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मणिपुर में हिंसा का सबसे बुरा दौर, फिर बीजेपी मुख्यमंत्री बीरेन सिंह के साथ क्यों खड़ी है?

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ANI मणिपुर के लोगों की नाराज़गी मुख्यमंत्री के ख़िलाफ़ साफ़ दिखती है लेकिन बीजेपी का केंद्रीय नेतृत्व उनके साथ खड़ा है

बीते 17 सितंबर को मणिपुर के मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह राजधानी इंफाल स्थित बीजेपी मुख्यालय पहुँचे थे.

यह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के जन्मदिन पर उनके जीवन और उपलब्धियों को प्रदर्शित करने वाली एक फोटो प्रदर्शनी के उद्घाटन का मौक़ा था.

लेकिन इस कार्यक्रम में बीजेपी के बहुत कम लोग नज़र आए.

यहाँ तक कि पार्टी के एक-दो विधायक को छोड़कर ज़्यादातर वरिष्ठ नेता और विधायक-मंत्री कार्यक्रम में नहीं दिखे.

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उस कार्यक्रम में सीएम बीरेन सिंह ने मैतेई भाषा में अपने भाषण की शुरुआत करते हुए मज़ाकिया लहज़े में सोशल मीडिया पर होने वाली आलोचनाओं का ज़िक्र किया.

उन्होंने विरोध प्रदर्शन के समय लोगों की ओर से मुख्यमंत्री का 'मज़ाक उड़ाने' और 'अमर्यादित नारेबाज़ी' को लेकर कहा, "सरकार को कमज़ोर करने के प्रयास नहीं होने चाहिए."

दरअसल बीते 16 महीनों से मणिपुर में हिंसा का दौर थम नहीं रहा है. अगस्त में केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने संसद में कहा था कि 3 मई 2023 को शुरू हुई हिंसा में 152 लोग मारे गए हैं. लेकिन पिछले हफ़्ते मणिपुर पुलिस के आईजीपी (ऑपरेशन्स) आईके मुइवाह ने कहा था कि हिंसा में मरने वालों की संख्या 175 हो गई है और कम से कम 33 लोग लापता हैं.

प्रदेश में शुरू हुई जातीय हिंसा अब घर जलाने या फिर गोलीबारी तक सीमित नहीं है. मणिपुर पुलिस ने दावा किया है कि इस महीने हुई हिंसक घटनाओं में लंबी दूरी तक फेंके जाने वाले रॉकेट और ड्रोन बम के इस्तेमाल किया गया था.

राज्य में हो रही जातीय हिंसा को नियंत्रित करने के लिए राज्य में 60 हज़ार से ज़्यादा सुरक्षाबलों को तैनात किया गया है. ऐसे में सरकार से लोग ख़ासा नाराज़ हैं और सीएम बीरेन सिंह पर कुर्सी छोड़ने का राजनीतिक दबाव बना रहे हैं.

मुख्यमंत्री की शक्तियाँ हुईं सीमित image BBC मैतेई बहुल गांव में लगा पोस्टर

32 लाख से ज़्यादा आबादी वाले मणिपुर में 16 प्रशासनिक ज़िले हैं.

लेकिन पिछले साल शुरू हुई जातीय हिंसा के बाद से मुख्यमंत्री बीरेन सिंह, कुकी बहुल पहाड़ी ज़िलों का एक बार भी दौरा नहीं कर सके हैं.

पहाड़ी ज़िले कांगपोकपी में रहने वाली 38 साल की मार्गरेट कहती हैं, "वो केवल मैतेई लोगों के सीएम हैं. अगर मुख्यमंत्री अपने पद की शपथ का पालन करते, तो सबको समान नज़र से देखते. इस हिंसा में सैकड़ों कुकी लोगों की जान गई है लेकिन मुख्यमंत्री ने कभी कोई ख़बर नहीं ली."

मणिपुर में जारी हिंसा के कारण हो रही परेशानी से मैतेई समुदाय से ताल्लुक़ रखने वाली 21 साल की छात्रा मचलेम्बी काफ़ी नाराज़ हैं.

वो कहती हैं, "यहां बार-बार क़र्फ्यू लग जाता है. उससे काफ़ी परेशानी हो रही है. मेरे पिता बीमार हैं और मां सड़क किनारे सब्ज़ियाँ बेचकर हमारा गुज़ारा करती हैं. आए दिन हमारे लोगों पर हमले किए जा रहे हैं और सरकार की तरफ़ से कोई मदद नहीं मिल रही है. ऐसे में हम अपनी तकलीफ़ किससे जाकर कहें?"

मणिपुर की मौजूदा स्थिति पर नज़र रख रहे जानकारों का कहना है कि मुख्यमंत्री बीरेन सिंह कई मोर्चों पर अभूतपूर्व संकट का सामना कर रहे हैं.

