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चीन, रूस और अमेरिका का रुख़ इसराइल-ईरान तनाव में कैसा है?

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Getty Images हमास के हमले के बाद 8 अक्टूबर को इसराल के जवाबी हमले में ग़ज़ा शहर पर मिसाइल हमला

ईरान के इसराइल पर मंगलवार की रात किए गए मिसाइल हमले ने दुनिया भर की नज़रें एक बार फिर मध्य-पूर्व पर केंद्रित कर दी हैं, जहाँ एक हिंसक विवाद अब हर गुज़रते दिन के साथ और ख़तरनाक होता जा रहा है.

शेयर बाज़ार से लेकर अंतरराष्ट्रीय मामलों पर नज़र रखने वाले विश्लेषकों तक सभी मध्य-पूर्व की ताज़ा स्थिति और विभिन्न पक्षों के अगले क़दम के बारे में बात करने की कोशिश कर रहे हैं.

इन सब के बीच दुनिया की तीन बड़ी शक्तियां अमेरिका,चीन और रूस इस विवाद का हल तलाश करने में नाकाम दिखाई देती हैं.

हमास के इसराइल पर सात अक्टूबर के हमले के बाद मध्य-पूर्व में बढ़ने वाला तनाव अब ग़ज़ा, लेबनान और यमन के बाद ईरान तक फैलता हुआ नज़र आ रहा है.

इसराइली हमले में अब तक हमास और हिज़्बुल्लाह के सीनियर नेताओं समेत हज़ारों लोग मारे जा चुके हैं.

image BBC बीबीसी हिंदी के व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ने के लिए यहाँ करें

इस युद्ध के दौरान इसराइल अपने दुश्मनों, जिसमें हिज़्बुल्लाह, हमास और ईरान शामिल हैं, के ख़िलाफ़ कामयाब कार्रवाइयां करता हुआ नज़र आया है.

पिछले हफ़्ते लेबनान में इसराइली हमले में हिज़्बुल्लाह के प्रमुख हसन नसरल्लाह समेत संगठन के कई नेता भी मारे गए थे और उनके अलावा हिज़्बुल्लाह के कई सीनियर नेता पहले भी मारे जा चुके हैं.

क्या इस जंग का दायरा और बढ़ेगा image Getty Images पिछले हफ़्ते संयुक्त राष्ट्र की जनरल असेंबली में अपने भाषण के दौरान अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन ने कहा था कि युद्ध किसी के भी हित में नहीं है

इस साल ईरान की राजधानी तेहरान में जुलाई में हुए एक ऐसे ही हमले में हमास के प्रमुख इस्माइल हनिया भी मारे गए थे.

इसराइल ने इस हमले की ज़िम्मेदारी तो क़बूल नहीं की थी लेकिन समझा यही जाता है कि इस हमले के पीछे तेल अवीव ही था.

अमेरिका, ब्रिटेन और यूरोपीय यूनियन में शामिल कई देश न केवल ग़ज़ा बल्कि लेबनान में भी युद्ध रोकने की कोशिश कर रहे हैं लेकिन ये कोशिशें अब तक कारगर साबित नहीं हुई हैं.

अमेरिका समेत कई देशों को यह डर है कि ग़ज़ा और लेबनान में लड़ी जाने वाली जंग पूरे मध्य-पूर्व में भी फैल सकती है.

पिछले हफ़्ते संयुक्त राष्ट्र की जनरल असेंबली में अपने भाषण के दौरान अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन ने कहा था कि युद्ध किसी के भी हित में नहीं है.

उन्होंने कहा था, ''इस समस्या का कूटनीतिक हल अब भी मुमकिन है बल्कि दीर्घकालिक सुरक्षा को सुनिश्चित बनाने का रास्ता भी यही है.''

लेकिन हर तरह की अपीलों के बावजूद इसराइल ने ग़ज़ा और लेबनान में हमले जारी रखे हैं और अब ईरान के हमले के बाद इसराइल की ओर से एक बार फिर ईरान पर हमले की धमकी दी गई है.

