लेबनान की राजधानी बेरूत के दक्षिणी इलाक़े में एक इसराइली हमले में हिज़्बुल्लाह प्रमुख हसन नसरल्लाह की मौत के बाद लेबनान और इस संगठन से जुड़े कई सवाल खड़े हो गए हैं.
हसन नसरल्लाह का दशकों तक लेबनान और उस पूरे क्षेत्र पर प्रभाव था. नसरल्लाह की मौत ने हिज़्बुल्लाह के नेतृत्व में एक बड़ा शून्य पैदा किया है.
समाचार एजेंसी रॉयटर्स के अनुसार, संभव है कि नसरल्लाह के बाद हिज़्बुल्लाह के नए प्रमुख उनके कज़न हाशिम सफ़ीउद्दीन होंगे जो फ़िलहाल संगठन के राजनीतिक मामलों की निगरानी करते हैं और सैनिक कार्रवाइयों के लिए बनी जिहाद काउंसिल के भी सदस्य हैं.
हसन नसरल्लाह की मौत के बाद न तो लेबनान में इसराइली कार्रवाई बंद हुई और न ही लेबनान से इसराइल की ओर रॉकेट दागने का सिलसिला बंद हुआ. लेकिन जो महत्वपूर्ण सवाल सामने आया, वह यह कि अब आगे क्या होगा?
BBC बीबीसी हिंदी के व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ने के लिए यहाँ क्लिक करें हसन नसरल्लाह की अनुपस्थिति में हिज़्बुल्लाह के लिए चुनौतियां EPA हिज़्बुल्लाह के प्रमुख हाशिम सफ़ीउद्दीन हो सकते हैंअमेरिका और ब्रिटेन समेत कई पश्चिमी देशों के अलावा कुछ अरब देश भी ईरान समर्थित हिज़्बुल्लाह को ‘आतंकवादी संगठन’ बताते हैं जबकि लेबनान की सरकार हिज़्बुल्लाह को इसराइल के ख़िलाफ़ एक ‘वैध प्रतिरोधी समूह’ समझती है.
लेबनान के समाचार पत्र ‘अल निहार’ से जुड़े पत्रकार इब्राहिम बैराम ने बीबीसी से बात करते हुए कहा कि हसन नसरल्लाह की मौत एक ऐसी असामान्य घटना है जो इसराइल के ख़िलाफ़ लड़ाई में हिज़्बुल्लाह के संकल्प को नहीं बदलेगी.
इब्राहिम बैराम ने कहा कि उन्हें उम्मीद है कि हिज़्बुल्लाह पूरी वफ़ादारी के साथ “नसरल्लाह के बताए हुए रास्ते पर चलने का सिलसिला जारी रखेगा.”
बैराम ने कहा कि लेबनान में हसन नसरल्लाह की मौत पर मिली जुली भावनाएं हैं. “कुछ लोग ऐसे हैं जो इसके बारे में ख़ुशी महसूस करते हैं जबकि कई लोग ऐसे भी हैं जो इसे हिज़्बुल्लाह के लिए गंभीर झटका समझते हैं.”
उन्होंने कहा कि ख़ुद हसन नसरल्लाह को भी मालूम था कि उनका अंजाम पार्टी के पूर्व नेताओं जैसे कि हिज़्बुल्लाह के पूर्व प्रमुख अब्बास अल मूसवी जैसा ही होगा.
इसराइल ने सन 1992 में अब्बास अल मूसवी की हत्या कर दी थी.
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इसराइल की ओर से हसन नसरल्लाह की मौत की घोषणा के बाद ईरानी नेता आयतुल्लाह ख़ामेनेई ने पहले बयान में नसरल्लाह का नाम लेने से परहेज़ किया लेकिन उन्होंने लेबनान में नागरिकों की हत्या की निंदा करते हुए इसे इसराइली नेताओं की बेवकूफ़ी बताया.
ख़ामेनेई ने कहा, “इसराइली अपराधी हिज़्बुल्लाह को कोई ख़ास नुक़सान पहुंचाने में नाकाम हैं.”
उन्होंने मुसलमानों से मांग की कि वह इसराइल का मुक़ाबला करने में लेबनान की जनता और हिज़्बुल्लाह के साथ एकता का परिचय दें.
