Top News
Next Story
NewsPoint

महाराष्ट्र चुनाव में बीजेपी का 'माधव' फॉर्म्युला, अमित शाह का माइक्रो मैनेजमेंट समझिए

Send Push
मुंबई : हरियाणा और जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनाव के बाद बीजेपी का केंद्रीय नेतृत्व महाराष्ट्र के लिए माइक्रो प्लानिंग में जुट गया है। महाराष्ट्र के मराठा आंदोलन ने लोकसभा चुनाव में महायुति का काफी नुकसान किया, इसलिए जातियों के हिसाब से फॉर्म्युले बनाए जा रहे हैं। बीजेपी की नजर ओबीसी जातियों, खासकर माली (MA), धनगर (DH) और वंजारी (V) समुदायों पर टिक गई है। माधव (MADHAV) फॉर्म्युले को मजबूत करने के लिए प्याज निर्यात शुल्क को कम किया गया है । पीएम मोदी ने हाल में ही बंजारा विरासत म्यूजियम का उद्घाटन भी किया। इसके अलावा मराठों के खुश करने के लिए भी नेताओं को मैदान में उतारा गया है। चुनाव में 'माधव' करेंगे बीजेपी का बेड़ा पार बीते लोकसभा चुनाव में बीजेपी को सिर्फ 9 सीटें मिलीं और 14 सीटों का नुकसान हुआ। पार्टी के मंथन में इसके की कारण सामने आए। उसे अजित पवार के पार्टी से गठबंधन का फायदा नहीं हुआ। मराठा आंदोलन के दौरान राज्य सरकार के असमंजस में फंसे होने के कारण मराठा वोटर तो नाराज हुए, साथ में दूसरे ओबीसी वोटर भी बीजेपी से दूर हो गए। बीजेपी को मराठवाड़ा क्षेत्र एक भी सीट नहीं मिली और पश्चिमी महाराष्ट्र में जहां उसे केवल दो सीटों से संतोष करना पड़ा। माली, धनगर और वंजारी के ट्रडिशनल वोटर भी बीजेपी से छिटक गए। राजनीति में 'माधव' पहचान से मशहूर इन जातियों के किसान महाराष्ट्र के प्याज उत्पादक हैं। प्याज की कीमत से इनका मिजाज बदलता है। अब इन जातियों को साधने के लिए बीजेपी ने नई रणनीति बनाई है। अहिल्या देवी होल्कर वाले फैसले से खुश होंगे 'माधव' के धनगर अगर माधव (MADHAV) फॉर्मूले चल गया तो बीजेपी को मराठवाड़ा क्षेत्र की 46 विधानसभा सीटें और पश्चिमी महाराष्ट्र में 70 सीटों पर फायदा मिल सकता है। पिछले विधानसभा चुनावों के दौरान भाजपा ने मराठवाड़ा में 39 सीटों पर चुनाव लड़ा था और उसे 16 सीटें मिली थीं। पश्चिम महाराष्ट्र में 26 सीटों पर चुनाव लड़ने के बाद 16 सीटें जीती थीं। चुनाव से पहले माधव के 'ध' यानी धनगर समुदाय को खुश करने के लिए बीजेपी ने बड़ा दांव चला। महायुति सरकार ने अहमदनगर का नाम बदलकर अहिल्यानगर कर दिया। माता अहिल्यादेवी होल्कर धनगर समुदाय की सबसे अधिक पूजनीय शख्सियत थीं। आज भी धनगर समुदाय उन्हें देवी की तरह पूजते हैं। सवर्णों को लुभाने के लिए भी महायुति की सरकार ने बड़ा फैसला लिया। सरकार ने ब्राह्मण और राजपूत समुदायों के आर्थिक विकास के लिए दो निगम बनाने का ऐलान कर दिया। लोकसभा चुनाव में विदर्भ में हुई थी बीजेपी की हार लोकसभा चुनाव में बीजेपी का गढ़ माने जाने वाले विदर्भ में भी पार्टी की मिट्टी पलीद हुई थी। विदर्भ में विधानसभा की 62 सीटें हैं। पश्चिम महाराष्ट्र के बाद विदर्भ ही ऐसा इलाका है, जहां से जीत के बाद ही रास्ता मुंबई के वर्षा बंगले तक जाता है। नागपुर भी विदर्भ का हिस्सा है, जहां की एक विधानसभा सीट से देवेंद्र फड़नवीस चुनाव लड़ते हैं। बीजेपी के मंथन में यह सामने आया कि 'डीएमके' वोटर यानी दलित, मुस्लिम और कुनबी जाति के साथ तेली वोटर भी पार्टी से छिटक गए। पिछले विधानसभा चुनाव में ही इसकी शुरुआत हो गई थी, जब बीजेपी 50 सीटों लड़ने के बाद सिर्फ 29 सीटें ही जीत सकी। बीजेपी तेली जाति को अपने पाले में लाने के लिए चंद्रशेखर बावनकुले को आगे लाई है। बावनकुले भी तेली जाति से हैं। भाजपा को हिंदू दलित वोटरों से भी आस विदर्भ में दलित वोटर की तादाद ज्यादा है। इस इलाके में बड़ी संख्या में दलित समुदाय ने बौद्ध धर्म अपना रखा है। पिछले चुनाव में दलितों ने कांग्रेस को वोट किया था। बीजेपी अब दलितों में उन वोटरों को लुभा रही है, जो अभी भी हिंदू धर्म में हैं। 30 फीसदी आबादी वाले मराठा कुनबी को भी ओबीसी जाति प्रमाण पत्र देकर खुश करने की कोशिश की गई है। अब देखना यह होगा कि चुनाव में बीजेपी कांग्रेस के डीएमके वाले जाति कॉम्बिनेशन का तोड़ ढूंढ पाती है या नहीं।
Explore more on Newspoint
Loving Newspoint? Download the app now