सात अक्टूबर 2023 के बाद से ग़ज़ा पर इसराइल की लगातार बमबारी के नतीजे में ग़ज़ा के स्वास्थ्य मंत्रालय के अनुसार, अब तक 40 हज़ार से अधिक नागरिक मारे जा चुके हैं और लाखों लोग बेघर हो चुके हैं.

इसी तरह सितंबर 2024 में लेबनान पर इसराइली हवाई हमले में मारे जाने वालों की संख्या एक हज़ार से अधिक है.

दूसरी ओर ग़ज़ा में पिछले एक साल से अधिक समय में हमास के ख़िलाफ़ की गई ज़मीनी कार्रवाइयों के दौरान इसराइल के दर्जनों सैनिक मारे गए और घायल हुए हैं.

हिज़्बुल्लाह की ओर से पिछले साल सात अक्टूबर के बाद से इसराइल पर रॉकेट दागे जाने का सिलसिला भी जारी रहा और इसराइली प्रधानमंत्री का दावा है कि पिछले एक साल के दौरान हिज़्बुल्लाह की ओर से इसराइल के विभिन्न इलाक़ों में कुल मिलाकर आठ हज़ार से अधिक रॉकेट दागे जा चुके हैं.

इसराइल पर कोई असर नहीं image AVI OHAYON / GPO / HANDOUT सुरक्षा कैबिनेट की बैठक करते हुए इसराइल के प्रधानमंत्री बिन्यामिन नेतन्याहू

यमन के हूती लड़ाके भी ग़ज़ा की लड़ाई की शुरुआत के बाद से लाल सागर में इसराइल आने और जाने वाले समुद्री जहाज़ों को निशाना बनाते आए हैं.

इससे पहले इस साल अप्रैल की शुरुआत में ईरान के रिवॉल्यूशनरी गार्ड्स के दो सीनियर कमांडर सीरिया की राजधानी दमिश्क में ईरान काउंसिल ख़ाने पर होने वाले मिसाइल हमले में मारे गए थे.

इसराइल की ओर से इस हमले की भी ज़िम्मेदारी क़बूल नहीं की गई थी लेकिन आम राय यही है कि इस हमले के पीछे भी इसराइल ही था.

इसराइल का कहना है कि वह मध्य-पूर्व में सभी कार्रवाइयां अपनी रक्षा में कर रहा है.

पिछले दिनों संयुक्त राष्ट्र में अपने भाषण के दौरान इसराइली प्रधानमंत्री नेतन्याहू का कहना था कि इसराइल शांति चाहता है…..''मगर फिर भी हमें वहशी दुश्मनों का सामना करना है जो हमारी तबाही चाहते हैं और हमें उनके ख़िलाफ़ अपनी रक्षा करनी चाहिए.''

उन्होंने ईरान की तीखी आलोचना करते हुए कहा कि इसराइल ईरान से मिलने वाले ख़तरे से निपटने के लिए सात अलग-अलग मोर्चों पर अपनी रक्षा कर रहा है.

उन्होंने अपने भाषण के अंत में कहा कि इसराइल यह जंग जीतेगा ''क्योंकि यह जंग जीतने के अलावा हमारे पास कोई चारा नहीं है.''

लेबनान का मोर्चा गर्म होने से पहले अमेरिका इसराइल और हमास के बीच युद्ध बंद करवाने के लिए वार्ता की कोशिश भी करता रहा है लेकिन यह वार्ता अब तक गतिरोध का शिकार है.

लेकिन अब भी प्रधानमंत्री बिन्यामिन नेतन्याहू की ओर से जारी होने वाले बयानों को देखकर यही लगता है कि युद्ध ख़त्म करने की मांग और कूटनीतिक कोशिशों का इसराइल पर कोई असर नहीं हो रहा.

सोमवार को सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म 'एक्स' पर शेयर किए गए ईरानी जनता के नाम तीन मिनट के वीडियो संदेश में इसराइली प्रधानमंत्री का कहना था, ''मध्य पूर्व में कोई ऐसी जगह नहीं है, जहां इसराइल नहीं पहुंच सकता और कोई ऐसा स्थान नहीं जहां हम अपने लोगों और देश की सुरक्षा के लिए नहीं जा सकते.''