प्रोफ़ेसर और लेखक मोहम्मद अली मुक़ल्लिद का मानना है कि हसन नसरल्लाह की मौत लेबनान के लिए एक ऐसा अवसर है, जिसके ज़रिए वह अपने क्षेत्रों पर स्वायत्तता हासिल करने की स्थिति में आ सकता है.
उनका यह भी मानना है कि हसन नसरल्लाह की मौत से “लेबनान में राजनीतिक समाधान का दरवाज़ा खुल सकता है, जिसमें राष्ट्रपति चुनाव का आयोजन और हिज़्बुल्लाह के लेबनानी सदस्यों की सुरक्षा को सुनिश्चित बनाना शामिल है, जिन्होंने उस ईरानी योजना को ठुकरा दिया था, जिसका लेबनान से संबंध नहीं है.”
ईरान इस बात पर ज़ोर देने की कोशिश कर रहा है कि हसन नसरल्लाह की मौत से क्षेत्र में हिज़्बुल्लाह की क्षमता या स्थिति पर कोई असर नहीं पड़ेगा और नेतृत्व में बदलाव के बावजूद हिज़्बुल्लाह की ताक़त बढ़ेगी और उसका प्रभाव भी बढ़ेगा.
ईरानी रिवॉल्यूशनरी गार्ड्स क़ुद्स फ़ोर्स के पूर्व कमांडर अहमद वहीदी कहते हैं, “हिज़्बुल्लाह ने बहुत से लीडरों को ट्रेनिंग दी और हर मरने वाले लीडर के बदले दूसरा लीडर मैदान में आता है.”
दूसरी ओर अमेरिकी प्रतिनिधि सभा के स्पीकर माइक जॉनसन ने हसन नसरल्लाह की मौत को मध्य-पूर्व के लिए ‘महत्वपूर्ण घटनाक्रम’ बताया.
मोहम्मद अली मुक़ल्लिद का मानना है कि राजनीतिक मैदान में हसन नसरल्लाह की अनुपस्थिति से हिज़्बुल्लाह के सदस्य आपस में बँट सकते हैं जबकि उनकी आधी से अधिक संख्या लेबनानी सरकार का साथ देते हुए ईरान से पीछे हट जाएगी.
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हसन नसरल्लाह की मौत के बाद बेरूत की गलियों में ग़म और ग़ुस्सा देखा गया जबकि कुछ लोगों ने सोशल मीडिया पर भी अपने दुख का इज़हार किया.
हिज़्बुल्लाह के ‘अल मनार’ चैनल ने हसन नसरल्लाह की मौत की घोषणा के बाद क़ुरान की आयतें सुनाईं.
इसी दौरान इसराइली हमले के कारण बेघर होने वाले बहुत से लोग लेबनान की सड़कों पर नज़र आते हैं.
लेबनान के स्वास्थ्य मंत्रालय के अनुसार इसराइली हमले में अब तक 800 से अधिक लोग मारे जा चुके हैं.
पत्रकार इब्राहिम बैराम के लिए सबसे महत्वपूर्ण सवाल यह है कि हसन नसरल्लाह के बाद हिज़्बुल्लाह की बागडोर अब कौन संभालेगा.
हिज़्बुल्लाह की एग्ज़िक्यूटिव बॉडी के अध्यक्ष हाशिम सफ़ीउद्दीन संभवतः हिज़्बुल्लाह के अगले प्रमुख होंगे लेकिन इब्राहिम बैराम के अनुसार सबसे बड़ी चुनौती यह होगी कि क्या वह हसन नसरल्लाह की तरह पार्टी को संभाल सकेंगे.
इब्राहिम बैराम ने कहा, “लगभग चार दशकों से यह उम्मीद नहीं थी कि हसन नसरल्लाह जैसी शिया शख़्सियत इसराइल के साथ विवाद में इतनी अहम भूमिका निभाएगी लेकिन उनके बराबर की शख़्सियत के आने में अभी काफ़ी समय लग सकता है.”
इब्राहिम बैराम ने हसन नसरल्लाह को ‘बेमिसाल नेता’ बताते हुए कहा कि उन्होंने पार्टी को राजनीतिक और सैनिक तौर पर इकट्ठा किया.
रॉयटर्स के अनुसार, हाशिम सफ़ीउद्दीन को अमेरिकी विदेश मंत्रालय ने 2017 के दौरान आतंकवादी घोषित किया था. उनके पूर्व के बयानों से साफ़ है कि वह फ़लस्तीनी प्रतिरोध और सैनिक कार्रवाइयों का समर्थन करते हैं.
