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वो विदेशी कलाकार जिसने भारतीय महलों में बनाई देवी-देवताओं की पेंटिंग

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Getty Images स्टीफेन नोर्बलिन भारत में छह साल रहे थे

साल 1939 में जर्मन टैंकों और सेना ने पौलेंड पर आक्रमण कर दिया था.

इस दौरान पोलिश कलाकार स्टीफेन नोर्बलिन और उनकी फिल्म-स्टार पत्नी ने आभूषण गिरवी रखकर देश छोड़ दिया.

स्टीफेन नोर्बलिन और उनकी पत्नी लीना को अपने सपनों के उस घर से जाना पड़ा, जिसे वो बना रहे थे.

पति-पत्नी ने अमेरिका में शरण लेने की सोची. इस दौरान दोनों रोमानिया, तुर्की और इराक़ गए.

फिर ये कपल भारत पहुंचा और यहां छह साल रहा.

भारत में रहने के दौरान ये लोग राजाओं के संपर्क में आए. इसका नतीजा ये रहा कि भारत को बेहतरीन कलाकृतियां मिलीं.

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साल 1941 से 1946 के बीच कई भारतीय राजाओं ने स्टीफेन को अपने महलों को पेंटिंग से सजाने का काम दिया. साथ ही इंटीरियर को आर्ट डेको शैली में डिजाइन करने को कहा.

स्टीफेन नोर्बलिन ने हिंदू देवी-देवताओं की तस्वीर, महाभारत, रामायण का वर्णन करने के लिए चित्र, देश के प्रसिद्ध बाघ, तेंदुए और हाथी की तस्वीरें बनाई.

नोर्बलिन की बनाई हुई तस्वीर राजस्थान के उम्मेद भवन पैलेस में अभी भी लगी हुई है.

ये भवन ब्रिटिशकालीन भारत में जोधपुर रियासत के शासक का घर था. वैसे उम्मेद भवन पैलेस का इस्तेमाल अब लग्जरी होटल के तौर पर किया जाता है. साथ ही उनके बनाए चित्र गुजरात के मोरबी के राजाओं के महलों में भी बने हुए हैं.

उन्होंने इसके अलावा बिहार के रामगढ़ के महाराजा की भी तस्वीर बनाई. भारत में कलाकार के कामों का वर्णन करने वाली चित्रांजलि (डॉक्यूमेंट्री) में विशेषज्ञ क्लॉज उलरीश सिमोन ने कहा कि लेकिन ये समय के साथ लुप्त हो गया.

नोर्बलिन के बनाई गई तस्वीरें जीवंत और भव्य हैं. ये आर्ट डेको शैली में बने हुए हैं.

ये तस्वीरें हिंदू देवी-देवताओं की मुद्राओं सहित पारंपरिक भारतीय कल्पना व्याख्याओं से जुड़े हुए हैं.

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image Getty Images स्टीफेन नोर्बलिन की देवी दुर्गा की बनाई गई पेंटिंग स्टीफेन नोर्बलिन ने पेंटिंग के लिए पढ़ाई छोड़ी

स्टीफेन नोर्बलिन का जन्म 1892 में वारसॉ में संपन्न उद्योगपति के परिवार में हुआ था. उनके पिता चाहते थे कि नोर्बलिन बिजनेसमैन बनें और उन्हें बेल्जियम के एंटवर्प में कॉमर्स की पढ़ाई के लिए भेजा.

लेकिन नोर्बलिन की रुचि पेंटिंग बनाने में थी. उन्हें ये विरासत चाचा से मिली थी. वो एक प्रसिद्ध फ्रांसीसी चित्रकार के वंशज थे.

अग्नशीका कास्प्रज़क ने लेख द अनप्लेंड रिटर्न ऑफ स्टीफेन नोर्बलिन में लिखा कि युवा नोर्बलिन ने पढ़ाई छोड़ दी और यूरोप निकल गए. यहां उन्होंने कई पेंटिंग प्रदर्शनी का दौरा किया.

बेल्जियम, फ्रांस और इंग्लैंड में कई मैगजीन के लिए तस्वीर बनाई.

स्टीफेन नोर्बलिन बाद में वारसॉ लौट गए. यहां उन्होंने ग्राफिक आर्टिस्ट, स्टेज डिजाइनर और किताब इलस्ट्रेटर के रूप में काम किया. नोर्बलिन को उनकी पेंटिंग के कारण जाना जाने लगा.

वो इसके बाद 1933 में लीना से मिले और दूसरी शादी की. दोनों का जीवन वारसॉ में अच्छा जा रहा था, लेकिन दूसरे विश्व युद्ध ने पति-पत्नी को भारत पहुंचा दिया.

image Getty Images उम्मेद भवन पैलेस में लगी स्टीफेन नोर्बलिन की बनाई पेंटिंग स्टीफेन नोर्बलिन भारत पहुंचे

चित्रांजलि में आर्किटेक्ट राहुल मेहरोत्रा ने बताया कि पति-पत्नी सबसे पहले बंबई (अब मुंबई) पहुंचे. यहां दोनों का विभिन्न संस्कृति, धर्म और भाषाओं से परिचय हुआ. पति-पत्नी मुंबई में रहने लगे और विभिन्न पेंटिंग प्रदर्शनी में नोर्बलिन अपना काम दिखाने लगे. इसमें अमीर लोगों का ध्यान गया और नोर्बलिन को वो जानने लगे.