उन्होंने ईरानी जनता को संबोधित करते हुए कहा कि हर गुज़रते लम्हे के साथ (ईरानी) सरकार 'सम्मानित ईरानी जनता' को तबाही के पास ले जा रही है.

नेतन्याहू ने कहा कि जब ईरान ''अंततः आज़ाद हो जाएगा'' तो सब कुछ बदल जाएगा और दोनों देशों के लोग अमन से रह सकेंगे.

इसराइली प्रधानमंत्री का कहना था,''जुनूनी मुल्लाओं को अपनी उम्मीदें और सपना कुचलने न दें, आप इससे बेहतर के अधिकारी हैं. ईरानी जनता जान ले कि इसराइल आपके साथ खड़ा है. हम साथ मिलकर ख़ुशहाल और शांतिपूर्ण भविष्य देखेंगे.''

ईरान के मिसाइल हमलों के बाद यह सवाल पैदा होता है कि दुनिया की बड़ी शक्तियां आख़िर इस विवाद में शामिल पक्षों को युद्ध रोकने के लिए तैयार क्यों नहीं कर पा रहीं और अमेरिका के अलावा रूस और चीन जैसी विश्व शक्तियां इस मामले पर कोई प्रभावी भूमिका क्यों नहीं अदा कर पा रहीं?

मध्य-पूर्व और अंतरराष्ट्रीय विदेश नीति पर नज़र रखने वाले विशेषज्ञों और विश्लेषकों का कहना है कि अमेरिका, रूस और चीन जैसे देशों के बीच असहयोग और अमेरिका की अंदरूनी राजनीति कुछ ऐसी बातें हैं, जिसके कारण इसराइल को युद्ध रोकने के लिए तैयार करना मुश्किल हो रहा है.

अमेरिका, चीन और रूस के बीच मतभेद image REUTERS मध्य-पूर्व में अमेरिका और रूस के हित अलग-अलग देशों से जुड़े हैं

एक ओर अमेरिका मध्य-पूर्व में किसी बड़े युद्ध को रोकने की कोशिश कर रहा है तो दूसरी और सहयोगी के तौर पर इसराइल को सैनिक शक्ति बढ़ाने के लिए अरबों डॉलर की मदद भी कर रहा है.

पिछले हफ़्ते इसराइल ने कहा था कि अमेरिका की ओर से आठ अरब 70 करोड़ डॉलर का सहायता पैकेज मिला है ताकि वह अपनी सैनिक कार्रवाइयों को जारी रख सके.

चीनी थिंक टैंक ताईही इंस्टीट्यूट के सीनियर फ़ेलो इनार तांजीन कहते हैं, ''एक तरफ़ अमेरिका युद्ध ख़त्म करने की बात करता है लेकिन दूसरी तरफ़ वह (इसराइल को) हथियार, गोला बारूद और इंटेलिजेंस सपोर्ट दे रहा है जिसका इस्तेमाल महिलाओं और बच्चों समेत हज़ारों आम नागरिकों की हत्या के लिए किया जा रहा है.''

अमेरिका अब तो युद्ध समाप्त करने की बात कर रहा है लेकिन अतीत में उसकी ओर से संयुक्त राष्ट्र में युद्ध समाप्त करने के प्रस्तावों को रोका भी गया है.

इसके बारे में अमेरिकी विदेश मंत्रालय की प्रतिनिधि मार्ग्रेट मैक्लॉविड ने बीबीसी को बताया, “हमने उसी प्रस्ताव का विरोध किया, जिसमें हमास के आतंकवाद को नज़रअंदाज़ किया गया या जिसमें इसराइल के रक्षा अधिकार को नज़रअंदाज़ किया गया.”