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हसन नसरल्लाह की पैदाइश के कुछ ही समय बाद लेबनान में गृह युद्ध शुरू हो गया. वह बेरूत के पूर्व में एक ग़रीब मोहल्ले में पैदा हुए.
जब लेबनान में गृह युद्ध शुरू हुआ तो उनकी उम्र पांच साल थी. यह एक विनाशकारी युद्ध था, जिसने भूमध्य सागर के इस छोटे से देश को 15 साल तक अपनी चपेट में लिए रखा और इस दौरान लेबनानी नागरिक धर्म और नस्ल के आधार पर एक दूसरे से लड़े.
इस दौरान ईसाई और सुन्नी मिलिशिया समूहों पर आरोप लगा कि वे विदेश से मदद लेते हैं.
युद्ध की शुरुआत की वजह से हसन नसरल्लाह के पिता ने बेरूत छोड़ने और दक्षिणी लेबनान में अपने पैतृक गांव वापस जाने का फ़ैसला किया, जहाँ शिया बहुलता थी.
हसन नसरल्लाह 15 साल की उम्र में उस समय के सबसे महत्वपूर्ण लेबनानी शिया राजनीतिक-सैनिक संगठन के सदस्य बन गए, जिसका नाम ‘एमल मूवमेंट’ था. यह एक सक्रिय और प्रभावी समूह था, जिसकी स्थापना ईरान के मूसी सदर ने की थी.
इस दौरान नसरल्लाह ने अपनी धार्मिक शिक्षा भी शुरू की. नसरल्लाह के शिक्षकों में से एक ने राय दी कि वह शेख़ बनने का रास्ता अपनाएं और नजफ़ चले जाएं. हसन नसरल्लाह ने यह राय मान ली और 16 साल की उम्र में इराक़ के शहर नजफ़ चले गए.
हसन नसरल्लाह के नजफ़ में रहने के दौरान इराक़ एक अस्थिर देश था, जहाँ दो दशकों तक लगातार क्रांति, ख़ूनी विद्रोह और राजनीतिक हत्या के साथ हिंसा का राज रहा.
हसन नसरल्लाह के नजफ़ में रहने के दौरान केवल दो साल बाद ‘बाथ पार्टी’ के नेता और विशेष तौर पर सद्दाम हुसैन के फ़ैसलों में से एक यह भी था कि सभी लेबनानी शिया छात्रों को इराक़ी मदरसों से निकाल दिया जाए.
हसन नसरल्लाह ने नजफ़ में केवल दो साल शिक्षा पाई और फिर उन्हें यह देश छोड़ना पड़ा लेकिन उनकी नजफ़ में मौजूदगी ने उस युवा लेबनानी के जीवन पर गहरा असर डाला. उनकी मुलाक़ात नजफ़ में अब्बास मूसवी नाम के एक और आलिम (धार्मिक नेता) से भी हुई.
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मूसवी, जो कभी लेबनान में मूसी सदर के शागिर्दों में शामिल माने जाते थे, ईरान के क्रांतिकारी धार्मिक नेता आयतुल्लाह रूहुल्लाह ख़ुमैनी के राजनीतिक दृष्टिकोण से बहुत प्रभावित थे. वह नसरल्लाह से आठ साल बड़े थे और बहुत जल्द उन्होंने एक सख़्त शिक्षक और प्रभावी नेता की भूमिका संभाल ली.
लेबनान वापस आने के बाद इन दोनों ने स्थानीय गृह युद्ध में भाग लिया लेकिन इस बार नसरल्लाह अब्बास मूसवी के पैतृक शहर गए, जहां आबादी शिया थी.
इस दौर में नसरल्लाह एमल मूवमेंट के सदस्य बने रहे और अब्बास मूसवी के बनाए मदरसे में शिक्षा भी लेते रहे.
हसन नसरल्लाह की लेबनान वापसी के एक साल बाद ईरान में क्रांति आई और रूहुल्लाह ख़ुमैनी ने सत्ता पर क़ब्ज़ा कर लिया. यहाँ से न केवल लेबनान के शिया समुदाय का ईरान के साथ संबंध बिल्कुल बदल गया बल्कि उनका राजनीतिक जीवन और सशस्त्र आंदोलन भी ईरान में होने वाली घटनाओं और वहां के दृष्टिकोण से प्रभावित हुआ.
