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रघुराम राजन ने सरकार की किस दुखती रग पर रख दिया हाथ? सब ठीक नहीं कहकर दे डाला यह सुझाव

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नई दिल्‍ली: भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन ने सरकार की दुखती रग पर हाथ रख दिया है। उन्‍होंने भारत की इकनॉमिक ग्रोथ के मुकाबले नौकरियां नहीं पैदा होने पर चिंता जताई है। राजन का कहना है कि सात फीसदी की आर्थिक तरक्की के बावजूद भारत में नौकरियां कम हैं। उन्होंने कुछ राज्यों में खाली पदों के लिए उम्मीदवारों की संख्या का उदाहरण दिया। उनका सुझाव है कि सरकार को रोजगार बढ़ाने के लिए श्रम-गहन उद्योगों पर ध्यान देना चाहिए।आरबीआई के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन ने कहा है कि सात फीसदी की आर्थिक वृद्धि के साथ भारत पर्याप्त नौकरियां पैदा नहीं कर रहा है। इसका अंदाजा कुछ राज्यों में रिक्त पदों के लिए आवेदकों की संख्या से लगाया जा सकता है। राजन के मुताबिक, कुछ भारतीय विशेष रूप से उच्चस्तर पर, संतोषजनक स्थिति में हैं। उनकी आमदनी अधिक है। लेकिन, निचले आधे हिस्से में कंजम्‍पशन ग्रोथ अब भी नहीं सुधरी है। यह कोविड से पहले के लेवल तक नहीं पहुंच पाई है। ग्रोथ के साथ नहीं पैदा हो रही हैं नौकर‍ियां राजन बोले, 'यह दुर्भाग्यपूर्ण हिस्सा है... आप सोचेंगे कि सात फीसदी की ग्रोथ के साथ हम बहुत सारी नौकरियां पैदा करेंगे। लेकिन, अगर आप हमारी मैन्‍यूफैक्‍चरिंग ग्रोथ को देखें तो यह अधिक पूंजी गहन है।'राजन से पूछा गया था कि क्या सात फीसदी से बढ़ रही भारतीय अर्थव्यवस्था पर्याप्त रोजगार पैदा कर रही है। उन्होंने कहा कि पूंजी-गहन उद्योग अधिक तेजी से आगे बढ़ रहे हैं। लेकिन, श्रम-गहन उद्योगों के साथ ऐसी बात नहीं है।आरबीआई के पूर्व गवर्नर ने कहा, ‘निचले स्तर पर सब ठीक नहीं चल रहा है। मुझे लगता है कि नौकरियों की सख्त जरूरत है। और आप इसे देख सकते हैं। आधिकारिक आंकड़ों को भूल जाइए।’अमेरिका स्थित शिकॉगो बूथ में फाइनेंस के प्रोफेसर राजन ने कहा, ‘आप इसे सरकारी नौकरियों के लिए आवेदनों की संख्या में देख सकते हैं, जो बहुत अधिक हैं।’ ‘अप्रेंटिसशिप’ योजनाओं का राजन ने क‍िया स्वागत उन्होंने कहा कि मध्यम अवधि में भारतीय अर्थव्यवस्था छह-सात फीसदी की दर से बढ़ेगी। इस वर्ष के बजट में वित्त मंत्री की ओर से घोषित ‘अप्रेंटिसशिप’ योजनाओं का राजन ने स्वागत किया। हालांकि, साथ ही कहा कि हमें उस पर बहुत बारीकी से नजर रखनी होगी। देखना होगा कि क्या काम करता है और जो काम करता है उसका और अधिक विस्तार करना होगा।वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने वित्त वर्ष 2024-25 के बजट में घोषणा की थी कि सरकार कर्मचारी भविष्य निधि संगठन (ईपीएफओ) में नामांकन के आधार पर तीन रोजगार-संबंधी योजनाएं शुरू करेगी।