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नेतन्याहू सभी बटन दबा रहे... नसरल्लाह के नहीं रहने से क्या मुश्किल में फंस गया है ईरान? ऐसे बन रहे समीकरण

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आयदिन सेजर नई दिल्ली: हिजबुल्लाह चीफ नसरल्लाह पर हमला एक नए युग की शुरुआत का प्रतीक है, जो पश्चिम एशिया में सैन्य और राजनीतिक संतुलन को पूरी तरह से बदल सकता है। नसरल्लाह पर हुए हमले में ईरानी रिवोल्यूशनरी गार्ड का एक वरिष्ठ सदस्य भी मारा गया। हमास के इस्माइल हनियेह के हत्या की तरह, इजरायल को इस बार जो इनपुट मिले उसमें ईरानी जासूस की भी भूमिका है। यह ध्यान देने योग्य बात है। यह न केवल हिजबुल्लाह के भविष्य के लिए बल्कि सभी क्षेत्रीय भू-राजनीतिक संतुलन के लिए एक महत्वपूर्ण मोड़ है। नेतन्याहू का का कैलकुलेशन: सबसे पहले नेतन्याहू अमेरिकी चुनावों के लिए सभी बटन दबा रहे हैं, जिसका अर्थ है ट्रम्प के अभियान के लिए समर्थन और कमला हैरिस के संभावित चुनाव से पहले जो शुरू किया था उसे खत्म करना। नेतन्याहू ने हमास और हिजबुल्लाह जैसे संगठनों के खिलाफ अपनी लड़ाई तेज कर दी है। यह रणनीति उनके अपने राजनीतिक भविष्य को मजबूत करने और इजरायल की सुरक्षा को बढ़ाने दोनों के लिए महत्वपूर्ण है। पश्चिमी दुनिया, खासकर अमेरिका और ब्रिटेन, नेतन्याहू की सरकार को हर तरह का राजनीतिक और सैन्य समर्थन देना जारी रखे हुए हैं। यह नेतन्याहू को और प्रोत्साहित करता है और उसे एक आक्रामक नीति अपनाने के लिए प्रेरित करता है। नतीजतन, नेतन्याहू हमास और हिजबुल्लाह के बिना एक दुनिया बनाने की अपनी योजना में तेजी से आगे बढ़ रहे हैं, जो उन्हें और इजरायल दोनों को राजनीतिक और सुरक्षा के लिहाज से संतुष्ट करेगा। हिजबुल्लाह का भविष्य: नसरल्लाह के नेतृत्व में, हिजबुल्लाह न केवल लेबनान में बल्कि पूरे क्षेत्र में एक प्रमुख शक्ति था। नसरल्लाह के नहीं रहने से निस्संदेह संगठन के रणनीति और उसके कैसे आगे बढ़ाया जाएगा इस पर बहुत प्रभाव पड़ेगा। हमारे पास इस बारे में कोई ठोस डेटा नहीं है कि हिजबुल्लाह का नया शासन ढांचा कैसा होगा। पुनर्गठन की प्रक्रिया में कितना समय लगेगा। इस बीच, ईरान और दूसरे बलों से कैसे तालमेल बैठेगा।इसमें समय लगेगा। क्या नसरल्लाह के करिश्माई नेतृत्व में हिजबुल्लाह ने जो वर्तमान शक्ति हासिल की है क्या दोबारा हो पाएगा। लेकिन इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि क्या ईरान के साथ संबंधों को उसी तरह बनाए रखा जाएगा। हिजबुल्लाह की पहचान नसरल्लाह से काफी हद तक जुड़ी हुई थी। दोबारा वैसा हो इसकी संभावना कम है। बदली परिस्थिति में हिजबुल्लाह के भविष्य को और ईरान के प्रभाव दोनों को लेकर सवाल है। ईरान पर क्या पड़ेगा असर: लेबनान, सीरिया और इराक में अपना प्रभाव बनाए रखने के लिए ईरान को हिजबुल्लाह जैसे मजबूत सहयोगी की जरूरत है। यदि ईरान हिजबुल्लाह को वह समर्थन प्रदान करने में विफल रहता है जिसकी उसे अपेक्षा है या यदि नया हिजबुल्लाह नेतृत्व ईरान के साथ अपने संबंधों को लेकर वैसे आगे नहीं बढ़ता तो इसका न केवल क्षेत्र में हिजबुल्लाह की स्थिति पर बल्कि ईरान पर भी नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा। यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि ईरान अब नेतन्याहू और इजरायल के लिए मेन टारगेट है। खासकर तेहरान में हनियेह की हत्या के बाद, इजरायल को जवाब देने की ईरान की क्षमता सवालों के घेरे में है। इजरायल के प्रति नए ईरानी नेतृत्व की नीति की अस्पष्टता अभी भी हमें यह अनुमान लगाने से रोकती है कि नसरल्लाह की मौत के बाद ईरान क्या कर सकता है। क्या ईरान हूतियों के माध्यम से इस क्षेत्र में अपना प्रभाव डालता रहेगा। क्या यह दिखाने के लिए कि वह एक क्षेत्रीय शक्ति है, तेल व्यापार के लिए होर्मुज जलडमरूमध्य को बंद कर देगा। क्या ईरान यह दावा करते हुए कि उसे खतरा महसूस हो रहा है, अपने परमाणु हथियार कार्यक्रम में तेजी लाएगा। कैसे पड़ेगा असर: यदि ईरान हिजबुल्लाह को वह समर्थन प्रदान करने में विफल रहता है जिसकी उसे अपेक्षा है, तो क्या नसरल्लाह के बाद नया हिजबुल्लाह चीफ खुद को ईरान से दूर कर पाएगा। क्या हिजबुल्लाह लेबनान में ईरानी मदद के बिना टिक सकता है। इसका लेबनान में खाड़ी देशों की राजनीतिक शक्ति पर क्या असर पड़ेगा। ईरान चाहे जो भी नीति अपनाए, सीरिया और इराक दोनों में उसके प्रभाव पर सवाल उठेंगे। इस लिहाज से ईरान को बिना देर किए कोई कदम उठाने की जरूरत है। इस कदम में देरी का मतलब होगा कि ईरान की असली ताकत पर सवाल उठाया जाएगा। (लेखक:तुर्की के पूर्व राजनयिक हैं)
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