पटना: बिहार की राजनीति में भले अब एक और दल प्रशांत किशोर के नेतृत्व में शामिल हो गया। मगर, पार्टी के नाम पर जो लीक से हटकर एक उम्मीद प्रशांत किशोर ने दिखाई, वो इस मुकाम पर ढहती दिख रही है। जातिविहीन समाज की परिकल्पना के साथ बिहार की राजनीत में नया कुछ करने का जज्बा तब धूमिल होता नजर आया। जब सामाजिक समीकरण के नाम पर जाति और धर्म के समीकरण के प्रति पीके कुछ ज्यादा आश्वस्त नजर आए। मुद्दों की राजनीति से तौबाजन सुराज पदयात्रा के साथ जब राजनीति की ओर पीके ने कदम बढ़ाए तब उनके मुद्दे कुछ अलग थे। मगर, इस यात्रा के साथ उनके मुद्दे बदलते चले गए। प्रारंभ में पीके अन्य पार्टी के नेतृत्वकर्ता से अलग दिखे। जाति और धर्म के साथ समीकरण बना कर राजनीति, बिहार में कई दल कर रहे हैं। इनसे इतर दिखने के लिए पीके ने प्रारंभ में उन मुद्दों को उठाया जो सच में समाज की जरूरत है। राज्य में सक्रिय दलों के लिए उन मुद्दों का कोई मायने नहीं। मसलन, पीके ने पलायन, गरीबी, अशिक्षा, परिवारवाद और जातिवाद जैसे मुद्दों के साथ कदम बढ़ाए।मगर, बाद में जाति और धर्म प्राथमिकता के साथ सामने आते गए। उनकी घोषणाओं में अतिपिछड़ा और मुस्लिम प्राथमिकता के साथ आए। सबसे पहले पीके ने जो मॉडल सामने रखा, उसमें उन्होंने कहा कि 75 विधानसभा पर अति पिछड़ा और 75 पर मुस्लिम उम्मीदवार लड़ाने की बात की। फिर जब उनकी इस नीति पर सवाल उठने लगे तो पीके पलटे और बोले आबादी के अनुसार मुस्लिमों को टिकट देंगे। यानि बिहार विधानसभा में 42 सीटों पर मुस्लिम उम्मीदवार उतारेंगे। थ्री एस को अब बनाया मुदाअब प्रशांत किशोर चुनाव को पूरी तरह से 'थ्री एस' यानि शराब, सर्वे और स्मार्ट मीटर पर लड़ना चाहते हैं। शराबबंदी को तो उनकी सरकार आते ही समाप्त कर देगी। स्मार्ट मीटर को आरजेडी भी मुद्दा बना चुकी है। धरना-प्रदर्शन भी जारी है। पीके अब इस मुद्दे को भी अपना मुद्दा बनाना चाहते हैं। साथ में ये कहते भी हैं कि इसे लागू करने में अधिकारियों का दबाव तो बनाया ही गया है। साथ ही अधिकारी के द्वारा रिश्वत लेना की बात ने ये साबित किया कि गड़बड़ तो है। तीसरा मुद्दा सर्वे है। इस मुद्दे को लेकर पूरे बिहार में घमासान मचा हुआ है। गांवों में इसको लेकर तनातनी मची है। इस सेंटिमेंट की पीके आगामी विधानसभा चुनाव में मुद्दा बनाने जा रहे है। पीके इस बात को बताने में लगे हैं कि नीतीश कुमार ने जनता का ध्यान भटकाने के लिए सर्वे कानून को लाया है। लोकसभा के बाद पीके का टारगेट बदलापहले पीके राजद पर ही हमला करते थे। उनका हमला तेजस्वी की अशिक्षा हुआ करता था। वो जनता के बीच इस संदेश को मजबूती से रखते थे कि नौवीं पास को लालू जी मुख्यमंत्री बनाना चाहते हैं और आपका बेटा बीए, एमए पास है और बेरोजगार है। राजद का जंगल राज और परिवारवाद पर भी हमला होता था। मगर, पीके के निशाने पर जदयू और उसके नायक नीतीश कुमार नहीं रहे। इसके पीछे उनका तर्क था कि जदयू नेतृत्व विहीन हो जाएगी और पार्टी खंड-खंड हो जाएगी लेकिन लोकसभा चुनाव के बाद जब जदयू ताकतवर हुई तो पी के ने अपने हमला के कोण को बदला। फिर नीतीश कुमार के शराबबंदी, स्मार्ट मीटर और सर्वे की जमकर आलोचना की। इन तीन मुद्दों को नीतीश कुमार के ताबूत में अंतिम कील भी कहा।
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Bihar News: क्या लीक से भटकते चले गए प्रशांत किशोर! आदर्श राजनीति की राह पर क्यों नहीं जमा पाए पांव?
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