हिज़्बुल्लाह नेता हसन नसरल्लाह की मौत की ख़बर का असर भारत में भी देखा गया है.
पहले कश्मीर घाटी में लोगों के विरोध प्रदर्शन की ख़बर आई. फिर भारत में शिया समुदाय का केंद्र कहे जाने वाले लखनऊ में भी हुए प्रदर्शन में कई हज़ार लोग शामिल हुए.
इस विरोध प्रदर्शन के दौरान इसराइल के प्रधानमंत्री बिन्यामिन नेतन्याहू का पुतला भी फूंका गया.
मोटे तौर पर अनुमान लगाया जाता है कि भारत में क़रीब दो करोड़ शिया मुसलमान रहते हैं और इनकी बड़ी आबादी लखनऊ में रहती है.
लखनऊ के अलावा कोलकाता में भी विरोध प्रदर्शन हुए हैं.
BBC बीबीसी हिंदी के व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ने के लिए यहाँ क्लिक करें जमात-ए-इस्लामी हिंद ने जारी किया बयानसोशल मीडिया पर भी हसन नसरल्लाह की मौत पर शिया समुदाय के लोगों ने अपने गुस्से का इज़हार किया है.
सुन्नी समुदाय के कुछ संगठनों ने भी बयान जारी करके इस हमले की निंदा की है. जमात-ए-इस्लामी हिंद ने बयान जारी करके इस हमले की निंदा की है.
मगर किसी दूसरे बड़े मुस्लिम संगठन ने इस मसले को लेकर आवाज़ नहीं उठाई है.
दुबई स्थित गल्फ न्यूज़ के पूर्व संपादक बॉबी नकवी का कहना है, ''हसन नसरल्लाह के मारे जाने से शिया और सुन्नी समुदाओं के बीच न ही हिंदुस्तान में और न ही पाकिस्तान में किसी प्रकार का कोई तनाव बढ़ेगा, बल्कि ईरान का असर ज़रूर मध्यपूर्व में कम होगा क्योंकि मध्यपूर्व में ईरान अपने प्रॉक्सी के ज़रिए लड़ रहा था.''
नकवी ने बताया, “अब देखना है कि हिज़्बुल्लाह इसके बाद किस तरह का जवाब देता है, जहां तक सुन्नी संगठनों की खामोशी की बात है तो अरब देशों में सुन्नियों की तरफ़ से कोई ख़ास प्रतिक्रिया नहीं आई है. हो सकता है कि इस वजह से हिंदुस्तान में ज़्यादातर सुन्नी संगठन खामोश हैं.”
कश्मीर में नेशनल कांफ्रेंस के सांसद आगा रूहुल्लाह मेंहदी ने हसन नसरल्लाह को ‘शहीद’ बताया है.
वहीं पीडीपी की नेता महबूबा मुफ्ती ने कश्मीर में अपने चुनाव प्रचार अभियान को रोक दिया था. एनसी के नेता उमर अब्दुल्लाह ने मध्य पूर्व में हिंसा ख़त्म करने पर ज़ोर दिया है.
इस सियासी पहलू पर बीजेपी ने भी अपनी प्रतिक्रिया दी है और नेशनल कॉन्फ्रेंस, पीडीपी से सवाल पूछे हैं.
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लखनऊ में रविवार को शिया समुदाय के कई हज़ार लोग इकट्ठा हुए और छोटे इमामबाड़े से लेकर बड़े इमामबाड़े तक कैंडल मार्च निकाला. प्रदर्शन में महिलाएं और बच्चे भी थे जो इसराइल ‘मुर्दाबाद’ के नारे लगा रहे थे.
शिया पर्सनल लॉ बोर्ड के महासचिव यासूब अब्बास ने प्रदर्शन के दौरान कहा, ''जिस तरह से हसन नसरल्लाह को आंतकवादी कहा जा रहा है, मैं बता दूं कि उन्होंने आईएसआईएस के ख़िलाफ़ लड़ाई लड़ी है. वो मज़लूमों के साथ थे. सीरिया और फ़लीस्तीन में भी वो मज़लूमों का साथ दे रहे थे. असल आतंकवादी अमेरिका और इसराइल हैं.''
