उदयपुर, 7 अक्टूबर: शहर के ख्यातिप्राप्त वास्तुविद सुनील लड्ढा ने कहा कि मेवाड़ में सर्वाधिक वास्तुग्रंथ लिखे गए हैं, और इसका श्रेय प्रमुख रूप से सूत्रधार मंडन को जाता है. उनके द्वारा रचित ग्रंथ न केवल भारत में, बल्कि विदेशों के ग्रंथ भंडारों में भी उपलब्ध हैं.
लड्ढा ने यह विचार सोमवार को विश्व वास्तुकला दिवस के अवसर पर सापेटिया स्थित वर्कस्पेस डिजाइन स्टूडियो में आयोजित विचार गोष्ठी के दौरान मुख्य वक्ता के रूप में व्यक्त किए. उन्होंने मेवाड़ की समृद्ध वास्तुकला परंपरा और मंडन सूत्रधार के योगदान पर विस्तार से चर्चा की. लड्ढा ने बताया कि समरांगण सूत्रधार, अपराजित पृच्छा, राजवल्लभवास्तु शास्त्रम, और विश्वकर्मवास्तुशास्त्रम जैसे महत्वपूर्ण ग्रंथों का अनुवाद और संपादन उदयपुर में ही हुआ था.
उन्होंने यह भी बताया कि 21वीं सदी में मेवाड़ के विद्वानों ने इन ग्रंथों की ओर दोबारा ध्यान दिया. वशिष्ट गोत्र के प्रो. भंवर शर्मा और सुप्रसिद्ध इतिहासकार डॉ. श्रीकृष्ण जुगनू ने मंडन सहित अन्य सूत्रधारों के ग्रंथों का हिंदी और अंग्रेजी में अनुवाद और संपादन किया है.
गोष्ठी में वास्तुविद रजत मेघनानी और शिल्पकार हेमंत जोशी ने भी अपने विचार व्यक्त किए. उन्होंने कहा कि वास्तु किसी भी घर और परिवार की समृद्धि का आधार है. मेघनानी ने कुंभलगढ़ किले को वास्तुकला का अद्वितीय उदाहरण बताते हुए मंडन सूत्रधार की सिद्धहस्तता को वैश्विक उपलब्धि के रूप में रेखांकित किया.
इस मौके पर अन्य प्रमुख वक्ताओं में वास्तुकार विवेक राज, प्रियंका कोठारी, भावेश पुरोहित, जीनल जैन, दर्शन आसवत, फाल्गुन व्यास, तनुजा कटारिया, नीलोफर मुनीर, निहारिका जैन, हर्षित जैन, ज्योति पंवार, और जुगल जोशी भी शामिल थे, जिन्होंने अपने विचार साझा किए.