हसन नसरल्लाह ने बाद में तेहरान में ईरान के उस समय के नेता से मुलाक़ात की और ख़ुमैनी ने उन्हें लेबनान में अपना प्रतिनिधि बनाया.
यहीं से हसन नसरल्लाह के ईरान के दौरों की शुरुआत हुई और ईरानी सरकार में निर्णायक और शक्तिशाली केंद्रों से उनके संबंध बने.
इस दौरान गृह युद्ध में घिरा लेबनान फ़लस्तीन लड़ाकों के लिए एक महत्वपूर्ण अड्डा बन गया था और स्वाभाविक तौर पर बेरूत के अलावा दक्षिणी लेबनान में भी उनकी मज़बूत उपस्थिति थी.
लेबनान में बढ़ती हुई अस्थिरता के बीच इसराइल ने लेबनान पर हमला कर दिया और उस देश के महत्वपूर्ण हिस्सों पर तेज़ी से क़ब्ज़ा कर लिया. इसराइल ने दावा किया कि उसने फ़लस्तीनी हमले का मुक़ाबला करने के लिए लेबनान पर हमला किया.
इसराइल के हमले के तुरंत बाद ही ईरान में रिवॉल्यूशनरी गार्ड्स के सैनिक कमांडरों ने लेबनान में ईरान से जुड़ा सैनिक समूह बनाने का फ़ैसला किया.
यह संगठन हिज़्बुल्लाह था और हसन नसरल्लाह और अब्बास मूसवी उन लोगों में शामिल थे जो एमल आंदोलन के कुछ दूसरे सदस्यों के साथ इस नए बनने वाले समूह में शामिल हुए.
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इस संगठन ने बहुत जल्द लेबनान में अमेरिकी सैनिकों के ख़िलाफ़ सशस्त्र कार्रवाई करके क्षेत्र की राजनीति में अपना नाम बना लिया.
जब हसन नसरल्लाह हिज़्बुल्लाह में शामिल हुए तो उनकी उम्र केवल 22 साल थी और वह नौसिखिया समझे जाते थे लेकिन नसरल्लाह के ईरान से संबंध दिन-ब-दिन गहरे होते जा रहे थे.
उन्होंने अपनी धार्मिक शिक्षा को जारी रखने के लिए ईरान के क़ौम शहर जाने का फ़ैसला किया. नसरल्लाह ने दो साल तक क़ौम में शिक्षा ली और इस दौरान फ़ारसी सीखने के साथ-साथ ईरानी कुलीन वर्ग में बहुत से नज़दीकी दोस्त बनाए.
लेबनान वापसी पर उनके और अब्बास मूसवी के दौरान एक महत्वपूर्ण मामले में मतभेद पैदा हो गया. उस समय मूसवी सीरिया के राष्ट्रपति हाफ़िज़ अल असद के समर्थक थे लेकिन नसरल्लाह ने ज़ोर दिया कि हिज़्बुल्लाह का ध्यान अमेरिकी और इसराइली सैनिकों पर हमले पर केंद्रित रहे.
नसरल्लाह हिज़्बुल्लाह में अकेले पड़ते गए और कुछ समय बाद उन्हें ईरान में हिज़्बुल्लाह का प्रतिनिधि बना दिया गया. वह एक बार फिर ईरान वापस आए लेकिन हिज़्बुल्लाह से दूर हो गए.
उस ज़माने में ऐसा लग रहा था कि हिज़्बुल्लाह पर ईरान का प्रभाव दिन-ब-दिन कम हो रहा है. यह तनाव इस हद तक बढ़ा कि हिज़्बुल्लाह के सेक्रेटरी जनरल को हटाकर उनकी जगह सीरिया का समर्थन करने वाले अब्बास मूसवी नए प्रमुख बन गए.
तूफ़ैली को हटाए जाने के बाद हसन नसरल्लाह वापस आ गए और हिज़्बुल्लाह के उपाध्यक्ष बन गए.
अब्बास मूसवी को हिज़्बुल्लाह का सेक्रेटरी जनरल चुने जाने के एक साल से भी कम समय में इसराइली एजेंटों ने मार डाला और उसी साल 1992 में इस संगठन का नेतृत्व हसन नसरल्लाह के हाथ में चला आया.
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित
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