लखनऊ में शिया समुदाय ने तीन दिन का शोक घोषित किया है. ऑल इंडिया शिया पर्सनल लॉ बोर्ड ने अपील भी की है कि सभी लोग अपने घरों पर काला झंडा लगाएं. संगठन के महासचिव यासूब अब्बास ने बयान जारी करके कहा कि हसन नसरल्लाह शिया समुदाय के बड़े नेता थे.
यासूब अब्बास ने अपने बयान में कहा, ''ये अफ़सोस का वक़्त है और संयुक्त राष्ट्र संघ को दबाव बनाकर इसराइल को लेबनान और फ़लीस्तीन पर हमला करने से रोकना चाहिए.''
शिया समुदाय के नेता कल्बे जव्वाद ने पुराने लखनऊ में रुस्तम नगर में शोक सभा को संबोधित करते हुए कहा, ''ये बहत बड़े ग़म का वक़्त है. जो लोग अपनी आज़ादी के लिए लड़े या लड़ रहे हैं, उनको दहशतगर्द बताया जा रहा है.''
उन्होंने अपील करते हुए कहा, ''जो संगठन इन ताक़तों के साथ नहीं हैं, वो एक साथ आएं और आवाज़ बुलंद करें. शहीद होना इस्लाम में एक बड़ा मर्तबा है.''
कल्बे जव्वाद ने उन सोशल मीडिया प्लेटफार्म्स का भी बॉयकॉट करने की अपील की है, जिन्होंने हसन नसरल्लाह के समर्थन में किए पोस्ट को कथित तौर पर डिलीट किया.
दिल्ली में अंजुमन हैदरी के बहादुर अब्बास ने बताया कि 30 सितंबर को इंडिया इस्लामिक कल्चर सेंटर में शोकसभा का आयोजन किया गया.
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29 सितंबर को कारगिल में बंद का एलान किया गया था.
श्रीनगर और बडगाम में हुए प्रदर्शन में इसराइल के ख़िलाफ़ नारेबाज़ी हुई.
प्रदर्शनकारी हसन नसरल्लाह का पोस्टर लेकर सड़कों पर दिखे. प्रदर्शन में औरते और बच्चे भी शामिल थे.
वहीं जम्मू कश्मीर अंजुमन शरिया (शिया) के आगा सैयद हसन मूसवी ने कहा, ''कितना भी हम लोग अफ़सोस जता लें लेकिन शहीद हसन नसरल्लाह की कमी खलेगी. वो चाहते थे कि फ़लीस्तीन आज़ाद हो जाए. उनके मिशन को बढ़ाने के लिए हज़ार नसरल्लाह पैदा होंगे.''
कोलकाता में भी शिया समुदाय ने शोक सभा की और इसराइल के ख़िलाफ़ नारेबाज़ी की है.
जम्मू कश्मीर में अंतिम चरण के चुनाव होना बाक़ी हैं, इसलिए सियासत भी गर्म है.
महबूबा मुफ्ती ने सोशल मीडिया पर लेबनान और ग़ज़ा के लोगों का समर्थन किया है.
नेशनल काफ्रेंस के नेता उमर अब्दुल्लाह ने मीडिया से कहा, “भारत के प्रधानमंत्री और अन्य देशों को इसराइल पर दबाव बनाना चाहिए कि वो युद्ध रोके और वहां पर शांति स्थापित हो. हम लोगों ने वहां पर हिंसा और बम बरसाए जाने का हमेशा विरोध किया है. फ़लीस्तीन के मासूम लोगों की हत्या बंद होनी चाहिए.”
कश्मीर से ताल्लुक रखने वाले वरिष्ठ पत्रकार औरंगज़ेब नक्शबंदी का कहना है, "कश्मीर में महबूबा मुफ्ती को खोयी हुई ज़मीन की तलाश है और क्योंकि शिया समुदाय यहां पर काफ़ी तादाद में हैं, इसलिए सारे दल उनका समर्थन चाहते हैं. वहीं बाक़ी देश में सुन्नी संगठन विवाद से बचने के लिए इस मसले पर राय रखने से परहेज़ कर रहे हैं."
बीजेपी ने उमर अब्दुल्लाह और महबूबा मुफ्ती को लेकर सवाल किया है कि वो आख़िर किस तरफ़ हैं- शांति या हिंसा?
