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लखनऊ-कानपुर समेत यूपी के 9 जिलों में टोटल फर्टिलिटी रेट दो से भी कम, प्रजनन दर में कमी का जानिए कारण

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लखनऊ: जीवन की आपाधापी और महंगे होते शहरी जीवन का असर अब उत्तर प्रदेश के युवाओं के प्रजनन दर पर भी देखा जा रहा है। बढ़ती आबादी पर नियंत्रण की कोशिशों के अच्छे परिणामों के बीच कुछ चिंतित करने वाली भी वजहें हैं। देश में टोटल फर्टीलिटी रेट (टीएफआर) 2.10 आ चुकी है जबकि यूपी भी 2.40 टीएफआर के साथ उसके करीब ही है। लेकिन, उत्तर प्रदेश के नौ जिलों में यह टीएफआर दो से भी नीचे चला गया है। लखनऊ, कानपुर, गाजियाबाद और नोएडा जैसे जिले इनमें शामिल हैं।स्वास्थ्य क्षेत्र में यूपी सरकार के साथ काम कर रहे एनजीओ ममता के स्टेट टीम लीड डॉ. अमित यादव इन आंकड़ों पर कहते हैं कि टीएफआर का दो की तरफ आना बेहतर संकेत है। लेकिन कुछ क्षेत्रों में दो के नीचे टीएफआर आना चिंतित करने वाला भी है। यह हमारे लिए सोचने का विषय है क्योंकि अगर यह दर और गिरी तो देश में बुजुर्ग आबादी काफी पहले से ही बढ़ना शुरू हो जाएगी। चीन का उदाहरण है सामनेफिलहाल, 2065 में इसकी शुरुआत होने का अनुमान है। डॉ. यादव ने चीन का उदाहरण देते हुए कहते हैं कि वहां बढ़ती आबादी को नियंत्रित करने के लिए कानून लाया गया था। इसकी वजह से फर्टीलिटी रेट इस कदर कम हुई कि अब चीन अधिक बच्चे पैदा करने के लिए युवाओं को प्रोत्साहित कर रहा है। एनएचएम में फैमिली प्लानिंग के जीएम सूर्यांशु ओझा कहते हैं कि उत्तर प्रदेश में 9 जिले ऐसे हैं, जहां पर टीएफआर दो से कम दर्ज की गई है। इन जिलों में ऐसी स्थिति के लिए अध्ययन की जरूरत है ताकि वास्तविक कारणों को समझा जा सके। वहीं, डॉ. यादव बड़े शहरों में जीवनचर्या में बदलाव को इसके लिए एक अहम कारण मानते हैं। वह कहते हैं कि अनिद्रा, तनाव और करियर को तरजीह देने का चलन भी फर्टीलिटी रेट कम होने की एक बड़ी वजह है। हालांकि, इन जिलों का विशेष तौर पर अध्ययन किया जाना चाहिए। यूपी में के इन जिलों में टोटल फर्टिलिटी रेट (आंकड़े एनएफएचएस-5 के हैं) शिक्षा से काबू में टीएफआरडॉ. यादव कहते हैं कि शुरुआती दौर में बढ़ती आबादी की अहम वजहों में गरीबी, अधिक चाइल्ड मॉर्टेलिटी रहे और अशिक्षा को माना जाता था। जैसे-जैसे शिक्षा बढ़ी, टीएफआर में गिरावट दर्ज की जाने लगी। वह बताते हैं कि जब समाज में अशिक्षा थी, तब जल्द शादी हो जाती थी। इसके अलावा बच्चों की मृत्यु दर ज्यादा थी, लिहाजा लोग असुरक्षित होकर ज्यादा बच्चे पैदा करते थे। डॉ. यादव का कहना है कि अब लड़के और लड़कियां दोनों ही पढ़ने लगे हैं तो विवाह की औसत उम्र बढ़ गई है। डॉ. सूर्यांशु ओझा कहते हैं कि इसके अलावा अनचाहे गर्भ से बचने के तमाम उपाय हैं, इनका प्रसार भी काफी हुआ है। शिक्षित समाज ने इसे स्वीकार किया है। इसका असर उत्तर प्रदेश के आंकड़ों में साफ दिखता है।डॉ. ओझा का कहना है कि केवल छह जिले ही ऐसे हैं, जिनमें टीएफआर एनएफएचएस-4 के मुकाबले एनएचएफएस-5 में बढ़ा हो। हालांकि डॉ़ ओझा इस बात में जोड़ते हैं कि टीएफआर कम होने के पीछे तमाम कारण हो सकते हैं। शैक्षिक, आर्थिक, सामाजिक और भौगोलिक। सभी पहलू मिलकर इसके लिए उत्तरदायी होते हैं। टीएफआर कम होना अच्छा है, लेकिन तेज गिरावट अच्छी नहीं है। क्षेत्रवार फर्क होंगे कारणडॉ. अमित यादव कहते हैं कि एनएफएचएस के आंकड़ों में कारणों पर बात नहीं होती है। लेकिन जब हम उनकी डिटेलिंग में जाते हैं तो कारणों का अनुमान लगा सकते हैं। लखनऊ, कानपुर, गाजियाबाद और नोएडा जैसे शहरों में युवा पढ़ाई और फिर नौकरी की फिक्र में होते हैं। शादियों की उम्र बढ़ रही है। इसके अलावा तनाव उनकी जीवनचर्या का एक अंग हो गया है। इससे परिवार के विस्तार की इच्छा प्रभावित हो सकती है।डॉ. यादव ने कहा कि शहरों में जीवन गांवों की अपेक्षा महंगा है। शहरीकरण के साथ ही छोटे परिवारों की परिकल्पना शुरू हुई थी, यह अब और बढ़ रही है। समझदार और पढ़े-लिखे युवाओं में अगली पीढ़ी को पालने और अच्छा लाइफ स्टैंडर्ड देने की फिक्र होना स्वाभाविक है। ग्रामीण क्षेत्रों में पलायन एक बड़ी वजह हो सकती है।
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