दूसरी ओर रूस और चीन जैसी दूसरी बड़ी शक्तियां बयानों की हद तक तो ऐसे हमलों की निंदा करती हुई नज़र आती हैं, जिनसे क्षेत्र में तनाव बढ़ने की आशंका हो लेकिन उनकी ओर से अब तक कोई व्यावहारिक उपाय देखने में नहीं आए.

image Getty Images दुनिया भर में चीन का प्रभाव बढ़ता हुआ नज़र आया है. पिछले साल चीन की कोशिशों से लगभग सात वर्षों के बाद ईरान और सऊदी अरब के संबंध बहाल हो गए थे

हाल के वर्षों में दुनिया भर में चीन का प्रभाव बढ़ता हुआ नज़र आया है.

इस प्रभाव का उदाहरण यह है कि पिछले साल चीन की कोशिशों से लगभग सात वर्षों के बाद ईरान और सऊदी अरब के संबंध बहाल हो गए थे.

लेकिन लेबनान में इसराइली हमले में हसन नसरल्लाह समेत हिज़्बुल्लाह के कई सीनियर नेताओं की मौत के बाद चीन ने केवल इतना ही कहा कि वह लेबनान की स्वायत्तता और सुरक्षा के ‘उल्लंघन’ का विरोध करता है और आम नागरिकों के ख़िलाफ़ की जाने वाली कार्रवाइयों की निंदा करता है.

चीन के विदेश मंत्रालय का यह भी कहना था कि लेबनान और इसराइल के बीच तनाव ग़ज़ा में विवाद के कारण बढ़ा है और यह कि चीन को क्षेत्र में बढ़ते हुए तनाव पर चिंता है.

''चीन सभी संबंधित पक्षों, विशेष कर इसराइल से अनुरोध करता है कि वह स्थिति को ठीक करने के लिए उपाय करें और इस विवाद को अनियंत्रित होने से रोके.''

दूसरी ओर रूस है जो कि इस क्षेत्र में ईरान का महत्वपूर्ण सहयोगी भी है. रूस भी इस विवाद के समाधान में कोई प्रभावी भूमिका निभाता नहीं दिख रहा है. हालांकि मध्य-पूर्व की स्थिति की उसने भी निंदा की है.

अमेरिका में चुनाव और इसराइल image BBC अमेरिका के राष्ट्रपति चुनाव में इसराइल से जुड़ा मुद्दा अहम माना जाता है

सोमवार को रूस की ओर से जारी एक बयान में कहा गया था कि रूस हिज़्बुल्लाह प्रमुख की हत्या की निंदा करता है. उसने यह भी कहा कि इसके कारण मध्य-पूर्व में व्यापक युद्ध की आशंकाएं बढ़ गई हैं.

क्रेमलिन के प्रवक्ता दमित्री पेसकोव का कहना था कि रूस ऐसी सभी कार्रवाइयों की निंदा करता है जिसके कारण क्षेत्र की स्थिति और तनावपूर्ण हो जाए.

अमेरिकी थिंक टैंक स्टिम्सन सेंटर की फ़ेलो बारबरा स्लावन कहती हैं कि सन 2022 में रूस के यूक्रेन पर हमले और रूस पर अमेरिकी प्रतिबंधों के बाद दोनों देशों के संबंध बेहद बिगड़ चुके हैं.

वह कहती हैं कि चीन और अमेरिका के संबंध में ठहराव भी किसी से ढँका-छिपा नहीं है और ऐसे में चीन क्यों मध्य-पूर्व में विवाद की समाप्ति के लिए अमेरिका के साथ सहयोग करेगा?

इसके बारे में इनार तांजीन कहते हैं कि चीन इस स्थिति में नहीं है कि वह अमेरिका को या परमाणु शक्ति संपन्न इसराइल को डिक्टेट कर सके.

उन्होंने कहा, ''चीन ने हमेशा ही युद्ध ख़त्म करने की मांग की है और ऐसी वार्ता का समर्थन किया है.

ध्यान रहे कि दशकों से यही समझा जाता रहा है कि इसराइल के पास परमाणु हथियार मौजूद हैं लेकिन उसकी ओर से कभी इस बात की पुष्टि या इसका खंडन नहीं किया गया.

अमेरिका में इस साल नवंबर में राष्ट्रपति चुनाव होने जा रहा है, जिसमें अमेरिकी उपराष्ट्रपति कमला हैरिस और रिपब्लिकन उम्मीदवार डोनाल्ड ट्रंप के बीच कांटे के मुक़ाबले की उम्मीद है.