राज्य के वरिष्ठ पत्रकार प्रदीप फंजौबाम मणिपुर की मौजूदा स्थिति को काफ़ी जटिल बताते हैं.

वो कहते हैं, "बीरेन सिंह के पास एक मुख्यमंत्री के तौर पर अब इतनी शक्तियाँ नहीं बची हैं. सीएम अब यूनिफाइड कमांड के लीडर नहीं हैं. उनके कार्यक्षेत्र इंफ़ाल घाटी तक सीमित हैं. घाटी की सुरक्षा मणिपुर पुलिस देख रही है, जबकि पहाड़ी इलाक़ों में केंद्रीय बलों को सुरक्षा का ज़िम्मा सौंपा गया है. मौजूदा हालात में काफ़ी भ्रम है क्योंकि सुरक्षा एजेंसियों में भी समन्वय नहीं दिख रहा है."

मैतेई समुदाय के अधिकतर लोग केंद्रीय सुरक्षा बलों पर हमलावरों के ख़िलाफ़ कार्रवाई नहीं करने के आरोप लगाते हैं. वहीं कुकी बहुल क्षेत्रों में सुरक्षाबलों के समर्थन में पोस्टर लगे दिख जाते हैं.

लेइमाखोंग गांव की रहने वाली सिल्विया कहती हैं, "हमारे क्षेत्र में लगातार हमले हो रहे हैं. अभी हाल ही में मुख्यमंत्री बीरेन सिंह का एक ऑडियो क्लिप वायरल हुआ था. हम मुख्यमंत्री बीरेन पर बिल्कुल भरोसा नहीं करते. उनके रहते मणिपुर में कभी शांति क़ायम नहीं हो सकती."

वो कहती हैं, "मुख्यमंत्री ख़ुद केंद्रीय सुरक्षा बलों को कुकी बहुल इलाक़े से हटाने की योजना बना रहे थे. हमारे छात्रों ने इसके ख़िलाफ़ पिछले महीने एक रैली निकाली थी. अगर कुकी इलाक़े की सुरक्षा बीरेन सिंह को दे दी जाएगी तो वो हम सबको तबाह कर देंगे."

मुख्यमंत्री से मांगा जा रहा है इस्तीफ़ा image ANI मणिपुर कांग्रेस के अध्यक्ष ने कहा कि सीएम के पास कोई शक्ति नहीं है

राज्य में बीरेन सिंह की सरकार को पूरी तरह विफल बताते हुए विपक्षी पार्टियां उनसे इस्तीफ़े की मांग कर रही हैं.

मणिपुर प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष के मेघचंद्र सिंह ने बीबीसी से कहा, "मणिपुर में जिस कदर हिंसा हो रही है और निर्दोष लोगों की जान जा रही है, उसमें तो यही लगता है कि यहाँ सरकार नहीं है. एक सितंबर से शुरू हुए हालिया हमलों ने स्थिति को और ख़राब कर दिया है. वे लोग अत्याधुनिक हथियारों का इस्तेमाल कर रहे हैं, बम विस्फोट कर रहे हैं. लेकिन सरकार किसी तरह की कार्रवाई नहीं कर रही. ऐसी स्थिति में सीएम को कुर्सी पर बने रहने का क्या अधिकार है?"

कांग्रेस नेता कहते हैं, "इस समय राज्य सरकार के नियंत्रण में कुछ भी नहीं है. केंद्र सरकार ने राज्य की शक्ति को पूरी तरह से समाप्त कर दिया है. कमोबेश यह एक तरह से अनुच्छेद 355 को लागू करने जैसा है. भले ही ऐसा कोई सरकारी आदेश सामने नहीं आया है. लेकिन वर्तमान में सीएम के पास कोई शक्ति नहीं है."

हालांकि, सीएम बीरेन सिंह ने विपक्ष के इस्तीफ़े की मांग का जवाब देते हुए हाल ही में कहा था, "मुझे इस्तीफ़ा क्यों देना चाहिए? क्या मैंने कुछ चुराया है? क्या मेरे ख़िलाफ़ कोई घोटाला हुआ है? क्या मैंने देश या राज्य के ख़िलाफ़ कोई काम किया है?"

ये भी पढ़ें- फुटबॉल खिलाड़ी से राज्य की राजनीति के शीर्ष पर कैसे पहुंचे बीरेन सिंह

एक राष्ट्रीय स्तर के फुटबॉल खिलाड़ी के तौर पर नाम कमाने वाले नोंगथोम्बम बीरेन सिंह का राजनीतिक करियर कई शीर्ष नेताओं के मुक़ाबले काफ़ी तेज़ी से आगे बढ़ा.

साल 2002 में राजनीति में एंट्री करने वाले बीरेन सिंह को महज़ एक साल बाद तत्कालीन मुख्यमंत्री ओकराम इबोबी सिंह ने कांग्रेस सरकार में मंत्री बना दिया था.

