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शारदीय नवरात्र पर ग्रहों का बना अद्भुत योग, ऐसे ग्रह संयोग में आयोजित होता है प्रयागराज कुंभ

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नई दिल्ली, 3 अक्टूबर . शारदीय नवरात्र का गुरुवार को पहला दिन रहा. मां शैलपुत्री की पूजा-अर्चना के साथ शक्ति की उपासना का यह पर्व प्रारंभ हो गया है. मां शक्ति के नौ रूपों की पूजा इस दौरान होती है. ऐसे में तमाम साधक मां की कृपा और आशीर्वाद पाने के लिए नवरात्रि का व्रत भी रखते हैं.

इस बार नवरात्रि गुरुवार को प्रारंभ हुई है. ऐसे में मां की सवारी हर दिन के साथ अलग-अलग होती है. इस बार मां डोली या पालकी पर सवार होकर पृथ्वी पर आई हैं.

दरअसल, मां का इस सवारी पर आगमन बेहतर नहीं माना जाता है.

डोली से मां का आना शुभ संकेत नहीं माना गया है. ये बीमारी, युद्ध, अर्थव्यवस्था में खराबी और कलह का संकेत देता है. मां का पालकी पर बैठकर आना देश-दुनिया में कई मुश्किल हालात पैदा करता है.

वहीं, मां इस बार पृथ्वीलोक से अपने धाम की तरफ शनिवार को वापसी करेंगी. शनिवार या मंगलवार को देवी मुर्गे पर सवार होकर जाती हैं, जिससे दुख और कष्ट की वृद्धि होती है. ऐसे में इस बार मां की कृपा और आशीर्वाद के बिना लोगों का जीवन कष्टमय होगा. इसलिए, लोगों को इस नवरात्रि मां की भक्ति भाव और पूर्ण श्रद्धा से पूजा करनी चाहिए ताकि उनका आशीर्वाद उन्हें प्राप्त हो और उनकी जिंदगी में आने वाले कष्टों से उन्हें पहले ही मुक्ति मिल जाए.

लेकिन, ग्रहों और नक्षत्रों के खास संयोग के चलते इस बार की नवरात्रि बेहद खास हो है. ज्योतिषियों की मानें तो इस बार शारदीय नवरात्रि पर देवी मां अपने भक्तों पर अमृत वर्षा करने जा रही हैं. ऐसे में मां की कृपा पाने के लिए आप भी तैयार हो जाएं.

दरअसल, इस बार मां दुर्गा के नौ रूपों की पूजा के नौ दिनों में चतुर्थी तिथि की बढ़ोतरी हो रही है, जबकि नवमी तिथि की हानि होगी. इसके बाद भी नवरात्रि इस बार पूरे नौ दिन का ही होगा.

इससे भी बड़ी बात यह है कि इस बार ग्रहों के संयोग कुछ ऐसे बन रहे हैं कि इस नवरात्रि मां का विशेष आशीर्वाद सबको मिलेगा. इस बार नवरात्रि का प्रारंभ हस्त नक्षत्र में हो रहा है. ऐसे में इस नक्षत्र में मां की पूजा के लिए कलश स्थापना को बेहद खास और फलदायी माना गया है.

इस बार की शारदीय नवरात्रि पर बृहस्पति-सूर्य और शनि का खास संयोग भी बन रहा है. ज्योतिष शास्त्र के जानकार बताते हैं कि इस तरह का खास संयोग जो ग्रह करेंगे, ऐसे ही संयोग में प्रयागराज में कुंभ का आयोजन होता है. यानी तब ये ग्रह मिलकर कुंभ के आयोजन के समय ऐसा संयोग बनाते हैं कि अमृत की वर्षा होती है. ऐसा ही कुछ इस बार भी मां अपने आगमन के साथ पृथ्वी पर करने वाली हैं. ऐसे में देवी मां की आराधना करने वाले भक्तों पर इस बार वह अमृत वर्षा करेंगी और सबको हर तरफ से लाभ होगा.

दरअसल, महाकुंभ मेले के आयोजन को लेकर सभी जानते हैं कि यह बृहस्पति के राशि परिवर्तन पर निर्भर करता है. बृहस्पति के बारे में सभी जानते हैं कि इस ग्रह को एक राशि से दूसरी राशि में जाने में 1 साल का वक्त लगता है और एक साल के हिसाब से उसे अपनी स्वराशि में वापस आने में पूरे बारह साल लगते हैं. ऐसे में 12 साल बाद पृथ्वी पर महाकुंभ मेले का आयोजन किया जाता है.

दूसरी तरफ यह भी मान्यता है कि पृथ्वी का एक साल देवताओं के लिए एक दिन के बराबर होता है. ऐसे में हम वेदों में पढ़ते रहे हैं कि देवताओं और असुर के बीच युद्ध 12 वर्ष तक चलता रहा, यह पृथ्वी की गणनाओं के अनुसार है. इससे भी जोड़कर महाकुंभ के आयोजन को देखा जाता है कि इस युद्ध की अवधि 12 साल थी. इस वजह से 12 साल बाद कुंभ का आयोजन किया जाता है.

आपको बता दें कि देवताओं के 12 साल पृथ्वी के 144 साल के बराबर होते हैं. ऐसे में यह भी माना जाता है कि पृथ्वी पर 12 साल में और स्वर्ग में कुंभ मेले का 144 साल बाद आयोजन किया जाता है. ऐसे में इस बार मां शक्ति की अमृत वर्षा से महाकुंभ के स्नान के बराबर कृपा मिलने वाली है. ऐसे में हर किसी को पूरी श्रद्धा, भक्ति और साफ-सफाई को ध्यान में रखते हुए मां की पूजा और अर्चना करनी चाहिए.

जीकेटी/

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