स्टिम्सन सेंटर से जुड़ी बारबरा स्लावन कहती हैं कि बाइडन प्रशासन इसराइल समर्थक स्टैंड रखता है.

उन्होंने कहा, ''हम सबको पता है कि जो बाइडन हथियार उपलब्ध कराने को सीमित कर इसराइल पर असल दबाव डालने में हमेशा हिचकिचाहट का शिकार रहे हैं.''

बारबरा कहती हैं, ''अब जबकि अमेरिकी चुनाव कुछ ही हफ़्ते दूर है तो मेरी राय है कि बाइडन या कमला हैरिस दोनों इसराइल के ख़िलाफ़ सख़्त फ़ैसलों का प्रस्ताव नहीं देंगे क्योंकि इससे ट्रंप को दोबारा राष्ट्रपति बनने में मदद मिल सकती है.''

image Getty Images इसराइल पर मिसाइल हमलों के बाद तेहरान में जश्न मनाते लोग

ध्यान रहे कि बतौर राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप ने सन 2017 में यरूशलम को इसराइली राजधानी मान लिया था जिस पर कई देशों ने अपनी आपत्ति जताई थी.

बारबरा कहती हैं, ''लेकिन अगर कमला हैरिस जीत जाती हैं तो क्या पता हमें ग़ज़ा और लेबनान में युद्ध रोकने के लिए अमेरिकी दबाव बढ़ता हुआ नज़र आए. लेकिन इन सब का दारोमदार इस बात पर होगा कि इसराइल और ईरान इस विवाद के वर्तमान दौर में कहां लकीर खींचते हैं.''

अंतरराष्ट्रीय नेता ईरान, हमास और हिज़्बुल्लाह समेत उसके सहयोगियों पर ज़ोर देते रहे हैं कि वह इसराइल के ख़िलाफ़ ऐसे जवाबी हमले न करें जो क्षेत्र में और तनाव को बढ़ा सकते हैं.

ईरान में इस्माइल हनिया की हत्या के बाद ब्रिटेन, फ़्रांस और जर्मनी ने एक संयुक्त बयान में ईरान पर ज़ोर दिया था कि वह इसराइल के ख़िलाफ़ कार्रवाई से बचे लेकिन ईरान ने इस अनुरोध को ‘ज़रूरत से बड़ा अनुरोध’ बता दिया था.

लेबनान में हसन नसरल्लाह के मारे जाने के बाद ईरान के विदेश मंत्रालय ने अपने एक बयान में कहा था कि ईरान, लेबनान या ग़ज़ा में अपनी सेना नहीं भेजेगा.

विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता नसीर कनआनी का कहना था कि ईरानी बलों को भेजने की ज़रूरत नहीं है क्योंकि लेबनान और फ़लस्तीन के इलाक़े में मौजूद लड़ाके आक्रामकता के ख़िलाफ़ अपनी रक्षा करने की शक्ति रखते हैं.

दूसरी और अमेरिकी प्रशासन भी मानता है कि युद्ध समाप्त करने के लिए अमेरिकी कोशिशें अभी तक नाकाम नज़र आई हैं.

अमेरिकी विदेश मंत्रालय की प्रतिनिधि मार्ग्रेट मैक्लॉविड कहती हैं, "जब तक युद्ध समाप्त नहीं होगा तब तक मैं यह नहीं कहूंगी कि अमेरिकी सरकार ने काफ़ी काम किया है."

''हम समझते हैं कि वह विवाद जो इसराइल और हमास के बीच चल रहा है, उसका कूटनीति से हल होना चाहिए."

उन्होंने इसराइल और लेबनान से आने वाली ख़बरों को चिंताजनक बताते हुए कहा कि सात अक्टूबर के बाद अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन मध्य-पूर्व के 11 दौरे कर चुके हैं क्योंकि अमेरिका की इच्छा है कि यह मामला कूटनीति से हल हो.

बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़ रूम की ओर से प्रकाशित

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