बीजेपी नेता नलिन कोहली ने कहा, "ये तो माना जाएगा कि उमर और मुफ्ती हिंसा के रास्ते का समर्थन करते हैं, फिर ये एक सवाल खड़ा होता है कि जब कश्मीरी पंडितों का नरसंहार हुआ तो क्या ये लोग अपरोक्ष रूप से ऐसे लोगों का समर्थन नहीं कर रहे थे, जिसकी वजह से हिंसा हुई थी."
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हसन नसरल्लाह की मौत के बाद ज्यादातर सुन्नी संगठन खामोश हैं. सिर्फ़ जमात-ए- इस्लामी हिंद ने प्रतिक्रिया दी है. इस संगठन के अमीर (अध्यक्ष) सैयद सआदतुल्लाह हुसैनी ने बेरुत पर इसराइली हमलों और हसन नसरल्लाह की हत्या की निंदा की है.
हुसैनी ने कहा, "हम बेरुत पर अंधाधुंध और बर्बर हवाई हमले करने के लिए इसराइल की कड़ी निंदा करते हैं. हम लेबनान के लोगों के प्रति अपनी गहरी संवेदना, सहानुभूति और एकजुटता व्यक्त करते हैं. यह कायरतापूर्ण आक्रमण नरसंहार और जघन्य अपराध है."
हुसैनी ने कहा, "इसराइल ने हिज़्बुल्लाह के मुख्यालय को नष्ट करने के लिए घनी आबादी वाले नागरिक क्षेत्र में बंकर-बस्टर बमों का इस्तेमाल किया है. इन बमों को जिनेवा कन्वेंशन ने गैर-क़ानूनी घोषित किया है.''
दिल्ली स्थित पत्रकार मोहम्मद अनस ने बताया, "मुस्लिम तंजीमें (संगठन) भले ही इस मसले पर ख़ामोश हैं लेकिन ज़्यादातर सुन्नी हसन नसरल्लाह से सहानुभूति रखते हैं. उनको मालूम है कि फ़लीस्तीन की लड़ाई हमास और हिज़्बुल्लाह ईरान के समर्थन से लड़ रहे हैं. इसलिए जमात-ए-इस्लामी ने भी इस हमले की निंदा की है.''
कुछ मुस्लिम संगठनों ने घटना के दो दिन बाद, सोमवार शाम को बयान जारी किया है. मजलिस मुशावरात ने हसन नसरल्लाह की मौत पर दुख जताया है और साथ ही इजरायल की कड़ी निंदा की है.
पूर्व सदर नावेद हामिद ने एक्स पर लिखा, ''अल्लाह हसन नसरल्लाह की सेवा को क़बूल करे और लोगों को हिम्मत दे कि वो इस्लाम और इंसानियत के दुश्मनों का मुक़ाबला कर सकें.''
मुशावरात की तरफ़ से हमास के नेता इस्माइल हानिया के मारे जाने की निंदा की गई थी.
जमीयत उलेमा-ए-हिंद के एक धड़े के अध्यक्ष मौलाना महमूद मदनी ने हिज़्बुल्लाह के चीफ नसरल्लाह की मौत पर दुख जताया.
मीडिया में जारी किए गए बयान में लिखा है कि इसरायल की बेलगाम कार्रवाई संयुक्त राष्ट्र के कानून का उल्लंघन है. उनका कहना है, ''ग़ज़ा और लेबनान में आम इंसानों के खून से इजरायल होली खेल रहा है और पूरी दुनिया खामोश बैठी है.''
महमूद मदनी ने कहा कि ''सैयद हसन नसरल्लाह समेत दूसरे नेताओं की मौत पर हम दुख का जाहिर करते हैं.''
इत्तेहाद ए मिल्लत काउंसिल के फाउंडर और बरेलवी मुस्लिम के बड़े नेता तौकीर रज़ा खान ने बीबीसी से कहा कि ये कोई ज़रूरी नहीं कि हर अंतर्राष्ट्रीय मसले पर प्रतिक्रिया दी जाए.
वक्फ संशोधन बिल पर दोनों ही समुदायों की आवाज़ एक जैसी थी, लेकिन इस मसले पर राय जुदा लग रही है.
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बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित
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