उस दौर में मुख्यमंत्री इबोबी सिंह के सामने एक स्थिर सरकार चलाने की कई चुनौतियां थी.

लेकिन बीरेन सिंह उनके संकट मोचक के तौर पर काम करते रहे. कुछ ही सालों में वे इबोबी सिंह के क़द को छूने वाले एक बड़े नेता बन गए.

पत्रकार फंजौबाम कहते है, "मैतेई समुदाय से आने वाले बीरेन सिंह से मणिपुर के लोगों को काफ़ी उम्मीदें थी क्योंकि उनके पास सरकार में रहकर काम करने का लंबा अनुभव रहा है."

दरअसल, जिस इबोबी सिंह के साथ रहकर बीरेन सिंह ने राजनीतिक दांव-पेच सीखे थे उन्हीं से अलग होकर वो 2016 में बीजेपी में शामिल हो गए थे.

जब एक साल बाद 2017 में बीजेपी की अगुवाई में मणिपुर में पहली सरकार बनी तो बीरेन सिंह को मुख्यमंत्री बनाया गया.

राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार, बीरेन सिंह जिस तेज़ी से राजनीति की सीढ़ियां चढ़ रहे थे, उन्होंने शायद ही कभी सोचा होगा कि उनके कार्यकाल में मणिपुर में इतनी बड़ी जातीय हिंसा फैल जाएगी.

इससे पहले तक बीरेन सिंह के बारे में कहा जाता था कि वे सियासी चालों को बेहतर समझने वाले एक मंझे हुए नेता थे.

उनके बारे में यह भी कहा जाता है कि एक फुटबॉल खिलाड़ी के तौर पर लेफ़्ट बैक पोजिशन में खेलने वाले बीरेन सिंह का डिफेन्स कमाल का था.

लेकिन प्रदेश में अनियंत्रित हिंसा से आज ऐसा माहौल पैदा हो गया है, जिसमें हर किसी की उंगली बीरेन सिंह की तरफ़ ही उठ रही है.

बीजेपी में कई नेताओं ने बनाई दूरियां image BBC मणिपुर की राजधानी इंफाल का एक दृश्य

इस समय मैतेई और कुकी दोनों ही समुदाय अपनी सुरक्षा को लेकर बीरेन सिंह के कामकाज़ पर सवाल उठा रहे हैं.

छात्र परेशान हैं और छोटा-मोटा कारोबार कर जो लोग अपना पेट भर रहे थे, वो अब सरकारी राशन के लिए लंबी कतारों में खड़े दिख रहे हैं.

मणिपुर में किसी भी समुदाय के लोगों से बात करने पर बीजेपी और सरकार के प्रति उनकी नाराज़गी को साफ़ समझा जा सकता है.

इंफ़ाल में महिलाओं की ओर से चलाए जा रहे सबसे बड़े बाज़ार 'नुपी कैथल' में दुकान लगाने वाली मीरा देवी कहती हैं, "हिंसा और कर्फ़्यू ने हमें भुखमरी की कगार पर पहुँचा दिया है. जीवन बहुत मुश्किलों से घिर गया है. किससे कहें, यहाँ सरकार कहां है?"

हिंसा को रोक पाने में नाकाम और सुरक्षाबलों की कार्रवाई को लेकर मुख्यमंत्री बीरेन सिंह अपनी पार्टी में घिरते दिख रहे हैं?

सीएम को अपनी ही पार्टी के भीतर से असंतोष का सामना करना पड़ रहा है, जिसमें कई विधायक सार्वजनिक रूप से उनकी “अधिनायकवादी” नेतृत्व शैली और निर्णय लेने की आलोचना कर चुके हैं.

प्रदेश बीजेपी में कुछ लोग जो बीरेन सिंह के कभी क़रीब हुआ करते थे, उन्होंने दूरी बना ली है.

मणिपुर में भारतीय जनता युवा मोर्चा के एक शीर्ष नेता ने नाम प्रकाशित नहीं करने की शर्त पर बताया," हिंसा को समय पर क़ाबू नहीं करने से प्रदेश का काफ़ी नुकसान हुआ है. दोनों समुदाय के लोग बीजेपी से नाराज़ हैं.''

''लोगों की नाराज़गी लोकसभा चुनाव के नतीजे के तौर पर सामने आ चुकी है. फिर भी सरकार में बैठे लोग स्थिति को समझ नहीं पा रहे हैं. लोग इतने ग़ुस्से में हैं कि कोई भी बीजेपी नेता अगर बयान देता है, तो उनके ख़िलाफ़ सड़कों पर उतर आते हैं. 2027 में विधानसभा चुनाव है, अगर सब कुछ ऐसे ही चलता रहा तो पार्टी का बना रहना मुश्किल हो जाएगा."