वियतनाम और बांग्लादेश का उदाहरण देते हुए जो कपड़ा और चमड़ा जैसे श्रम-गहन उद्योगों में अच्छा प्रदर्शन कर रहे हैं, राजन ने कहा, ‘हमें इस (श्रम-गहन उद्योग) को बहुत-बहुत सावधानी से देखने की जरूरत है, हम इससे बाहर नहीं रह सकते।’यह पूछे जाने पर कि पूंजीगत व्यय में निजी क्षेत्र अब भी क्यों पिछड़ रहा है, राजन ने कहा कि यह थोड़ा रहस्यपूर्ण है। उन्होंने कहा, ‘जब आप पूंजी उपयोग (निजी क्षेत्र का) देखते हैं, तो यह लगभग 75 फीसदी है... ऐसा लगता है कि मांग उस पॉइंट तक नहीं पहुंच पाई है जहां उन्हें लगता है कि इस तरह का निवेश करने की जरूरत है।’राजन ने कहा कि महत्वपूर्ण बात यह है कि भारत के पास जनसांख्यिकीय लाभांश का लाभ उठाने के लिए 15 साल का छोटा समय है। उसे यह अवसर गंवाना नहीं चाहिए।अमेरिकी केंद्रीय बैंक फेडरल रिजर्व के ब्याज दर में कटौती पर राजन ने कहा, ‘फेडरल रिजर्व ने ब्याज दर में 0.50 फीसदी की कटौती की है। इससे केंद्रीय बैंकों को यह गुंजाइश मिली है कि वे उस तरीके से आगे बढ़ सकते हैं, जो उन्हें उचित लगता है। जीएसटी दरों पर भी रखी अपनी राय वस्‍तु एवं सेवा कर (जीएसटी) दरों को युक्तिसंगत बनाने के बारे में पूछे गए एक सवाल के जवाब में राजन ने कहा कि किसी नीति के काफी समय तक चलने के बाद यह पूछना उपयोगी होता है कि उसका अनुभव क्या रहा है और क्या हमें नीति में बदलाव की जरूरत है। राजन बोले, ‘मैं इस पर विचार करने के लिए विशेषज्ञ समिति नियुक्त करने का प्रयास करूंगा, जैसा वित्त आयोग करता है। राज्यों सहित विभिन्न हितधारकों की राय लूंगा और देश की जरूरतों को पूरा करने वाला कुछ लेकर आऊंगा।’वर्तमान में जीएसटी में चार स्लैब 5, 12, 18 और 28 फीसदी हैं। नई कराधान व्यवस्था 2017 में लागू हुई थी। आर्थिक और सामाजिक रूप से बेहतर दक्षिणी और पश्चिमी राज्यों की ओर से उत्तरी और पूर्वी राज्यों को ‘सब्सिडी’ देने पर चल रही बहस के बारे में पूछे गए एक सवाल के जवाब में राजन ने कहा कि वित्त आयोग हमेशा केंद्र और राज्यों के बीच करों के उचित आवंटन के बारे में रहा है। उन्होंने कहा, 'अगर भारत एक साथ बढ़ता है तो वास्तव में यह इस तरह के संघर्ष को रोकता है... समानता का मुद्दा है, जो यह है कि जो राज्य तेजी से बढ़ रहे हैं, वे इस प्रक्रिया में आमतौर पर समृद्ध भी हो रहे हैं। और यही पश्चिमी और दक्षिणी राज्यों के मामले में हो रहा है।'राजन ने कहा कि पश्चिमी और दक्षिणी राज्यों को लगता है कि उन्हें दो तरह से दंडित किया जा रहा है - पहला, उन्हें अपने राजस्व का अधिक हिस्सा उन राज्यों की मदद के लिए देना होगा जो पीछे रह गए हैं। राजन ने कहा, ‘इसके अलावा, राजनीतिक मोर्चे पर, अगर परिसीमन प्रक्रिया होती है तो वे सीटें खो सकते हैं, क्योंकि आप जानते हैं, अधिक आबादी वाले राज्यों को अधिक सीटें मिलेंगी।’
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