कोयंबटूर। आपने जग्गी वासुदेव का नाम जरूर सुना होगा। जग्गी वासुदेव के भक्त उनको सद्गुरु कहते हैं। जग्गी वासुदेव फिर एक विवाद में घिरे हैं। एक रिटायर्ड प्रोफेसर ने आरोप लगाया है कि जग्गी वासुदेव ने उनकी बेटियों को ईशा फाउंडेशन में संन्यासिनी बना दिया। जबकि, अपनी बेटियों की उन्होंने शादी की। इसी आरोप पर मद्रास हाईकोर्ट ने जग्गी वासुदेव के बारे में जांच का आदेश दिया था। सुप्रीम कोर्ट ने इस जांच पर स्टे लगा दिया है और मामला अब देश की सबसे बड़ी अदालत ही सुनेगी। हम आपको बताने जा रहे हैं कि जग्गी वासुदेव यानी सद्गुरु कौन हैं और उनका ईशा फाउंडेशन आखिर क्या काम करता है?
जग्गी वासुदेव का जन्म 3 सितंबर 1957 को हुआ था। वो यादव परिवार से आते हैं। जग्गी वासुदेव यानी सद्गुरु के पिता डॉक्टर थे। जग्गी वासुदेव का कहना है कि वे बचपन से ही ध्यान लगाते थे। सांप पकड़ने में भी जग्गी वासुदेव को महारत हासिल है। 11 साल की उम्र से उन्होंने योगाभ्यास करना शुरू किया। जग्गी वासुदेव ने मैसुरु यूनिवर्सिटी से अंग्रेजी भाषा में स्नातक की उपाधि भी ली है। उनको 2017 में पद्मविभूषण सम्मान मिला था। जग्गी वासुदेव ने ईशा फाउंडेशन की स्थापना की है। इसके करीब 2.5 लाख वॉलेंटियर हैं। तमाम नामचीन लोग भी सद्गुरु जग्गी वासुदेव से जुड़े हुए हैं। ईशा फाउंडेशन लोगों की मानसिक और शारीरिक दिक्कतों को दूर करने का भी दावा करता है। 82 लाख पौधे सद्गुरु जग्गी वासुदेव का ईशा फाउंडेशन लगा चुका है। 2006 में ईशा फाउंडेशन ने एक दिन में 8.52 लाख पौधे लगाकर गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में जगह बनाई थी। उसे 2008 में इंदिरा गांधी पर्यावरण पुरस्कार भी मिल चुका है। ईशा फाउंडेशन नदियों के संरक्षण की योजना भी चला रहा है।
ईशा फाउंडेशन के तहत ईशा योग केंद्र भी आता है। नीलगिरि पहाड़ियों में स्थित वेलिंगिरी पहाड़ पर ईशा योग केंद्र बना है। सद्गुरु जग्गी वासुदेव और उनके योग शिक्षक व वॉलेंटियर ईशा योग केंद्र में लोगों को भक्ति, क्रिया, कर्म और ज्ञानयोग की शिक्षा देते हैं। ईशा योग केंद्र में सद्गुरु जग्गी वासुदेव ने 1999 में 13 फीट 9 इंच ऊंचा पारे से बना शिवलिंग स्थापित किया था। पारे से बना दुनिया का ये सबसे ऊंचा शिवलिंग है। इसे ध्यानलिंग का नाम दिया गया है। ईशा फाउंडेशन और ईशा योग केंद्र सभी धर्मों को मानने वालों के लिए खुला है। ध्यानलिंग योग मंदिर में सभी धर्मों के प्रतीक चिन्ह बने हैं। सद्गुरु जग्गी वासुदेव पर पहले भी अंधविश्वास को बढ़ावा देने का आरोप लगा था। इसके अलावा उन पर विज्ञान को गलत ढंग से लोगों को पेश करने का भी आरोप लगा। सद्गुरु जग्गी वासुदेव पर हिंदुत्व के अतीत को सुनहरा बताकर इतिहास का संशोधित रूप पेश करने का आरोप भी लगा था। उन पर ये आरोप भी लगा कि चार्ल्स डार्विन के काम की गलत व्याख्या की और हिंदुओं के मौत से संबंधित अनुष्ठानों को सही बताया।
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