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हनुमान जी एक ऐसे देवता है जो अजर अमर है। उन्हें वरदान मिला हुआ है कि जो भक्त हनुमान जी की शरण में आएगा उसका कलियुग भी कुछ नहीं बिगाड़ पाएगा। जो भी सम्पूर्ण भक्ति भाव से हनुमान जी की पूजा करते हैं उनके कष्टों को हनुमान जी दूर करते हैं।
इस लेख के माध्यम से हम आपको हनुमानजी से संबंधित एक रोचक किस्से के बारे में बताने जा रहे हैं जिसके बारे में आपको जानकारी नहीं होगी। आमतौर पर हनुमान जी युद्ध में गदा का प्रयोग नहीं करते थे, अपितु मुक्के का प्रयोग करते थे।
रामचरितमानस में हनुमान जी को "महावीर" कहा गया है। शास्त्रों में "वीर" शब्द का उपयोग बहुतो हेतु किया गया है। जैसे भीम, भीष्म, मेघनाथ, रावण, इत्यादि परंतु "महावीर" शब्द मात्र हनुमान जी के लिए ही उपयोग होता है।
शास्त्रों की मानें तो इंद्र के "एरावत" में 10,000 हाथियों के बराबर बल है। "दिग्पाल" में 10,000 एरावत जितना बल होता है। इंद्र में 10,000 दिग्पाल का बल होता है। परंतु शास्त्रों के अनुसार हनुमान जी की सबसे छोटी उगली में 10,000 इंद्र का बल है।
इस प्रसंग के अनुसार रावण पुत्र मेघनाथ हनुमानजी के मुक्के से बहुत डरता था। जब रावण ने हनुमान जी के बारे में ये बात सुनी तो उन्होंने हनुमानजी से बोला, "आपका मुक्का बड़ा ताकतवर है, आओ जरा मेरे ऊपर भी आजमाओ, मैं आपको एक मुक्का मारूंगा और आप मुझे मारना।"
फिर हनुमानजी ने कहा "ठीक है! पहले आप मारो।" रावण ने कहा "मै क्यों मारूँ ? पहले आप मारो"। हनुमान बोले "आप पहले मारो क्योंकि मेरा मुक्का खाने के बाद आप मारने के लायक ही नहीं रहोगे"।
इसके बाद रावण ने पहले हनुमान जी को मुक्का मारा। इस प्रकरण की पुष्टि यह चौपाई कर्ट है "देखि पवनसुत धायउ बोलत बचन कठोर। आवत कपिहि हन्यो तेहिं मुष्टि प्रहार प्रघोर"।
रावण के प्रभाव से हनुमान जी घुटने टेककर रह गए, वह धरती पर गिरे नहीं लेकिन क्रोध से भरे हुए संभलकर उठे। रावण मोह का प्रतीक है और मोह का मुक्का इतना तगड़ा होता है कि अच्छे-अच्छे संत भी अपने घुटने टेक देते हैं। फिर उसके बाद हनुमान जी ने रावण को एक मुक्का मारा। उनके मुक्का करने के बाद रावण ऐसा गिर पड़ा जैसे वज्र की मार से पर्वत गिरा हो। वह बेहोशी के बाद जाएगा और हनुमानजी के बल की सराहना करने लगा।
प्रशंसा सुनकर हनुमान जी खुश होने के बजाय बोले ""मेरे पौरुष को धिक्कार है, धिक्कार है और मुझे भी धिक्कार है, ''जो हे देवद्रोही! तू अब भी जीता रह गया।' '
यानी हनुमान जी का मुक्का खाने के बाद भी रावण जिंदा था। रावण मोह का प्रतीक था और उसे केवल भगवान श्रीराम मार सकते थे। इसकी पुष्टि यह चौपाई करती है
"मुरुछा गै बहोरि सो जागा। कपि बल बिपुल सराहन लागा धिग धिग मम पौरुष धिग मोही। जौं तैं जिअत रहेसिसुरद्रोही"।
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