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14 साल की उम्र में सिखों के सातवें गुरु बने थे हर राय, दारा शिकोह का किया समर्थन

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नई दिल्ली, 5 अक्टूबर . ‘अगर कोई व्यक्ति एक हाथ से फूल तोड़ता है और दूसरे हाथ से उसे देता है, तो दोनों हाथों से एक ही खुशबू आती है.‘ ये शब्द थे सिखों के सातवें गुरु हर राय के. जो सिखों के छठे गुरु हरगोबिंद साहिब के दुनिया को छोड़ने के बाद बहुत ही छोटी उम्र में सिख गुरु बन गए थे. 6 अक्टूबर को सिखों के सातवें गुरु हर राय की पुण्यतिथि होती है. आइये जानते हैं उनसे जुड़े कुछ अनसुने किस्सों के बारे में.

दरअसल, गुरु हर राय का जन्म 16 जनवरी 1630 को कीरतपुर साहिब में हुआ था. वह सिख धर्म के दस गुरुओं में से छठे गुरु हरगोबिंद साहिब के पोते थे. जब वह आठ साल के थे, तब उनके पिता की मृत्यु हो गई. 1640 में जब उनकी उम्र महज 10 साल थी तो उनका विवाह किशन कौर के साथ करा दिया गया.

हालांकि, अपने दादा और छठे सिख नेता गुरु हरगोबिंद की मृत्यु के बाद 3 मार्च 1644 को 14 साल की छोटी उम्र में वह सिख गुरु बन गए. उन्होंने अपने अंतिम दिनों तक सिखों की सेवा की. कहा जाता है कि गुरु हर राय ने पर्यावरण की देखभाल का बीड़ा उठाया और उन्होंने सिख धर्म में सार्वजनिक गायन और शास्त्र वाचन परंपराओं की शुरुआत की.

गुरु हर राय के बारे में बताया जाता है कि उनके पास सिख सैनिकों की एक बड़ी सेना थी, लेकिन उन्होंने हमेशा ही सैन्य संघर्ष से दूरी बनाकर रखी. गुरु हर राय की सोच ही थी कि उन्होंने मुगल बादशाह औरंगजेब के बजाए उसके भाई दारा शिकोह का समर्थन किया था.

जब दोनों भाई मुगल साम्राज्य के सिंहासन के लिए लड़ रहे थे तो एक समय ऐसा भी आया था कि दारा शिकोह को जहर दे दिया गया. इसके बाद गुरु हर राय ने दारा का इलाज किया. मगर औरंगजेब ने अपने भाई को गिरफ्तार कर उसका कत्ल कर दिया. इस दौरान औरंगजेब ने 1660 में गुरु हर राय को बुलाया और दारा शिकोह के साथ अपने संबंधों को समझाने को कहा.

सिख परंपरा में कहा जाता है कि जब गुरु से पूछा गया कि उन्होंने दारा शिकोह की मदद क्यों की? इस पर उनका जवाब था कि अगर कोई व्यक्ति एक हाथ से फूल तोड़ता है और दूसरे हाथ से उसे देता है, तो दोनों हाथों से एक ही खुशबू आती है.

गुरु ने अपने जीवनकाल के दौरान कई यात्राएं भी की. उन्होंने लाहौर, सियालकोट, पठानकोट, सांबा, रामगढ़ और जम्मू-कश्मीर के अलग-अलग हिस्सों में प्रवास किया. उन्होंने 360 मंजियों की स्थापना की. उन्होंने अपने निधन से पहले ही अपने पांच वर्षीय बेटे हर कृष्ण को सिखों का आठवां गुरु नियुक्त कर दिया था. उन्होंने 6 अक्टूबर, 1661 को इस संसार को अलविदा कह दिया.

एफएम/जीकेटी

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