केंद्रीय बलों को हटाने के लिए मुख्यमंत्री के दामाद की चिट्ठी image ANI बीरेन सिंह के दामाद राजकुमार इमो सिंह तैनात केंद्रीय बलों को हटाने की मांग की थी

इस महीने की शुरुआत में बीजेपी विधायक राजकुमार इमो सिंह ने गृह मंत्री अमित शाह को पत्र लिखकर राज्य में तैनात केंद्रीय बलों को हटाने की मांग की थी.

बीरेन सिंह के दामाद राजकुमार ने सुरक्षाबलों पर सवाल खड़े करते हुए कहा था, “मणिपुर में लगभग 60 हज़ार केंद्रीय बलों की मौजूदगी शांति स्थापित नहीं कर पा रही है.”

राज्य में मैतेई समुदाय के कई प्रमुख संगठन यूनिफाइड कमांड की बागडोर मुख्यमंत्री को सौंपने की मांग कर रहे हैं.

इसके साथ ही मैतेई समुदाय के ये संगठन पुलिस महानिदेशक राजीव सिंह को भी हटाने की मांग कर रहे हैं.

इंफ़ाल के रहने वाले एक छात्र नेता ने कहा कि जब सरकार हमारे लोगों को सुरक्षा नहीं दे पाएगी तो ख़ुद को ही अपनी सुरक्षा करनी होगी.

अपनी पहचान उजागर नहीं करने की शर्त पर छात्र नेता ने कहा, "पहाड़ों की तरफ़ से उग्रवादी हमारी बस्तियों में रॉकेट बम मार रहे हैं और सरकार कुछ नहीं कर पा रही है. मोइरांग में मणिपुर के पहले मुख्यमंत्री रहे एम कोईरेंग के घर पर रॉकेट हमला हुआ. एक व्यक्ति की जान गई, लेकिन सरकार ने कार्रवाई के नाम पर कुछ नहीं किया."

image Getty Images मणिपुर में भारी संख्या में अर्धसैनिक बलों की तैनाती की गई है नागरिकों के पास हथियार चिंता का विषय

पुलिस के एक अधिकारी ने नाम नहीं प्रकाशित करने की शर्त पर बताया कि राज्य में आम नागरिकों के हाथों में बंदूकों का होना क़ानून-व्यवस्था के लिए गंभीर चिंता का विषय है.

उनका कहना है कि कुछ लोग केवल अपनी सुरक्षा के लिए ही नहीं बल्कि छोटे-मोटे विरोध प्रदर्शन के दौरान पुलिस के साथ होने वाली भिड़ंत में गोलियां चला रहे हैं.

राजधानी इंफ़ाल में हाल की एक घटना का उदाहरण देते हुए पुलिस अधिकारी ने कहा, "14 सितंबर को सिंगजामेई थाने में प्रदर्शन करने आए लोगों को जब तितर-बितर करने के लिए पुलिस ने बल का प्रयोग किया, तो प्रदर्शनकारियों में से कुछ लोगों ने पुलिस पर गोलियां चलाईं. ऐसी स्थिति में क़ानून-व्यवस्था को नियंत्रित करना मुश्किल हो गया होगा."

राजधानी इंफ़ाल समेत घाटी के चार ज़िलों में बीते कुछ दिनों से कर्फ़्यू लगाना पड़ रहा है और बीते सप्ताह इंटरनेट सेवा पूरी तरह बंद थी. सुरक्षाबलों और नागरिकों के बीच आए दिन हो रहे हिंसक टकराव ने सीएम बीरेन सिंह की मुश्किलें बढ़ा रखी हैं.

मणिपुर के हालात पर नज़र रख रहे लोगों का यह मानना है कि मुख्यमंत्री ने इस हिंसा को रोकने में देर कर दी और अब उनके पास विकल्प के तौर पर ज़्यादा कुछ नहीं बचा है.

बीजेपी क्या कहती है?

मणिपुर में सीएम के ख़िलाफ़ लोगों की नाराज़गी की बात को प्रदेश बीजेपी स्वीकारती है लेकिन पार्टी का मानना है कि राज्य में अब भी लोग उनका समर्थन करते हैं.

मणिपुर प्रदेश बीजेपी के प्रवक्ता सुरेश कुमार कहते हैं, "मणिपुर में हिंसा के पीछे चरमपंथियों का हाथ है. ऐसा कहना सही नहीं है कि मुख्यमंत्री हालात को संभाल नहीं पाए. बीरेन सिंह जी ने अफ़ीम की खेती के ख़िलाफ़ कार्रवाई शुरू की. अवैध नागरिकों के ख़िलाफ़ कार्रवाई शुरू की. पहले की सरकारों ने कुछ नहीं किया.''

बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित

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