1930 और 40 के दशक में आर्ट डिको शैली का यूरोप में काफी चलन था, लेकिन भारत के मामले में ऐसा नहीं था.

देश में कई रियासतों के महाराजों के बेटे जब विदेश गए थे उन्हें इसके बारे में पता चला.

महाराजा मेंहद्रसिन्हजी के बेटे मोरवी (अब मोरबी ) में नया महल बना रहे थे तो वो इसे आर्ट डेको शैली में डिजाइन करना चाहते थे.

महाराजा के बेटे ने महल को पेंटिंग से सुंदर बनाने का काम नोर्बलिन को सौंपा. उन्होंने शिकार करने को दिखाते हुई तस्वीर , शिव भगवान की प्रार्थना में मशगूल होते हुए और शासकों के पूर्वजों की तस्वीर बनाई.

उनकी बनाई गई मानव आकृतियों में गहरे और हल्के रंगों का मिश्रण था.

अग्नशीका कास्प्रज़क ने अपने पेपर पोलिश आर्टिस्ट एट द सर्विस ऑफ महाराजा में बताया कि स्टीफेन नोर्बलिन को अगला बड़ा काम उम्मेद सिंह से मिला. नोर्बलिन को उन्होंने जोधपुर में स्थित महल के इंटीरियर डिजाइन करने को कहा.

उन्होंने बताया कि स्टीफेन नोर्बलिन से तस्वीर बनाने को जहाज दुर्घटना के बाद कहा गया था. इसमें महाराजा का लंदन से मंगाया गया फर्नीचर खराब हो गया था.

उम्मेद भवन पैलेस में अभी भी नोर्बलिन के सबसे बेहतरीन कामों को देखा जा सकता है. उनकी देवी दुर्गा की बनाई गई तस्वीर में उन्हें शेर पर बैठे हुए और राक्षस का वध करते हुए दिखाया गया है. इसमें देवी दुर्गा के कई हाथ बने हुए हैं और उन्होंने हर हाथ में हथियार लिया हुआ है.

एक तस्वीर में तो देवी दुर्गा मिस्र की राजकुमारी की तरह दिख रहीं हैं.

द ओरिएंटल रूम नाम के कमरे में नोर्बलिन में छह चित्रों की एक सीरीज बनाई है. इसमें रामायण के महत्वपूर्ण दृश्यों को दिखाया गया है.

इनमें रावण का देवी सीता का अपहरण और माता सीता का अग्नि परीक्षा देकर अपनी पवित्रता को सिद्ध करने की पेंटिंग शामिल है. इसके अलावा नोर्बलिन ने महल में राजा और रानी के कमरों सहित डाइनिंग एरिया भी डिजाइन किया.

स्टीफेन नोर्बलिन ने ली अपनी जान

देखभाल की कमी और गर्मी के कारण स्टीफेन नोर्बलिन की कई पेंटिंग ख़राब हो गईं, लेकिन अब पोलिश सरकार ने उन्हें ठीक किया है.

उनके कामों को पोलैंड और भारत में प्रदर्शित किया गया, लेकिन अभी भी कई लोग उन्हें नहीं जानते. ऐसा इसलिए क्योंकि नोर्बलिन को भारत छोड़ने और अमेरिका जाने के बाद उम्मीद के मुताबिक सफलता नहीं मिली.

सैन फ्रांसिस्को में पोलिश कलाकार को कुछ काम मिला, लेकिन ग्लूकोमा के कारण ऑंखों की रोशनी कमजोर होने पर उन्होंने पेंटिंग करना बंद कर दिया. नोर्बलिन की पत्नी लीना ने ब्यूटी सैलून में घर चलाने के लिए मैनीक्योरिस्ट का काम करना शुरू कर दिया.

क्लॉस ने बताया कि ऐसे में घर का गुजारा करना भी मुश्किल हो गया और नोर्बलिन अवसाद के शिकार हो गए. साल 1952 में उन्होंने इसलिए अपनी जान ले ली क्योंकि वो अपने परिवार पर बोझ नहीं बनना चाहते थे.

कलाकार की मौत के साथ भारत में उनकी बनाई गई पेंटिंग को लोग भूलने लगे. लेकिन 1980 के दशक में क्लॉज उलरीश सिमोन फिर से उनका काम सामने लेकर आए.

इसके बाद से नोर्बलिन के काम को पहचान दिलाने के लिए काफी कुछ किया गया, लेकिन अभी भी बहुत कुछ रह गया है.

बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित

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