रवाल बताते हैं कि उन्होंने स्टेट बैंक ऑफ इंडिया के कियोस्क के लिए आवेदन दिया था.
स्टेट बैंक ऑफ इंडिया कियोस्क, किसी व्यक्ति या निजी संस्था को कम आय वाले समूहों को सीमित बैंकिंग सेवाओं के संचालन की अनुमति देता है.
आम तौर पर यह कियोस्क छोटे गांव-कस्बों में खोले जाते हैं.
ये भी पढ़ें-अजय कहते हैं, “एक दिन जब मैंने गांव में देखा कि स्टेट बैंक ऑफ इंडिया की शाखा ही खुल गई है तो मैं चौंक गया. मुझे लगा कि भला मेरे गांव में स्टेट बैंक की शाखा खोलने की क्या ज़रूरत आ गई? ”
गांव के लोग जब बैंक में पहुंचे तो वहां कई कर्मचारी काम करते मिले.
अत्याधुनिक सुविधाओं के साथ, बैंक के भीतर अलग-अलग डेस्क बने हुए थे.
गांव के लोगों का कहना है कि जब इस बैंक में अकाउंट खुलवाने की बात हुई तो कर्मचारियों ने कहा कि अभी सर्वर का काम चल रहा है, जल्दी ही अकाउंट भी खोला जाएगा.
इस बीच स्टेट बैंक ऑफ इंडिया के एक फ़ील्ड ऑफिसर चंद्रशेखर बोदरा और अजय अग्रवाल ने इस बैंक में कर्मचारियों से पूछताछ की तो उन्हें कुछ शक़ हुआ.
उन्होंने ज़िले में स्टेट बैंक ऑफ इंडिया के शीर्ष अधिकारियों से चर्चा की तो बैंक अधिकारी चौंक गए.
अगले दिन स्टेट बैंक ऑफ इंडिया के अधिकारी स्थानीय पुलिस के साथ इस कथित बैंक पहुंचे तो इस फ़र्ज़ी बैंक की कहानी सामने आई.
लेकिन तब तक बैंक के कथित मैनेजर पंकज साहू फरार हो चुके थे.
BBC पुलिस ने बताया कि मामले में अनिल भास्कर को गिरफ्तार किया है बैंक अधिकारी ने दर्ज कराया मामलास्टेट बैंक ऑफ इंडिया के कोरबा के क्षेत्रीय कार्यालय के मुख्य प्रबंधक जीवराखन कावड़े ने 27 सितंबर को इस मामले में शिकायत दर्ज कराई.
शिकायत के मुताबिक़, ये शाखा 18 सितंबर से खुली हुई थी, जहां 6 लोग काम कर रहे थे. इन्हें फ़र्ज़ी ज्वाइनिंग लेटर भी दिया गया था.
इस मामले में पुलिस ने अनिल भास्कर नामक एक व्यक्ति को गिरफ़्तार किया गया है.
पुलिस के अनुसार अनिल भास्कर ने बैंक में नौकरी देने के नाम पर कुल 6,60,000 रुपये अलग-अलग यूपीआई आईडी से लिए.
अनिल भास्कर ने इस रकम से एक सेकंड हैंड कार आई-20 भी खरीदी.
पुलिस के अनुसार, पूछताछ में अनिल ने अपने 8 सहयोगियों के बारे में भी बताया है, पुलिस की अलग-अलग टीमें इन लोगों का पता लगाने में जुटी हुई हैं.
अभियुक्त के ख़िलाफ़ पहले भी धोखाधड़ी का मामला सामने आ चुका है.
रेलवे में नौकरी के नाम साढ़े सात लाख रुपये की ठगी का मामला बिलासपुर ज़िले में अभियुक्त के ख़िलाफ़ चल रहा है.
BBC ज्योति यादव ने बताया कि स्टेट बैंक ऑफ इंडिया के फ़र्ज़ी ब्रांच में नौकरी देने के बदले ढाई लाख रुपये लिए गए ''फ़र्ज़ी बैंक में नौकरी के लिए रिश्वत भी ली गई''इसके अलावा इस फ़र्ज़ी बैंक में नौकरी करने वाले लोगों से भी पूछताछ की जा रही है.
जिन लोगों को इस कथित बैंक में नौकरी दी गई थी, उनमें से सभी छह लोग ऐसे घरों से हैं, जिनकी आर्थिक स्थिति बहुत मज़बूत नहीं है. इनमें से कुछ का कहना है कि उनसे इस कथित नौकरी के बदले रिश्वत भी ली गई थी.
इस कथित बैंक में काम करने वाली ज्योति यादव बताती हैं कि उनके एक परिचित ने इस बैंक के बारे में जानकारी दी थी. वे जब इस बैंक में पहुंचीं तो उनसे ऑनलाइन फॉर्म भरवाया गया, शैक्षणिक योग्यता के प्रमाणपत्र अपलोड करवाए गए, उनके फिंगर प्रिंट लिए गए.
ज्योति कहती हैं, “मुझसे इस नौकरी के बदले ढाई लाख रुपये लिए गए थे. मुझे ऑफर लेटर दिया गया था और बाद में नियुक्ति पत्र भी. मुझे कहा गया था कि भी छपोरा शाखा में नियुक्ति की जा रही है, जहां प्रशिक्षण दिया जाएगा. मुझे एक बार भी नहीं लगा कि मैं किसी फर्ज़ीवाड़े में फंस गई हूं. लेकिन अब तो सब कुछ बर्बाद हो गया.”
BBC स्टेट बैंक ऑफ इंडिया के नाम पर खुली फ़र्ज़ी ब्रांचकोरबा जिले के भवरखोला गांव की संगीता कंवर बताती हैं कि उनके एक परिचित ने सक्ति ज़िले के छपोरा में स्टेट बैंक ऑफ इंडिया में नौकरी की बात कही थी. वे जब वहां पहुंचीं तो उनसे पांच लाख रुपये की मांग की गई.
उन्होंने अपने गहने गिरवी रख कर एक लाख रुपये का इंतजाम किया. हर महीने 5 फ़ीसदी के ब्याज पर एक लाख रुपये लिए. रिश्तेदारों से पचास हज़ार रुपये का इंतजाम किया. इस तरह उन्हें भी ढाई लाख रुपये देने के बाद कथित बैंक की नौकरी मिली थी.
इस नौकरी के लिए उन्हें पुलिस वेरिफिकेशन के लिए उरगा थाना भी भेजा गया, जहां उन्होंने वेरिफिकेशन भी करवाया. लेकिन किसी को भी शक़ नहीं हुआ.
पुलिस के एक अधिकारी कहते हैं कि केवल नौकरी देने के नाम पर, लोगों से पैसे वसूलने के लिए इस बैंक को खोला गया होगा, ऐसा नहीं लगता. लेकिन बैंक खोलने का असली उद्देश्य क्या रहा होगा, यह अनुमान लगा पाना मुश्किल है.
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़ रूम की ओर से प्रकाशित
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